चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
कौन था जो मुख़्तसर..
कौन था जो मुख़्तसर पूरी कहानी लिख गया
होंठों' से मेरे बदन पर रातरानी लिख गया।
बावरा मन गिन रहा था देह की जब रंगतें
कौन धीरे से मुहब्बत की निशानी लिख गया।
छू रहीं थीं सर्द रातों में हवाएँ जब तुझे
चूमकर मैं होंठ तेरे बेज़ुबानी लिख गया।
फुनगियों पर शाम को जब धूप ठहरी देर तक
सूर्य फिर आकाश में आदत पुरानी लिख गया।
अलगनी भी रो रही है चीथड़ों के साथ साथ
टीसते इस दर्द की पूरी कहानी लिख गया।
धूप क्या है छाँव क्या है कुछ पता मुझको नहीं
देखते ही देखते ग़ज़लें रूहानी लिख गया।
प्यास थी कोई हठीली तेरी नज़रों में प्रिये!
सांस को तब खुशबुओं से ज़ाफ़रानी लिख गया।
नहीं बादल सुनाता गीत..
मचलने का हुनर मैं जानता हूँ आज भी
महकने का हुनर मैं जानता हूँ आज भी।
नहीं बादल सुनाता गीत बूंदों का अगर
बरसने का हुनर मैं जानता हूँ आज भी।
मेरी तन्हाईयाँ मुझसे लिपटकर रो रहीं
तड़पने का हुनर मैं जानता हूँ आज भी।
बहुत भोली तेरी चितवन लगी मुझको प्रिये!
बहकने का हुनर मैं जानता हूँ आज भी।
इशारों से हुआ घायल ये दिल कहने लगा
धड़कने का हुनर मैं जानता हूँ आज भी।
नहीं कुछ सोचना मुझको तेरी बाहों में अब
पिघलने का हुनर मैं जानता हूँ आज भी।
तेरे अधरों की गरमी से जलूँगा रातभर
दहकने का हुनर मैं जानता हूँ आज भी।
भरी है नेह की गागर हृदय की देह में
छलकने का हुनर मैं जानता हूँ आज भी।
मुझे हिम्मत मिली मेरे ख़ुदा से उम्रभर
सम्भलने का हुनर मैं जानता हूँ आज भी।
अवनीश त्रिपाठी
ग्राम/पोस्ट-गरएं,भरखरे
सुलतानपुर (उ.प्र.)-227304
ई-मेल-tripathiawanish9@gmail.com
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