कमला कृति

बुधवार, 12 सितंबर 2018

देवेन्द्र सफल के गीत


चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार


बादल बरसे हैं..


आँखें भीगीं, होंठ आचमन
तक को तरसे हैं
प्यासों का घर छोड़ महल पर
बादल बरसे हैं ।

उमड़-घुमड़, झूमें, गरजें घन
तपिश बढ़ा जायें
जैसे जल बिन मछली तड़पे
वैसे तड़पायें
हम इनसे अनुनय कर हारे
ढीठ, निडर -से हैं ।

हवन–यज्ञ सब निष्फल कैसे
नई फसल बोयें
हल जोता अम्मा–चाची ने
इंदर खुश होयें
हरियाली गुम हुई खेत
ऊसर बंजर -से हैं

पोखर, ताल- कुँआ बेबस हैं
सूखी नहर–नदी
सागर अट्टहास करता
मुट्ठी में नई सदी
भूखे लोग देव को अपनी
थाली परसे हैं ।


कर्मयोग के तुम ज्ञाता हो..


कर्मयोग के तुम ज्ञाता हो
तुम गाण्डीव धनुर्धारी हो
तुमको कितना याद दिलायें
शोभा तुम्हें नहीं देती हैं
व्रहन्नला-वाली मुद्रायें ।

सूरज जैसे तेजस्वी,तुम
रहे उजाले की परिभाषा
शरशैया पर पड़े भीष्म की
तुमने पूरी की अभिलाषा
शंखनाद जब किया युद्ध में
बैरी की बढ़ गयीं व्यथायें ।

कालजयी जन -जन के नायक
जग में चर्चित कीर्ति तुम्हारी 
बने सारथी युद्ध-भूमि में,रहे
हांकते रथ गिरधारी
कर्मयोग के तुम ज्ञाता हो
नीति भला क्या तुम्हें बतायें ।

द्वापर की वो बात और थी
कलयुग में मत वेश बदलना
शर्तों पर अधिकार मिले तो
जीते जी होता है मरना
अब गूँजे स्वर देवदत्त का
गूँज उठें फिर सभी दिशायें ।


सूरज के घर उथल पुथल है..


फिर चर्चा हर ओर हो रही
सूरज के घर उथल पुथल है ।

दियासलाई सोचे अब तो 
अपने मन का काम मिलेगा
ख़ुशी मनाते जुगनू अब तो 
अपना भी कुछ मान बढ़ेगा
उल्लू, चमगादड़ के डेरों
में भी दिखती चहल पहल है।

झींगुर छेड़े राग बेसुरा
स्यार बोलते हुआ- हुआ सब
अजब तमाशा शुरू हुआ है
सभी दिखाना चाहें करतब
जंगल-जंगल शोर मच गया
शुभ दिन आने वाला कल है ।

इधर बढ़ी मावस की स्याही
उधर गगन में चमकें तारे
सब अपने मन ही मन सोचें
शायद बदलें भाग्य हमारे
रवि की महिमा चन्दा समझे
तभी छुपा वह अगल बगल है ।


हमसे मांग रहे जवाब अब..


छोटे प्रश्नों के समूह भी
इतने हुए बड़े
हमसे मांग रहे जवाब अब
कई सवाल खड़े।

कैसे उनके हक़ में आये
जंगल और नदी
क्यों पंछी रटते पिंजरों में
नेकी और बदी
प्रगतिशील भी यहां रूढ़ियों में
अब तक जकड़े।

कुछ के अधरों पर मुस्कानें
कुछ के होंठ सिले
कुछ को फूलों के गुलदस्ते
कुछ को शूल मिले
निर्गुट में गुटबन्दी है, क्यों
दिखते कई धड़े ।

जल, थल,वायु,वनस्पतियों नें
सबको सुख बांटे
हम क्यों खुशियाँ लुटा न पाये
खींचे सन्नाटे
किसने लिखा हमारी किस्मत
में अगड़े-पिछड़े ।

क्यों हंगामा बरपा, कोई
गया नहीं तह में
पत्थर इतनी तेज उछलते
दर्पण हैं सहमें
आदमखोर सियासत के क्यों
हैं चौड़े जबड़े ।


सुना भूख के दरवाजे पर..


