कमला कृति

मंगलवार, 29 जुलाई 2014

आज का शिल्पकार व अन्य कविताएं-सुशीला शिवराण


चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार


आज का शिल्पकार


आज का शिल्पकार
जानता है बेचने का हुनर
गुणवत्ता को घटा
लगाता है फ़िनिशिंग में
पैकिंग में रक़म
आवरण का चटक सौन्दर्य
खींच लेता है दृष्‍टि को
आँखों का लोभ
चौंधिया देता है विवेक को !



शिल्प का पुजारी
उम्रभर साधनारत
गढ़ता है एक से एक मूरत
अद्‍भुत भंगिमाएँ
मोहक वक्र
नैसर्गिक सौंदर्य
सादगी से भरपूर
उसकी साधना
उसकी कला
नहीं बन पाई
किसी की नज़र का नूर
पड़ी ही नहीं
किसी की नज़र|

बिकती रही तड़क-भड़क
ठेलती रही सादगी को
मूक खड़ा रहा शिल्पी
मज़बूती से थामे अना को ।



कब आओगे मेरे पावस?


तुम्हारे प्रेम ने
पुरवा बन
जब-जब छुआ मुझे
झंकृत हुए मन के तार
झूम उठा अंग-प्रत्यंग
गा उठा मन
प्रीत के गीत  ।

तुम्हारे प्रेम ने
पावस बन
जब-जब भिगोया मुझे
जी उठी मैं
ज्यों तपती रेत
हो जाती है तृप्त
रिमझम बारिश में
आनंद से विभोर
हुलस उठा मन
नाचा बन मोर।

तुम्हारा प्रेम
मानता है सब नियम
नहीं रहता स्थायी
बदलता है प्रकृति-सा
हो जाता है पतझर
झर जाते हैं अहसास
जड़ हो जाते हैं
मन-आत्मा।

नहीं पोसता तुम्हारा प्रेम
हो जाती हूँ ठूँठ
सहती हूँ मौसम की मार
निर्विकार
दग्ध अंतस लिए
खड़ी हूँ उन्मन
थिर आँधियों में
चिर-प्रतीक्षा में
कब आओगे मेरे पावस?



टूटे सपने 


कुछ टूटे हुए सपने
मन के तहख़ाने में
रख दिए हैं महफ़ूज़
गाहे-ब-गाहे
चली जाती हूँ सँभालने
सहलाती हूँ
छाती से लगाती हूँ
सील गए हैं मेरे सपने
उनकी सीलन
दिमाग की नस-नस में फैलने लगी है
घुट रहे हैं मेरे सपने
जिनकी घुटन से
घुटने लगा है मेरा दम
और मैं घबराकर
तहख़ाने से भाग आती हूँ
खुली हवा, धूप में
और पुकारती हूँ तुम्हें
कब करोगे आज़ाद
सीलन भरे तहख़ाने से
दम तोड़ते हुए मेरे सपनों को
कब दोगे इन्हें
इनके हिस्से की धूप
मुझे ज़िंदगी ।


प्रेम


अनजानी राहों से
दरिया, पर्वतों को लांघ
चला ही आया
तुम्हारा प्रेम।

चुपके-से अँधेरे को चीर
नींद से कर वफ़ा के वादे
आ बैठा सिरहाने
सहलाता रहा केश
चूम ही लिया
मुँदी पलकों को
बिखरी अलकों में
उलझ गए तुम्हारे नयन।

होठों की जुंबिश
बुलाती रही तुम्हें
और तुम
निहारते ही रहे
मेरे चेहरे के दर्पण में
अपनी ही छवि !

सुशीला शिवराण


बदरीनाथ – 813
जलवायु टॉवर्स सेक्‍टर-५६
गुड़गाँव – 122011
दूरभाष – 09873172784
email – sushilashivran@gmail.com






सुशीला शिवराण



  • जन्म : २८ नवंबर १९६५ (झुंझुनू , राजस्थान)
  • शिक्षा : बी.कॉम.,दिल्ली विश्‍वविद्‍यालय, एम. ए. (अंग्रेज़ी), राजस्थान विश्‍वविद्‍यालय, बी.एड., मुंबई विश्‍वविद्‍यालय ।
  • पेशा : अध्यापन। पिछले बाईस वर्षों से मुंबई, कोचीन, पिलानी,राजस्थान और दिल्ली में शिक्षण।वर्तमान समय में सनसिटी वर्ल्ड स्कूल, गुड़गाँव में शिक्षणरत।
  • रूचि : हिन्दी साहित्य, कविता पठन और लेखन में विशेष रूचि। स्वरचित कविताएँ और हाइकु कई पत्र-पत्रिकाओं – हरियाणा साहित्य अकादमी की “हरिगंधा”,  अभिव्यक्‍ति–अनुभूति, नव्या, अपनी माटी, सिंपली जयपुर, कनाडा से निकलने वाली “हिन्दी चेतना”, सृजनगाथा.कॉम, आखर कलश, राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर की जागती जोत, हाइकु दर्पण, दैनिक जागरण और अमेरिका में प्रकाशित समाचार पत्र “यादें” में प्रकाशित। हाइकु, ताँका और सेदोका संग्रहों में भी रचनाएँ प्रकाशित।
  • ऑल इंडिया रेडियो पर अनेक बार कविता पाठ, दूरदर्शन पर दोहा-गोष्‍ठी में आमंत्रित
  • २३ मई २०११ से ब्लॉगिंग में सक्रिय। मेरे चिट्‍ठे (वीथी) का लिंक –
  • www.sushilashivran.blogspot.in
  • इसके अतिरिक्‍त खेल और भ्रमण प्रिय। वॉलीबाल में दिल्ली राज्य और दिल्ली विश्‍वविद्‍यालय का प्रतिनिधित्व।
  • बदरीनाथ – 813, जलवायु टॉवर्स सेक्‍टर-५६, गुड़गाँव–122011
  • दूरभाष – 09873172784


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