कमला कृति

सोमवार, 2 फ़रवरी 2015

अंसार क़म्बरी के दोहे



चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार


लौट चलो अब गाँव..



हमको ये सुविधा मिली, पार उतरने हेतु |
नदिए तो है आग की, और मोम का सेतु ||

सारी नगरी रौंदते, बुलडोज़र के पाँव |
दाना-पानी उठ गया, लौट चलो अब गाँव ||

वो मुझसे नफ़रत करे, मैं करता हूँ प्यार |
ये उसका व्यवहार है, ये मेरा व्यवहार ||

केवल जो गरजे नहीं, बरसे भी कुछ देर |
ऐसे भी बादल पवन, अब ले आओ घेर ||

कोई कजरी गा रहा, कोई गाये फाग |
अपनी-अपनी ढपलियाँ, अपना-अपना राग ||

पहले आप बुझाइये, अपने मन की आग |
फिर बस्ती में गाइये, मेघ मल्हारी राग ||

सावन में सूखा पड़ा, फागुन में बरसात |
मौसम भी करने लगा, बेमौसम की बात ||

सफल वही आजकल, वही हुआ सिरमौर |
जिसकी कथनी और है, जिसकी करनी और ||

वैभव जो मिल जाय तो, करो न ऊँची बात |
चार दिनों की चाँदनी, फिर अंधियारी रात ||

पंछी चिंतित हो रहे, कहाँ बनायें नीड़ |
जंगल में भी आ गयी, नगरों वाली भीड़ ||




अंसार क़म्बरी



  • जन्म : 3–11–1950
  • पिता का नाम : स्व.ज़व्वार हुसैन रिज़वी
  • लेखन : ग़ज़ल, गीत, दोहा, मुक्तक, नौहा, सलाम, यदा-कदा आलेख एवं पुस्तक समीक्षा आदि
  • प्रकाशित कृति : ‘अंतस का संगीत’ (दोहा व गीत काव्य संग्रह) 
  • सम्मान : उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ व्दारा १९९६ के सौहार्द पुरस्कार एवं
  •                समय-समय पर नगर व देश की अनेकानेक साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं
  •                व्दारा पुरस्कृत व सम्मानित
  • सम्पर्क : ‘ज़फ़र मंजिल’ 11/116, ग्वालटोली, कानपूर – 208001
  • मो - 9450938629/ 9305757691
  • e-mail : ansarqumbari@gmail.com

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बहुत आभारी हूँ भाई - सुखी रहें ..

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  2. अंसार क़म्बरी के दोहे उत्तम हैं । वे श्रेष्ठ दोहाकार हैं । उन्हें बधाई और सुबोध जी पढ़वाने के लिए आप को धन्यवाद ।

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