सुना भूख के दरवाजे पर
बजता अलगोजा
लगता रटे, पेट पर अपने
पत्थर रख सो जा ।

सूत नहीं पर राजाज्ञा है
चले खूब चरखा
आधी रोटी मिली उसी को
चबा-चबा कर खा
जितनी झुकती कमर ,और
उतना बढ़ता बोझा।

सबको भूख सताती,वह हो
पण्डित  या मुल्ला
कोई मरता भूखा तो 
मचता हल्लागुल्ला
राजा हँस-हँस खाता है
आयातित  चिलगोजा ।

बैठक हुई, मन्त्रिमण्डल ने
माथा पच्ची  की
फोटो छपी न्यूज पेपर में
हँसती बच्ची की
नीचे लिखी अपील, सब रखें
अब नित व्रत-रोज़ा ।

राजा कहता जन-गण-मन
अधिनायक गान करो
लेकिन अपनी हद में रहकर
डूबो और मरो
समझो, राजा तो राजा है
परजा है परजा ।


जाने क्यों मेरा बीता कल..


जाने क्यों मेरा बीता कल
मुझको याद करे
जितना दूर-दूर रहता
उतना संवाद करे ।

मेरे सिरहाने आ बैठा
खुलकर बोल रहा
बचपन की खोई किताब के
पन्ने खोल रहा
वह रातों की  नींद उड़ाए
दिन बरबाद करे।

कभी गोद में मुझे उठा ले
कभी गाल चूमें
कभी थाम कर ऊँगली मेरी
साथ-साथ घूमें
मेरे गूंगे शब्दों का भी
वह अनुवाद करे ।

बाग, खेत -खलिहान,पोखरे
तुम कैसे भूले
बता रहा फागुन की मस्ती
दिखा रहा झूले
लौट चलो अपने अतीत में
फिर फरियाद करे ।

कहता, निष्ठुर-निर्मोही तू
मुझसे दूर हुआ
सोंधी रोटी याद क्यों रहे
खाकर मालपुआ 
बहस वकीलों जैसी करता
दाखिल वाद करे ।


आज एक और वचन..


आज एक और वचन
अपनों से हार गया  ।

घास- फूस की मड़ई,पूंजी बस गठरी
पेट-पीठ एक किये रघुआ की ठठरी
पटवारी सुबह- शाम नीम तले आये
नीयत जो डोल गई देख-देख बकरी
कल फिर धमकी देकर 
धरमी सरदार गया ।

सपने सब रीत गए,जलते दिन बीते
कथरी -सी हो गई कमीज़ फटी सीते
दूध,बतासा खातिर बुधुआ है बिलखा
मुश्किल से सोया है आंसू को पीते
अब न हँसेगी पायल
सेंदुर धिक्कार गया ।

खेल-तमाशा भूला,भूल गया मेला
रघुआ वैरागी-सा,ऊंघता अकेला
बारहमासे भूला ,भूल गया कजरी
खोया है अपने में संझियाई बेला
चूल्हे में आग नहीं
रोते त्यौहार गया ।

बीमारी आग हुई हाथ नहीं पाई
सूदखोर बनिया भी हो गया कसाई
रामभरोसे बैठी बबुआ को ताके
बस आँखें पोछ रही बुधुआ की माई
घर-वाला मुँह बाँधे
करने बेगार गया ।


आधी कटी उँगलियाँ..


कैसे वक्त करूँ मुट्ठी में
अपनी आधी कटी उँगलियाँ ।

घूरें शातिर खड़े मछेरे
दाना डालें शाम-सबेरे
अब इनसे बच पाना मुश्किल
कसे हुए सम्मोहक घेरे
जाल सुनहरा फैलाया तो
इसमें अनगिन फंसी मछलियाँ ।

दिन के सहचर रात सराहें
पल में बदलें अपनी चाहें
उलझन बढ़ती ही जाती है
मैं भी भूलूँ सीधी राहें
रंगों का ऐसा संयोजन
लगता आगे घिरी बदलियाँ ।

गिरजाघर, मस्जिद, मन्दिर-मठ
इन सबके अपने-अपने हठ

किसके आगे शीश नवाऊँ
यीशु , रहीम , राम की है रट
उन्मादी नारों को सुनकर
भयवश फैली हुई पुतलियाँ ।

स्वीकारे हैं कई विभाजन
सूख रहा है मन-वृंदावन
जूझ रहा हूँ झंझाओं से
फिर भी चाहूँ महके आँगन
मिले न चैन किसी करवट में
दर्द बहुत कर रहीं पसलियाँ ।

