कमला कृति

मंगलवार, 25 जुलाई 2017

मंजुल भटनागर की रचनाएं


चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार

उम्मीदों के फूटे गुलाब..


उम्मीदों के फूटे गुलाब  
आओं चहचहायें 
बारिश है महताब 
आओ कुछ गुनगुनाएँ।   

झींगुरों के छिड़े वाद्य 
बिजुरी चमकी आकाश
रिमझिम सी है बरसात 
आओ मेघ गायें।  

अधरों ने कही बात 
गीत मिलन के गायें
मन  की है कोई  बात 
बारिश में भीगे और भिगो आएं।  

आँख बोल रही कुछ बात 
स्पर्श का हो राग 
चलों मुस्कराएं 
दो दिलों का है समास 
चलों भीग  भीग जाएँ।  


मेघा कब बरसोगे..


नदी व्याकुल सी
झील मंद सी मौन
खेत ,आँगन ,मोर नभ निहारे
कब भरेंगे सुखन मनस सारे
कब मन हर्षोगे
मेघा तुम कब बरसोगे?

नागार्जुन के प्रिय
देखा तुम्हें बरसते
विंध्याचल के द्वारों पर
देखा दूर हिमालय पर
मलयानिल झोंको से मेरा आंगन
तुम कब सरसोगे
मेघा तुम कब बरसोगे?

कालिदास के मेघ दूत
विरह सिक्त पावक प्रतीक्षा रत
नभ गवाक्ष से झांक रहे तुम
ले अगणित जल संपदा
गुजर रहे सजल तुम द्वारिका से
मेरे द्वार कब छलकोगे
मेघा तुम कब बरसोगे।

दया निधि बन जाओ
कृषक  प्रतीक्षारत
बरसा जाओ नभ कंचन
महकेगा खेत प्रागंन
आह्लादित होगा धरणी का तन मन।


नदी 


नदी का जल
बादल की बूंद बन
बहता है घने जंगल की
डालियों पर
मुग्ध होता है वह
एकाकार हो
जंगल झाँकने लगता है उसमे

साफ़ परिदृश्य
पाखी ,तितली ,हिरण और
अनछुई बदली
छू लेती है
नदी का अंतर्मन। 

जब नदी बर्फ हो
बूंद बूंद बन उड़ रही थी
तो भी नदी का रंग
श्वेत ही था
उडती भाप सा

नदी हमेशा से पाक
पवित्र थी,
जब गाँव गाँव भटकी
जब शहर घूमी
जब समुद्र से मिली
या फिर बादल बन ढली

बचा सको तो नदी का रंग
बदरंग होने से
तो नदी बनना होगा
तर्पण करना होगा

अपने आँख की
बहती अश्रु धारा बचानी होगी
जहाँ से फूटते हैं सभी
आत्मीय स्त्रोत।


यादें


दस्तक दे दरवाजे पर
जब सूनी यादें बहती  हैं
पंख पसारे धुँधली-सी छवि
सन्मुख आकर बैठी है।

बारिश बदली संग लिये वो
रहती दिल के कोने में
रोज सहेली बन बैठी जब
रोती हूँ में कोने में

इन्द्रधनुष जब सज जाते हैं
बादल कोई गाता है
जुगलबंदी संग जैसे कोई
पास मुझे बुलाता हो

आकारों के महल बने हैं
दिन, पल के साज
गीत उभर आता है मन में
जब मिलने की हो आस।


कैसा रूप धरा..


जलमग्न धरा
देखा नही सूरज
मिलती नहीं किरने
बादल ने ली अंगडाई है
धरा ने यह कैसा रूप धरा।

बरसता मेह अविरल
हवाओं को साथ लिए
पातो पर बांसुरी बज रही
बुँदे टिप टिप
घनघोर टपकारे
पंछी कहाँ जाएँ बेचारे।

आम पत्र झूम रहे
ले सुगन्ध डोल रहे
खोज रहे कोयलिया
नहीं सुनाती गीत आज
न जाने कहाँ छिपी हो ले साज। 

बादल घनघोर हैं
नहीं मिल रहा छोर आज
मंद मंद पछुआ हवा
बदली का दुकूल लिए
बह रही तरंगित आज। 


मंजुल भटनागर


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ईमेल-manjuldbh@gmail.com

1 टिप्पणी:

  1. सुन्दर बिम्ब-प्रतीकों में सुन्दर कविताएँ !!
    प्रेम लता चसवाल 'प्रेम पुष्प'
    संपादक : अनहद कृति
    (www.anhadkriti.com)

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