कमला कृति

रविवार, 14 फ़रवरी 2016

वसंत: दो नवगीत-कल्पना मनोरमा


चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार


बासंतिक उल्लास..


बासंतिक उल्लास हृदय ले 
पीत पर्ण झरता 
नव लतिका के यौवन से 
मन उपवन सजता। 

लाल-लाल अंगारे जैसा 

वन पलाश फूला,
कंचन काया प्रकृति कामनी 
झूल रही झूला,
अंजुरीभव्य नजारे भर कर
पवन शोर करता। 

तितली मधुप प्रीत उर भर के 

देख रहे कलियाँ,
वनिता पहन झांझरें पग में
डोल रही गालियां,
कामदेव धार रूप सुहावन 
सब का मन हरता। 

सरिता सम्मोहित कर बहती 

ताक रहा झरना, 
लहरों पर इठलातीं किरणें 
सीख रहीं तरना,
सागर लेकर माल फेन की 
हर लेता लघुता,
नव लतिका के यौवन से 
मन उपवन सजता।


कंत वसंत सनेही आये..


पादप कुल को ऋतु वसंत ने 
दिया सुघड़ उपहार, 
खुशियों की पगडी संग लाया 
मदना केशर हार। 

नव-बसना हो नीम सुहाया 

आम्र चढ़ी तरुणाई
मनभावना सुरभित चादर में 
लिपट प्रकृति हर्षाई 
स्वर्ग लोक से उतरी रौनक 
कर अनुपम श्रंगार। 

फूले कीकर हुये दीवाने 

वेल अमर इतराई,
दूब घास से लेकर चम्पा 
लहर-लहर लहराई, 
डाल मंजरी हुई सुनहरी 
बन फूली कचनार। 


चंचल हवा बसंती डोली 
पहुँचा मधुकर बाग, 
रंग हाथ ले टेसू-सरसों 
खेलें उपवन फाग, 
फिरे छिपाये मुखड़ा सूरज 
रंगों का आधार। 

सौरभ लाई भोर थाल भर 

आया दिवस गुमान, 
कूलों में कोयल बौराई 
छाया राग वितान, 
कंत वसंत सनेही आये 
दिव्य लिये आकार 
खुशियों की पगडी ले आया 
मदना केशर हार। 


कल्पना मनोरमा 


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कानपुर (उ०प्र०)
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ईमेल –kalpna800mb@yahoo.com

3 टिप्‍पणियां:

  1. हमारे नवगीतों को अपनी पत्रिका में जगह देने के लिए आभार आदरणीय सुबोध जी ।

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