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देवेन्द्र सफल


  • पूरा नाम-देवेन्द्र कुमार शुक्ल
  • पिता- कीर्तिशेष लक्षमी नारायण शुक्ल
  • माता- समृतिशेष अलक नंदा देवी शुक्ला
  • जन्म-स्थान-कानपुर महानगर (उ.प्र)
  • जन्म तिथि-04-01-1958
  • शिक्षा-स्नातक
  • प्रकाशन-गीत-नवगीत संग्रह: पखेरू गन्ध के,  नवांतर, लेख लिखे माटी ने, सहमी हुई सदी, हरापन बाक़ी है।
  • अन्य अनेक सामूहिक संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित।
  • प्रसारण-आकाशवाणी के मान्य कवि ।
  • सम्मान-देश-विदेश में अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित/ पुरस्कृत।
  • संपर्क-117/क्यू / 759 -ए,शारदा नगर, कानपुर, उत्तर प्रदेश-208025
  • ईमेल-devendrasafal@gmail.com

परिक्रमा: मारीशस में रामकथा पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियाँ एवं सम्मान समारोह




            भारत और मारीशस का संबंध दुनिया के किन्हीं अन्य दो देशों से बिलकुल अलग किस्म का है। मारीशस अपनी पहचान और इतिहास की जड़ें खोजने के लिए भारत की ओर देखता है। हिंदी भाषा और रामकथा के मजबूत धागों से इन दोनों देशों के रिश्ते बुने हुए हैं। मारीशस की नई पीढ़ी को अपने पुरखों की ज़मीन से जोड़े रखने के लिए हमें हिंदी और राम की आज भी ज़रूरत है।

             ये विचार पिछले दिनों विश्व हिंदी सम्मेलन के संदर्भवश मारीशस गए साहित्यिक-सांस्कृतिक शोध संस्था, मुंबई के प्रतिनिधिमंडल के सम्मान में महात्मा गांधी संस्थान, मारीशस के सुब्रह्मण्य भारती सभागार में वहाँ के हिंदी छात्रों के निमित्त आयोजित एक विशिष्ट परिसंवाद (एन इंटेरेक्टिव सेशन)का उदघाटन करते हुए महात्मा गांधी संस्थान की निदेशक डॉ. विद्योत्तमा कुंजल ने प्रकट किए। छात्रों को संबोधित करने वाले विद्वानों में मारीशस के प्रो. हेमराज सुंदर, प्रो. अलका धनपत और प्रो. प्रीति हरदयाल, रूस के डॉ. रामेश्वर सिंह और नादिया सिंह तथा भारत के प्रो. संतप्रसाद गौतम, प्रो. प्रदीप कुमार सिंह, प्रो. प्रदीप के. शर्मा और प्रो. हरिमोहन के नाम सम्मिलित है।

            दूसरे चरण में हिंदी प्रचारिणी सभा, मारीशस में “वैश्विक राम की कथायात्रा” पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी एवं सम्मान समारोह संपन्न हुआ। अध्यक्षता करते हुए सभा के वर्तमान प्रधान डॉ. यंतु देव बुधु ने मारीशस में हिंदी के इतिहास और हिंदीसेवियों के संघर्ष पर प्रकाश डाला। मुख्य अतिथि के रूप में सभा के मंत्री धनराज शंभु और कोषाध्यक्ष टहल रामदीन ने संबोधित किया। विषय विशेषज्ञ के रूप में कुलपति प्रो. एसपी गौतम ने जिज्ञासाओं का समाधान किया।

          मारीशस, रूस और भारत के 50 हिंदी सेवियों को हिंदी प्रचारिणी सभा, मारीशस और साहित्यिक सांस्कृतिक शोध संस्था, मुंबई की ओर से “अंतरराष्ट्रीय हिंदीसेवी सम्मान” से अलंकृत किया गया तथा विभिन्न विधाओं की 12 पुस्तकें लोकार्पित की गईं। दोनों आयोजनों का संचालन प्रो. ऋषभदेव शर्मा और डॉ. सत्यनारायण ने किया। धन्यवाद प्रो. प्रदीप कुमार सिंह और डॉ. सतीश कनौजिया ने व्यक्त किया।

प्रस्तुति-सतीश कनौजिया


प्रबंधक, 
साहित्यिक सांस्कृतिक शोध संस्था,
उल्हासनगर, मुंबई (भारत)