चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
मौसम भी वाचाल हो रहा..(गीत)
मौसम भी वाचाल हो रहा,
आओ, कुछ बतिया लें !
आया है वसन्त बाग़ों में,
मुसकातीं कलियाँ लाखों में,
हर दिशि में सौरभ बिखरा है,
धरती पर अनंग उतरा है,
भौरे भी अलमस्त गा रहे,
कुछ मस्ती हथिया लें ।
गेहूँ पर कैशौर्य छा गया,
हुक्के लेकर चना आ गया,
सरसों की चुनरी पियरायी,
प्रकृति-पालने स्वस्ति पल रही,
इस पर भी पतिया लें ।
रंगों का मौसम आने को,
औघड़ फागुन बौराने को,
नागफनी लगती पलाश है,
उसको भी पी की तलाश है,
पुरवा प्रीति-पत्रिका बाँचे,
क्यों न उसे छतिया लें !
पोर-पोर जीवन..
धारयित्री को
नवजीवन देने
आया वसन्त !
पञ्चवाण ने
देख भर लिया है
वसुन्धरा को,
पूर्ण कामना;
मिला नव्य यौवन
पीत जरा को
दसों दिशाएँ
स्वागत को आतुर,
आओ महन्त !
देह हुई है
कंचन-कंचन--सी
उष्मा पाकर;
नयी कोपलें,
पोर-पोर जीवन,
हर्षा अन्तर,
कल्पद्रुम है
एक-एक फुनगी,
शोभा अनन्त!
जब आया मधुमास (दोहे)
स्वागत में ऋतुराज के, बिछे पर्णकालीन ।
वन्दन-अभिनन्दन करें, दिशि-दिशि भ्रमर प्रवीन ।।
धरती का वैकल्य लख, आ पहुँचा ऋतुराज ।
नवकोपल के वस्त्र से, लगा ढाँपने लाज ।।
नयी कोपलों से हुआ, वट लज्जा से लाल ।
पीपल ताली पीटता, देख विटप के हाल ।।
फूलों पर छायी हँसी, कलियों पर मुस्कान ।
पत्ती-पत्ती चंचला, सुन भ्रमरों का गान ।।
फुनगी-फुनगी हँस रही, पल्लव उगे नवीन ।
हर कोई रसवन्त है, रहा न कोई हीन ।।
आम्रकुंज में मंजरी, देती मदिर सुवास ।
कचनारी कलियाँ खिलीं, निरख-निरख मधुमास ।।
दसों दिशाओं में भरी, मनमोहनी सुगन्ध ।
भीनी-भीनी गन्ध से, मौसम का अनुबन्ध ।।
कामदेव के बाण से, आहत अंग-प्रत्यंग ।
महादेव की भी हुई कठिन तपस्या भंग ।।
खुलने को व्याकुल हुए, लाज-शरम के बन्द ।
ऐसे में कैसे रचे, मन संयम के छन्द !
पतझर और वसन्त से, प्रकृति बनी अभिराम ।
शिव-ब्रह्मा जैसे करें, अपना-अपना काम ।।
वसन्त आया (कविता)
आ चलें, देखें, वसन्त आया !
गया पतझर दिगम्बर,
धरा सजने लगी—
फ़सल गेहूँ की’ जैसे हो हरी चूनर,
खिली सरसों की’ छापी पीतवर्णी,
किनारी-सी सजी है बर्र, देखो, नीलवर्णी,
लगी हैं कानाफुस्की में किशोरी बालियाँ,
सहेली बन हवा करने लगी अठखेलियाँ,
मटर की छीमियों के पड़ गये झूले
उठाये हाथ में हुक्के चने फूले,
किनारे खेत में चुप है खड़ा गन्ना
बीज बनने की प्रतीक्षा में,
रस पिलायेगा वो अगले साल ।
ख़ुशी से कूकती कोयल
कि आया आम पर फिर बौर,
मगन-मन खोजता महुआ,
कहाँ है वारुणी का ठौर ?
तपस्वी वट के सिर बैठीं
सहस्रों कोपलें,
कि उसके हाल पर ताली बजाता
हँस रहा पीपल ।
लदा फूलों से हरसिंगार,
सजा सेमल पहन कुण्डल,
गमकती रात की रानी,
दहकते गुलमोहर का है कोई सानी !
