कमला कृति

मंगलवार, 21 जून 2016

नवीन सी चतुर्वेदी की ब्रज-ग़ज़लें


चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार


(एक)


मीठे बोलन कों सदाचार समझ लेवें हैं ।
लोग टीलेन कों कुहसार समझ लेवें हैं ॥

दूर अम्बर में कोऊ आँख लहू रोवै है।
हम यहाँ वा’इ चमत्कार समझ लेवें हैं ॥

कोऊ  बप्पार सों भेजै है बिचारन की फौज।
हम यहाँ खुद कों कलाकार समझ लेवें हैं ॥

पैलें हर बात पे लड्बौ ही सूझतौ हो हमें।
अब तौ बस रार कौ इसरार समझ लेवें हैं ॥

भूल कें हू कबू पैंजनिया कों पाजेब न बोल।
सब की झनकार कों फनकार समझ लेवें हैं ॥

एक हू मौकौ गँबायौ न जखम दैबे कौ।
आउ अब संग में उपचार समझ लेवें हैं ॥

अपनी बातन कौ बतंगड़ न बनाऔ भैया।
सार इक पल में समझदार समझ लेवें हैं ॥


(दो)


सब कछ हतै कन्ट्रौल में तौ फिर परेसानी ऐ चौं।
सहरन में भिच्चम –भिच्च और गामन में बीरानी ऐ चौं॥

जा कौ डस्यौ कुरुछेत्र पानी माँगत्वै संसार सूँ।
अजहूँ खुपड़ियन में बु ई कीड़ा सुलेमानी ऐ चौं॥

धरती पे तारे लायबे की जिद्द हम नें चौं करी।
अब कर दई तौ रात की सत्ता पे हैरानी ऐ चौं॥

सगरौ सरोबर सोख कें बस बूँद भर बरसातु एँ।
बच्चन की मैया-बाप पे इत्ती महरबानी ऐ चौं॥

सब्दन पे नाहीं भाबनन पे ध्यान धर कें सोचियो।
सहरन कौ खिदमतगार गामन कौ हबा-पानी ऐ चौं॥


(तीन)


कहाँ गागर में सागर होतु ऐ भैया।
समुद्दर तौ समुद्दर होतु ऐ भैया॥

हरिक तकलीफ कौं अँसुआ कहाँ मिल’तें।
दुखन कौ ऊ मुकद्दर होतु ऐ भैया॥

छिमा तौ माँग और सँग में भलौ हू कर।
हिसाब ऐसें बरब्बर होतु ऐ भैया॥

सबेरें उठ कें बासे म्हों न खाऔ कर।
जि अतिथी कौ अनादर होतु ऐ भैया॥

कबउ खुद्दऊ तौ गीता-सार समझौ कर।
जिसम सब कौ ही नस्वर होतु ऐ भैया॥

जब’इ हाथन में मेरे होतु ऐ पतबार।
तब’इ पाँइन में लंगर होतु ऐ भैया॥

बिना आकार कछ होबत नहीं साकार।
सबद कौ मूल - अक्षर होतु ऐ भैया॥


(चार)


अपनी खुसी सूँ थोरें ई सब नें करी सही।
बौहरे नें दाब-दूब कें करबा लई सही॥

जै सोच कें ई सबनें उमर भर दई सही।
समझे कि अब की बार की है आखरी सही॥

पहली सही नें लूट लयो सगरौ चैन-चान।
अब और का हरैगी मरी दूसरी सही॥

मन कह रह्यौ है बौहरे की बहियन कूँ फार दऊँ।
फिर देखूँ काँ सों लाउतै पुरखान की सही॥

धौंताए सूँ नहर पे खड़ो है मुनीम साब।
रुक्का पे लेयगौ मेरी सायद नई सही॥

म्हाँ- म्हाँ जमीन आग उगल रइ ए आज तक।
घर-घर परी ही बन कें जहाँ बीजरी सही॥

तो कूँ भी जो ‘नवीन’ पसंद आबै मेरी बात।
तौ कर गजल पे अपने सगे-गाम की सही॥


(पांच)


अँधेरी रैन में जब दीप जगमगावतु एँ। 
अमा कूँ बैठें ई बैठें घुमेर आमतु एँ॥

अब’न के दूध सूँ मक्खन की आस का करनी। 
दही बिलोइ कें मठ्ठा ई चीर पामतु एँ॥

अब उन के ताईं लड़कपन कहाँ सूँ लामें हम। 
जो पढते-पढते कुटम्बन के बोझ उठामतु एँ॥

हमारे गाम ई हम कूँ सहेजत्वें साहब। 
सहर तौ हम कूँ सपत्तौ ई लील जामतु एँ॥

सिपाहियन की बहुरियन कौ दीप-दान अजब। 
पिया के नेह में हिरदेन कूँ जरामतु एँ॥

तरस गए एँ तकत बाट चित्रकूट के घाट। 
न राम आमें न भगतन की तिस बुझामतु एँ॥



नवीन सी. चतुर्वेदी


  • 27 अक्तूबर 1968 को ब्रज-वैभव-कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा के मथुरास्थ माथुर चतुर्वेद परिवार में जन्मे  नवीन सी. चतुर्वेदी वैदिक-अध्ययन से तकनीकी-कारोबार तक का सफ़र करने वाले चुनिन्दा व्यक्तियों में शुमार होते हैं। मुम्बई में सीक्युरिटी-सेफ्टी-इक्विपमेण्ट्स के व्यवसाय में संलग्न, स्वभाव से संकोची नवीन जी छन्द, ग़ज़ल, गीत सहित काव्य की अनेक विधाओं के साथ ही साथ गद्य-लेखन से भी जुड़े हुये हैं। अन्तर्जालीय पोर्टल साहित्यम, लफ़्ज़ एवम् कविता-कोष आदि के सम्पादन से जुड़े हुये हैं। आपने कई ओडियो कैसेट्स के लिये लेखन किया है। आप ने ब्रज भाषा में न सिर्फ़ गजलें लिखी हैं बल्कि इस विधा को विधिवत स्थापित भी किया है। महाकवि बिहारी के भानजे कृष्ण कवि ककोर की वंश परम्परा से जुड़े ब्रज-गजल-प्रवर्तक नवीन जी को ब्रज-गजलों की पहली पुस्तक 'पुखराज हबा में उड़ गए' प्रस्तुत करने का श्रेय प्राप्त है। आप पिंगलीय-छन्दों व उर्दू-अरूज का अर्जित ज्ञान लोगों के साथ बाँटने को सहर्ष उद्यत रहते हैं। आप वर्तमान समय को साहित्य का क्षरण-काल मानते हैं तथा स्तरहीन-काव्य-आयोजनों के समक्ष सरस और वैचारिक कविताओं को पुनर्स्थापित करने के लिये समर्पित हैं। आप का सपना है जिस तरह उर्दू शायरी के पास उस का अपना प्रबुद्ध-श्रोता-वर्ग है, काव्य की अन्य विधाओं को भी उसी तरह अपने-अपने हिस्से का बुद्धिजीवी वर्ग हासिल करना चाहिये।

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (24-06-2016) को "विहँसती है नवधरा" (चर्चा अंक-2383) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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