कमला कृति

सोमवार, 28 अक्तूबर 2013

चार मुक्तक /हरि नारायण तिवारी

(एक)

बड़े-बड़े सरताज बदल जाते हैं
सुर संग्राम के साज बदल जाते हैं,
बड़े-बड़े सरताज बदल जाते हैं।
होता है बलवान समय का फेरा,
राजाओं के राज बदल जाते हैं।।
--

 (दो)
कभी-कभी संवाद बदल जाते हैं,
सम्बन्धी औलाद बदल जाते हैं।
जब प्रतिकूल पवन हो जाता जी,
कदम-कदम उस्ताद बदल जाते हैं।।
 --

(तीन)
साहूकार घटे हैं जो थे सवा बनाने को,
लोग लिप्त हैं अब तो नकली दवा बनाने को।
पूरा माल हजम करने को अजगर बैठे हैं,
बड़े-बड़े दिग्गज लगते हैं हवा बनाने को।।
 --

(चार)
झूठे मन वाले को सच्ची शपथ दिलाते हैं,
वे इतने उस्ताद कि जल में दूध मिलाते हैं।
फिर भी उन्हें मान्यवर कहकर इज्जत देते हम,
कोतवालों को चोर ही अब तो डाट पिलाते हैं।।

-हरि नारायण तिवारी
बी-112, विश्व बैंक कालोनी,
बर्रा, कानपुर-27

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें