कमला कृति

शनिवार, 5 जुलाई 2014

नीलम चंद्रा की कवितायें


अनूठी प्रेम कहानी

धरती बंधी है
सूरज की सीमाओं से
और जैसा जैसा वो चाहता है
धरती वैसे वैसे अपने आप को ढाल लेती है

सावन के महीने में
भिजवाता है वो बादलों से प्यार की मनुहार
और धरती उसकी प्यार भरा संदेसा सुन
करने लगती है सोलह श्रृंगार
हरियाली का घूँघट ओढ़े
फूलों से अपनी मांग सज़ा
पिया मिलन को चल देती है...

जब सूरज आराम करना चाहता है
और खो जाता है दूर कहीं
हर तरफ धुंध ही धुंध छा जाती है
धरती भी ठण्ड से ठिठुरने लगती है
क्षण भर को निराश भी होती है
पर फिर इसी इंतज़ार में
कि कभी तो वो मुड़कर उसे देखेगा
सारे गम अपने जिरह में छुपा जाती है...

जब गुस्से में सूरज लाल हो उठता है
और अपने तेज से
हर तरफ हाहाकार मचने लगता है
धरती भी मुरझा जाती है
उसके सिंगार सारे
एक एक कर झड़ने लगते हैं
पर वो जानती है
कि एक दिन उसका प्रियतम
जरूर आएगा उसके पास
और वो झुलस झुलस कर भी
यही कहती है,
“पिया, मैं तेरी वंदिनी!

धरती की प्रेम कहानी की
नहीं कोई मिसाल
चलती रहेगी ये तो
सालों साल

परिंदे

परिंदों के पंख
नाज़ुक होते हैं
और वो अपनी यह कमजोरी
बखूबी जानते हैं
और शायद इसीलिए
अपने मन को बना लेते हैं
सुदृढ़ और प्रबल...

परिंदे
अपने जीवन की डोर
कभी नियति के हाथ में
नहीं सौंपते
बल्कि
उसे थामे रहते हैं
अपने उस प्रबल मन के
छोर से...

तभी ये परिंदे
कभी आसानी से
हार नहीं मानते,
रो रो आंसू नहीं बहाते,
न ही किसी कोप भवन में
रुष्ट होकर बैठते हैं;
क्योंकि ये जानते हैं
कि जिंदगी में
और भी बहुत कुछ है
आगे बढ़ने के लिए...

कल्पना

मुझे जाना है वहाँ
खुशी ही खुशी हो जहां
ना हो आंसू ना कोई गम
सिर्फ साज़ गुनगुनाएं जहां

मुझे जाना है वहाँ
मैं पतंग सी फिरती रहूं जहां
मस्तानी सी हो मेरी चाल
आसमानों में डोलती रहूं यहाँ वहाँ

मुझे जाना है वहाँ
क्षितिज धरा से मिलती हो जहां
मन मेरा लहरों सा मचले
और मैं देखती रहूं खूबसूरत समां

जानती हूँ मैं
कल्पित हैं मेरे सपने
पर ना जाने क्यूँ मुझे
ये लगते हैं अपने!!!


मज़ा कुछ और ही है..

जिंदगी का लुत्फ़ बूंदबूंद लेने का मज़ा कुछ और ही है
अपनी राह खुद खोजने का मज़ा कुछ और ही है...

ना जाने कश्तियाँ क्यूँ ढूँढती हैं किनारा
भयानक तूफानों से लड़ने का मज़ा कुछ और ही है...

ना जाने यह बेलें क्यूँ ढूँढती हैं सहारा
खुद पर विश्वास करने का मज़ा कुछ और ही है...

ना जाने चाँद क्यूँ माँगता फिरता है रौशनी
रौशन खुद के पथ करने का मज़ा कुछ और ही है...

ना जाने समंदर क्यूँ जा मिलता है क्षितिज से
लहरों को अंक में समेटने का मज़ा कुछ और ही है...


अरमान कभी झूठ नहीं बोलते..


अरमान कभी झूठ नहीं बोलते

वो नित आगे बढ़ना सिखाते हैं
ना रुकने की सीख देते जाते हैं
कभी उड़ते हुए, कभी लडखडाते हुए
वो तो प्रेरित ही करते जाते हैं

अरमान कभी झूठ नहीं बोलते

वो तो हमें मंजिल दिखलाते हैं
ध्येय हमारे होठों पर लाते हैं
नाकामी के लिए जगह ही नहीं होती
सदा प्रगति और उन्नति चाहते हैं

अरमान कभी झूठ नहीं बोलते

ना ही अरमान कभी गलत होते हैं
ना ही मंजिलें, ना ध्येय हमारे
हम कभी कभी गलत राह अपना लेते हैं
और सोचते हैं अरमान गलत थे हमारे

 पर...
अरमान कभी झूठ नहीं बोलते

नीलम चंद्रा

Director (Computers)
RDSO, C-164, RDSO,
Manak Nagar, Lucknow-226011


संक्षिप्त परिचय


  • नीलम चंद्रा एक इंजीनियर हैं व रेलवे में डायरेक्टर के पद पर कार्यकृत हैं| आपकी चौदाह पुस्तक छाप चुकी हैं| कवितायेँ एवं कहानियां लिखना आपका शौक है| आपकी छह सौ से अधिक कहानियां/कवितायें विभिन्न राष्ट्रीय (जैसे सरिता, मुक्त, गृहशोभा, वनिता, गृहलक्ष्मी, कथाक्रम, नया ज्ञानोदय, नंदन, चंपक, बालभारती, रीडर्स फोरम, चंदामामा, बालहंस, वोमंस इरा इत्यादि) एवं अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं (जैसे तोरिड लिटररी मेगजीन, एन्चानटिंग वर्सेस, फ्रोग क्रून, ई-वुमन इत्यादि) में छप चुकी हैं|


  • विभिन्न अवार्ड्स
  • Awarded by eminent poet/lyricist Gulzarji in a Poetry Contest organized by American Society on the topic ‘Poetry for Social Change’.
  • Received the Rabindranath Tagore International poetry award -2014
  • Awarded Premchand Puraskar by Ministry of Railways (II prize).
  • Awarded by Children Book Trust, India in 2009

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