भगवान वेंकटेश्वर के वार्षिक ब्रह्मोत्सव-2017 की अविस्मरणीय झाँकी
पहला दिन-22 सितंबर, 2017: आज सुबह मैं तिरुपति पहुँचा। स्टेशन से लगे हुए विशाल भवन 'विष्णु निवासं' में ठहराया गया। शाम को सामान सहित कार से तिरुमला ले आया गया और एसपीटी कॉटेज में टिका दिया गया। यात्रा सुखमय रही। खाली पेट रहा और अवोमिन ले ली थी; यों उल्टी नहीं हुई - जिसके डर से कई साल से यहाँ आना टल रहा था। इस बार भगवान का बुलावा आया तो मैंने सोचा कि भविष्य का किसे पता है इसलिए चलता हूँ। फिर भी कल तक मन टालमटोल कर रहा था कि तबीयत बिगड़ जाए तो क्या होगा। पर भगवान की इच्छा और आज्ञा मानकर आ गया तथा हर प्रकार स्वस्थ रहा।
कहा जाता है कि तिरुपति (श्रीपति) भगवान कृष्ण जी का ऐश्वर्य रूप है और विट्ठल बाल रूप। भगवान तिरुपति ने ब्रह्मा जी को आश्वासन दे रखा है कि कलियुग के अंत तक यहाँ निवास करेंगे। यह आश्वासन मिलने पर ब्रह्मा जी ने शारदीय नवरात्र में उत्सव मनाया था, इसीलिए इसे ब्रह्मोत्सव कहते हैं। इस पौराणिक मान्यता के अलावा, वैसे सन 977 ईस्वी से इस पर्व के यहाँ निरंतर मनाए जाने के प्रमाण शिलालेखों में मिलते हैं।
आज इस वर्ष का ब्रह्मोत्सव आरंभ हुआ। मुझे इसके हिंदी में सजीव प्रसारण का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आज भगवान के सेनापति विश्वक्सेन की शोभायात्रा निकली जो संपूर्ण व्यवस्था के निरीक्षण और समस्त जगत को आमंत्रित करने का प्रतीक है। इसके बाद यज्ञशाला में मिट्टी का संग्रह करके नवग्रहों के प्रतीक नौ प्रकार के धान्य (नवधान्य) का बीजारोपण किया गया जिसका प्रसारण नहीं किया जाता है। आज के इस पूरे विधिविधान को सेनाधिपति उत्सव और अंकुरारोपण (अंकुरार्पण) कहा जाता है।
उल्लेखनीय है कि 108 वैष्णव दिव्य क्षेत्रों में से केवल इस एक अर्थात श्रीवेंकटेश्वर मंदिर - तिरुमला- में ही वैखानस आगम के अनुसार अर्चना आदि का विधान है; जबकि अन्यत्र पंचरात्र आगम का पालन होता है। कल अर्थात दूसरे दिन 3 बजे ध्वजारोहण होगा। उसके सजीव प्रसारण में भी सम्मिलित रहने का सौभाग्य प्रभु ने प्रदान किया है। अगले दिन हैदराबाद प्रस्थान...! !!ॐ नमो वेंकटेशाय!!
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दूसरा दिन-24 सितंबर, 2017: आज मैं हैदराबाद लौट आया हूँ। कल अर्थात सितंबर, 2017 (शनिवार) को मुझे 3 बजे से श्री वेंकटेश्वर भक्ति चैनल के तिरुमला स्थित नियंत्रण कक्ष (कैंप) में उपस्थित रहना था - ब्रह्मोत्सव के दूसरे दिन के हिंदी में सजीव प्रसारण के वास्ते। ... और किस्सा यूँ हुआ कि मेरे आग्रह पर दोपहर 12 बजे वाले स्लॉट में मुझे भगवान वेंकटेश्वर के दर्शन हेतु 'विशेषों' में पंक्तिबद्ध कर दिया गया; समय पर कैंप में आ उपस्थित होने के कठोर निर्देश के साथ। भारी भीड़ के बावजूद अच्छे से दर्शन हुए - 2.30 बजे। ...और मैं बगटुट दौड़ा। लड्डू प्रसाद भी नहीं ले सका। अभी तक अपराधबोध है; पर मुझे दिए गए समय का पालन करने की सदा से सनक रही है। भीड़ के रेले के साथ बहता हुआ बाहर आया तो जमकर वर्षा हो रही थी। कइयों के सतर्क करने पर भी मैं भीगता हुआ भाग लिया। ...