कमला कृति

मंगलवार, 10 नवंबर 2015

ज्योति पर्व: उम्मीद की लौ-सुशीला शिवराण


चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार


रखना एक दिया..


इस दिवाली पर
रखना एक दिया
अंधे मन के आले में
कि हो कुछ उजाला
देख सकें 
मसली-रौंदी कलियों की लाशें
वहशत के अँधेरों के पार
हवस की अंधी आँखें
रखना एक और दिया
अकाल से बाँझ हुए
बंजर खेतों में

कि किसानों के साथ
गिरवी हर ईंट
अधमरी बहू-बेटियाँ
देख सकें कुछ उम्मीद
क़र्ज़ के नीम अंधेरों के पार
कि थम जाए
हताश ज़िंदगियों की
आत्महत्या का सिलसिला
एक दिया
जात-पाँत की उन्मादी
अँधी गलियों में भी रखना
जो सुरसा बन 
निगल जाती हैं
कभी कुलबर्गी
कभी अख़लाक़
कभी गोधरा
कभी भागलपुर को
रखना दीयों की कतार
जगमग राजपथ पर
कि अँधी सियासत
देख सके दीयों में
देश की माटी
कुम्हार का पसीना
मुनिया के सपने
मुल्क़ की तक़दीर
शायद !

देखो ! तुम हारना नहीं
घुप्प अँधेरों में
उम्मीद की लौ
जलाए ही रखना 
रखोगे ना !


फैले जग उजियार..


देहरी दीपक जल रहा, मन में तम का द्वार।
मन-अँधियारा दूर कर, फैले जग उजियार।।

शम्मा से कहने लगी, रौशन हर कंदील।
आ अब ग़म को कर चलें, ख़ुशियों में तब्दील॥

दीया-बाती-रोशनी, दुनिया करती बात। 
तिल-तिल जलता तेल है, सारी-सारी रात॥

दीपक-सी पावन सजन, तेरी-मेरी प्रीत।
देख हवा भी तेज़ है, तेल न जाए रीत॥


सुशीला शिवराण


बदरीनाथ–813,
जलवायु टॉवर्स सेक्‍टर-56,
गुड़गाँव–122011
दूरभाष–09873172784
ईमेल-sushilashivran@gmail.com

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