कमला कृति

बुधवार, 19 फ़रवरी 2020

पुस्तक समीक्षा : दफ़न हुए शिलालेख



            
            यूँ तो इन्द्रधनुष सात रंगों का होता है, पर किसी भी ज़िंदगी में सिर्फ इतने ही रंग नहीं होते…। जीवन के अलग अलग रंगों को अपनी तेरह कहानियों में पिरो कर श्री हरभजन सिंह मेहरोत्रा ने ‘दफ़न हुए शिलालेख’ शीर्षक अपने कथा-संग्रह में पाठकों के सम्मुख रखा है । इस संग्रह की हर कहानी अपने एक नए कथानक, नए कलेवर में जब सामने आती है तो पाठकों को कुछ इस कदर बाँध लेती है कि अगली कहानी पढने की इच्छा खुद-ब-खुद जाग जाती है । चाहे वो ‘आज एक भेड़िया मारेंगे’ में एक इंसान के अन्दर विपरीत परिस्थितियों में भी बची इंसानियत हो, या फिर ‘जवाबदेह’ कहानी में मानसिक रूप से अक्षम माँ और एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार की परेशानियों में घिरे बेटे के बीच के रिश्ते की कहानी है। कहानी में नायक का सोचना- इससे अच्छा कि माँ मर जाए-किसी भी संवेदनशील इंसान को अन्दर तक झकझोर देता है ।

            मेरी दृष्टि में इस संग्रह की सबसे अनूठी कहानी बिलकुल आखिर में दी गई ‘माँ को क्या हो गया है’ शीर्षक कहानी है । किसी लेखक को इंसान के नज़रिए से रिश्तों को परखते-समझते तो हमने बहुत बार देखा है, पर इस कहानी को पढ़ने के बाद हरभजन जी की कल्पनाशीलता और अपने आसपास के परिवेश का सूक्ष्म विश्लेषण कर पाने की क्षमता की दाद देनी पड़ती है । एक नन्हा चितकबरा पिल्ला किस प्रकार अपनी माँ द्वारा पहले के मुकाबले कम प्यार किये जाने से न केवल आहत और दुविधाग्रस्त महसूस करता है, बल्कि सामने के घर में रहने वाली लाल कपड़ों वाली लड़की से उसके जुड़ाव को भी लेखक ने एक पिल्ले के मनोभावों के माध्यम से ही बड़ी खूबसूरती से दर्शाया है ।
             इन कहानियों के अलावा अपने अनोखे कथानक और परिवेश के कारण जो दो कहानियाँ पाठकों के मानस-पटल पर शर्तिया अपनी छाप छोड़ेंगी, वो हैं ‘जिजीविषा’ और ‘मदारी’ , ‘जिजीविषा’ कहानी में जिस तरह एक पनडुब्बी के अन्दर अपनी मौत का इंतज़ार कर रहे पाँच लोगों की मनोदशा का एकदम सटीक और गहन वर्णन किया गया है, उससे हर पाठक खुद को भी उन्हीं का एक हिस्सा मान कर उनकी उस पीड़ा से बहुत गहरे तक जुड़ जाएगा । ‘मदारी’ कहानी एक बहुत ही अनोखे थीम पर रची गई कथा है । लेखक की फैक्ट्री में एक दुर्घटना अवश्यंभावी है और समय रहते उसे टालने का सिर्फ एक उपाय उनको नज़र आता है कि अपने पूर्व-परिचित एक मदारी अल्लन की सहायता से उस दुर्घटना को टाला जाए ।
          बेहद सधे ढंग से लिखी गई यह कहानी वैसे तो पाठकों के अन्दर आगे के घटनाक्रम के प्रति एक सहज उत्सुकता बनाए रखती है, परन्तु कई जगह कुछ तकनीकी वर्णन पाठको को कहानी से थोड़ा अलग भी कर सकता है । चूँकि कहानी का ताना-बाना इस तरह का है और लेखक खुद अभियांत्रिकी विभाग से सम्बद्ध हैं, इसलिए इस तरह के वर्णन को हम कहानी की ज़रूरत के हिसाब से सहज रूप से पिरोया हुआ भी कह सकते हैं । ‘हाशिए’ शीर्षक कहानी आत्मकथात्मक है। यह कहानी लेखक की निजी ज़िंदगी के बहुत करीब कही जा सकती है | कथा संग्रह की शीर्षक कथा ‘दफ़न हुए शिलालेख’ बाप बेटे के संबंधों को एक अलग नज़रिये से प्रस्तुत करती हुई बहुत सशक्त कहानी है। हाँ, मेरे हिसाब से अगर इस कहानी का शीर्षक-चल खुसरो घर आपने- होता तो शायद ज़्यादा सटीक बैठता ।
           कहानी के हिसाब से अगर शीर्षक की सटीकता की बात करें तो इस श्रेणी में मैं ‘अपंग’ शीर्षक कहानी को रखूँगी । हमारी संवेदनाएँ किस कदर अपंग हो चुकी हैं, इसको जिस तरह से इस कहानी में बयान किया गया है, वह हरभजन जी की लेखनी की मजबूती ही दर्शाता है । बस एक कमी जो इस कहानी में खटकती है वह है- कहीं कहीं इसके वाक्यों का बहुत लंबा हो जाना । इस तरह के वाक्य पाठकों की एकाग्रता भंग करके कहानी को कभी कभी बोझिल भी कर देते हैं । इन कहानियों के अलावा संग्रह की बाकी कहानियाँ जैसे कि- अधूरी प्रेम कहानी, अनुत्तरित, चक्रव्यूह और मृगतृष्णा अपने अपने स्तर पर विभिन्न विषयों का निर्वाह तो करती हैं, पर मेरे हिसाब से उन्हें सामान्य कहानियों की श्रेणी में रखा जा सकता है | कुल मिला कर हरभजन सिंह मेहरोत्रा का यह कथा संग्रह अपने पास संजो कर रखा जाने वाला एक संग्रह कहा जा सकता है, जो निःसंदेह पाठकों की कसौटी पर खरा उतरेगा।


दफ़न हुए शिलालेख (कहानी संग्रह)/ लेखक- हरभजन सिंह मेहरोत्रा/ प्रकाशक- अमन प्रकाशन/मूल्य- रु. 140/= मात्र

समीक्षक-प्रियंका गुप्ता


2 टिप्‍पणियां:

  1. मैं आभारी हूं प्रियंका गुप्ता का जिन्होंने मेरे कहानी संग्रह दफन हुये शिलालेख की समीक्षा लिखी|

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