अब सुनिए कि मुझे बचपन से ही रास्ते याद नहीं रहते। बहुत बार अपने गाँव और ननिहाल से लेकर पहाड़ पर, समुद्र किनारे और महानगर तक में खोया हूँ! सो, भागा तो दिशा भूल गया। जहाँ 5 मिनट में पहुँच सकता था, भटकता हुआ आधे घंटे में पहुँचा। पूरी तरह तरबतर। सराबोर। पर संतोष यह कि समय पर पहुँच गया। वर्षा के कारण प्रसारण में विलंब हुआ - वह अलग बात है। संस्कृत विद्यापीठ के युवा अध्यापक केशव मिश्र ने श्री वेंकटेश्वर के वार्षिक ब्रह्मोत्सव के दूसरे दिन के कार्यक्रम के सजीव प्रसारण के हिंदी में विवरण देना आरंभ किया और आगे मैंने सूत्र थाम लिया। बारी-बारी से दोनों अपनी बात कहते रहे।
दूसरे दिन का पहला कार्यक्रम था - स्वर्ण तिरुच्ची उत्सव। यह कार्यक्रम ब्रह्मोत्सवम में 2015 से ही सम्मिलित हुआ है। इसके अंतर्गत श्री वेंकटेश्वर भगवान की उत्सव मूर्ति ( भगवान मलयप्पा) की दोनों देवियों (आह्लादिनी शक्ति श्रीदेवी तथा प्रकृति शक्ति भूदेवी) समेत जगमगाते सोने के रथ पर विराजित करके चारों वीथियों में भव्य शोभायात्रा का किया गया। स्वर्ण रथ में 30 फुट की भव्य स्वर्णिम पीठ पर स्थापित भगवान की छवि सचमुच
नयनाभिराम ही नहीं, दृष्टि को धन्य करने वाली थी। इस सुदृढ रथ को अनेक भक्त अपने कंधों पर ढोकर जीवन की कृतार्थता पा रहे थे। साथ ही निरंतर चल रहा था - वैदिक ऋचाओं का उच्चार, भक्तिपूर्ण स्तोत्रों का वाचन और गोविंदा-गोविंदा का आनंदघोष। मंदिर के चारों ओर परिक्रमा करता रथ जब अलग अलग वीथियों की अलग अलग दिशाओं में पहुँचता; तो सब ठहर जाते। अर्चकगण हर दिशा में विधिवत कलश से पवित्र जल छिड़कते हुए वैखानस आगम के अनुसार मंत्रों के साथ पूजा करते; और तब फिर रथ को आगे बढ़ाया जाता। लगभग 1 घंटे से अधिक यह स्वर्ण रथ उत्सव चला। वर्षा भी चलती रही। कभी रिमझिम तो कभी झमाझम। इसी बीच रथयात्रा सोत्साह संपन्न हुई। इसके बाद लगभग सवा पाँच बजे सायं से आरंभ हुआ ध्वजारोहण का सजीव प्रसारण।
ब्रह्मोत्सव के अंतर्गत प्रतिदिन भगवान बालाजी अलग-अलग वाहन पर आरूढ़ होकर तिरुमला की वीथियों में
भ्रमण करते हैं। इसके पूर्व इस उत्सव के विधिवत श्रीगणेश के एक और विधान के रूप में गरुड़-ध्वजा फहराई जाती है। गरुड़ भगवान के वाहन तो हैं ही, उनकी पताका पर भी विराजते हैं। निश्चित मुहूर्त में एक शुद्ध वस्त्र को हल्दी में डुबाकर रँगा जाता है। इस पीत वस्त्र को धूप में सुखाकर इस पर गरुड़ और भगवान कृष्ण की आकृतियाँ रेखांकित की जाती हैं। ऋचाओं, सूक्तों और स्तोत्रों के पाठ के साथ अर्चक इस ध्वजा को पुष्पमालाओं के साथ लपेटकर ध्वजस्तंभ पर फहराते हैं। इस अवसर पर आठों दिशाओं के देवताओं सहित समस्त ब्रह्मांड को ब्रह्मोत्सव के दुर्लभ आयोजन में आमंत्रित किया जाता है और संपूर्ण सृष्टि की मंगलकामना की जाती है। यह समस्त उत्सव अत्यंत अनुशासनपूर्वक समग्र तन्मयता के बीच संपन्न हुआ। कमेंटेटर के रूप में इस आनंदोत्सव का साक्षी बनकर धन्यता और प्रभुकृपा की अनुभूति हुई। !!ॐ नमो वेंकटेशाय!!
प्रो. ऋषभदेव शर्मा
(पूर्व आचार्य एवं अध्यक्ष,
उच्च शिक्षा और शोध संस्थान,
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद)
208-ए, सिद्धार्थ अपार्टमेंट्स,
गणेश नगर, रामंतापुर– 500013
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ईमेल – rishabhadeosharma@yahoo.com