खिले हैं पुष्प निर्जन में,
सुरभि व्यापी है कण-कण में।
भ्रमर मचलाः बजायी बीन,
तितलिका भी हुई रंगीन
पवन डोलाः सुरभि बिखरी,
दिशा हर महमहा उट्ठी ।
नयन-भर देखता अम्बर
कि उतरा स्वर्ग धरती पर
नज़र उसको न लग जाए,
कि उसने तान दी चादर—
टँके जिसमें/सहस्रों चाँद-तारे,
सजे जिसमें/सुनहरे-श्वेत-भूरे मेघ कजरारे,
हृदय, आनन्द की वर्षा छुपाये,
धरा के रूप का रसपान करने/दौड़ते आये ।
दिवस बीता ठिठोली में,
हुई सन्ध्या, छलकती लालिमा,
नभ हो गया मधुपात्र जैसे,
जिसे देखो वही नश्शे में जैसे !
क्षितिज के अंक में है क्लान्त दिनकर
विहँस उट्ठी तमिस्रा तान चादर,
अनैतिकता हुई आश्वस्त,
अहा! सूरज हुआ है अस्त ।
मनुज की फिर गयी है मति,
रुके कैसे अधोगति?`
हुई तत्काल बैठक उडुगनों की,
हुआ प्रस्ताव पारित—
उजाला सूर्य का लेकर
बनेगा चन्द्रमा प्रहरी धरा का ।
समुज्ज्वल अमृत की वर्षा,
चतुर्दिक शान्ति का शासन,
अघट घटने को था लेकिन,
हुआ है उसका निर्वासन ।
प्रहर अष्टम अभी बस बीतने को,
कि देखो, चन्द्रिका पसरी धरा पर,
कि देखो, ओस बैठी दूर्वा पर,
प्रतीक्षा भोर की करती—
पधारे सूर्य ज्यों ही,
चरन उसके पखारे,
सकल सर्वस्व वारे !
प्राण दूँ मैं भी उसी पर वार,
दीप्त कर दे जो सकल संसार !
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राजेन्द्र वर्मा
- जन्म-8-11-1957 (बाराबंकी, उ.प्र.)
- प्रकाशन-प्रसारण-गीत, ग़ज़ल, दोहा, हाइकु, कहानी, लघुकथा, व्यंग्य, निबन्ध आदि
- विधाओं में बीस पुस्तकें प्रकाशित । महत्वपूर्ण संकलनों में सम्मिलित ।
- विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ एवं समीक्षाएँ प्रकाशित ।
- लखनऊ दूरदर्शन तथा आकाशवाणी से रचनाएँ प्रसारित ।
- पुरस्कार-सम्मान-उ.प्र.हिन्दी संस्थान के व्यंग्य व निबन्ध-नामित पुरस्कारों सहित देश की
- अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित ।
- अन्य-लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा रचनाकार पर एम्.फिल । अनेक शोधग्रन्थों में संदर्भित ।
- कुछ लघुकथाओं और ग़ज़लों का पंजाबी में अनुवाद ।
- चुनी हुई कविताओं का अँगरेज़ी में अनुवाद ।
- सम्प्रति-भारतीय स्टेट बैंक में मुख्य प्रबन्धक के पद से सेवानिवृत्ति के बाद स्वतन्त्र लेखन।
- सम्पर्क-3/29 विकास नगर, लखनऊ (उ.प्र.)-226022
- मो. 80096 60096
- ई-मेल: rajendrapverma@gmail.com
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (11-02-2019) को "खेतों ने परिधान बसन्ती पहना है" (चर्चा अंक-3244) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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बसन्त पंचमी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक आभार मयंक जी..
हटाएंब्लॉग बुलेटिन टीम की और मेरी ओर से आप सब को बसंत पंचमी और सरस्वती पूजा पर बधाइयाँ और हार्दिक शुभकामनाएँ |
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 10/02/2019 की बुलेटिन, " बसंत पंचमी और सरस्वती पूजा पर बधाइयाँ और हार्दिक शुभकामनाएँ “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
हार्दिक धन्यवाद शिवम जी! आपको भी वसंत पंचमी की अशेष मंगलकामनाएँ
हटाएंबहुत सुन्दर ! वसंत के हर रूप का विषद और मोहक वर्णन !
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार उपस्थिति एवं सुंदर प्रतिक्रिया के लिए!
हटाएंवाह सांगोपांग बसंत वर्णन सभी रचनाएँ सुंदर सुघड़ सरस।
जवाब देंहटाएंप्रेरक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद!
हटाएंवाह बहुत सुन्दर वर्णन आदरणीय
जवाब देंहटाएंसादर
हार्दिक आभार अनिता जी..
हटाएंमेरी रचनाओं की सराहना हेतु सभी सहृदों का आभार!
जवाब देंहटाएंराजेन्द्र वर्मा