चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
लड़कियां…
लड़कियां
डरी-सहमी लड़कियां
चाहकर भी
मुहब्बत की राह पर
क़दम नहीं रख पातीं
क्योंकि
वो डरती हैं
उन नज़रों से
जो हमेशा
उन्हें घूरा करती हैं
उनके हंसने-मुस्कराने
की वजहें पूछी जाती हैं
उनके चहकने पर
तानें कसे जाते हैं
उनके देर तक जागने पर
सवालों के तीर छोड़े जाते हैं…
लड़कियां
मजबूर और बेबस लड़कियां
चाहकर भी
अपनी मुहब्बत का
इक़रार नहीं कर पातीं
क्योंकि
वो डरती हैं
कहीं कोई उनकी आंखों में
महकते ख़्वाब न देख ले
कहीं कोई उनकी तेज़ होती
धड़कनें न सुन ले
कहीं कोई उनके चेहरे से
महबूब का नाम न पढ़ ले
सच
कितनी बेबस होती हैं
ये लड़कियां…
हव्वा की बेटी…
मैं भी
तुम्हारी ही तरह
हव्वा की बेटी हूं
मैं भी जीना चाहती थी
ज़िन्दगी के हर पल को
मेरे भी सतरंगी ख़्वाब थे
मेरे सीने में भी
मुहब्बत भरा
एक दिल धड़कता था
मेरी आंखों में भी
एक चेहरा दमकता था
मेरे होठों पर भी
एक नाम मुस्कराता था
जो मेरी हथेलियों पर
हिना-सा महकता था
और
कलाइयों में
चूड़ियां बनकर खनकता था
लेकिन
वक़्त की आंधी
कुछ ऐसे चली
मेरे ख़्वाब
ज़र्रा-ज़र्रा होकर बिखर गए
मेरे अहसास मर गए
मेरा वजूद ख़ाक हो गया
फ़र्क़ बस ये है
तुम ज़मीन के नीचे
दफ़न हो
और मैं ज़मीन के ऊपर…
(रेहाना जब्बारी को समर्पित)
मंज़िल की चाह में…
मैं
एक मुसाफ़िर थी
तपते रेगिस्तां की
बरहना1 सर पर
सूरज की दहकती धूप
पांव तले
सुलगते रेत के ज़र्रे
होठों पर
बरसों की प्यास
आंखों में अनदेखे सपने
दिल में अनछुआ अहसास…
मैं चली जा रही थी
ख़ुद से बेज़ार सी
एक ऐसी मंज़िल की चाह में
जहां
मुहब्बत क़याम करती हो
अहसास का समंदर
हिलोरें लेता हो
बरसों की तिश्नगी को
बुझाने वाला
बहका सावन हो…
तभी
तुम मुझे मिले
एक घने दरख़्त की तरह
मेरे बरहना सर को
तुम्हारे साये का
आंचल मिला
ज़ख़्मी पांव को
मुहब्बत की मेहंदी मिली…
मुझे लगा
जिसकी तलाश में
भटकती रही थी
दर-ब-दर
अब वही मंज़िल
मुझे अपनी आग़ोश में
समेटने के लिए
दोनों बांहें पसारे खड़ी है
दिल ख़ुशी से
झूम उठा
मैं ख़ुद को
संभाल नहीं पाई
और आगे बढ़ गई
तभी
मेरी रूह ने
मुझे बेदार किया
मैंने पाया
तुम वो नहीं थे
जिसके साये में
मैं ताउम्र बिता सकूं
क्योंकि
तुम तो एक सराब 2 थे
सराब !
हां, एक सराब
और
फिर शुरू हुआ सफ़र
भटकने का
उस मंज़िल की चाह में…
(अर्थ 1-नंगा,2-मृगतृष्णा)
बरहना
वो
मेरी रूह तक को
बरहना करने पर
आमादा है
जिसे
ये हक़ था
मेरी हिफ़ाज़त करता
मेरे सर का
आंचल बनता…
खु़दकशी की ख़बर…
जब कभी
अख़बार में पढ़ती हूं
खु़दकशी की कोई ख़बर
तो
अकसर यह
सोचने लगती हूं
क्या कभी ऐसा होगा
मरने वाले अमुक की जगह
मेरा नाम लिखा होगा
और
मौत की वजह नामालूम होगी…
फ़िरदौस ख़ान
समूह संपादक,
स्टार न्यूज़ एजेंसी,
दिल्ली।
फ़िरदौस ख़ान
- फ़िरदौस ख़ान पत्रकार, शायरा और कहानीकार हैं। कई भाषाओं की जानकार हैं। उन्होंने दूरदर्शन केन्द्र और देश के प्रतिष्ठित समाचार-पत्रों में कई साल तक सेवाएं दीं हैं। अनेक साप्ताहिक समाचार-पत्रों का संपादन भी किया। ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन केन्द्र से समय-समय पर उनके कार्यक्रमों का प्रसारण होता रहा है । उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो और न्यूज़ चैनलों के लिए भी काम किया है। उर्दू, पंजाबी, अंग्रेज़ी और रशियन अदब (साहित्य) में उनकी ख़ास दिलचस्पी है। वह मासिक पैग़ामे-मादरे-वतन की भी संपादक रही हैं और मासिक वंचित जनता में संपादकीय सलाहकार हैं। साथ ही वह स्टार न्यूज़ एजेंसी में संपादक हैं। ‘स्टार न्यूज़ एजेंसी’ और ‘स्टार वेब मीडिया ’ नाम से उनके दो न्यूज़ पॉर्टल भी हैं। उन्होंने सूफ़ी-संतों के जीवन दर्शन पर आधारित एक किताब ‘गंगा-जमुनी संस्कृति के अग्रदूत’ लिखी है, जिसे साल 2009 में प्रभात प्रकाशन समूह ने प्रकाशित किया था। वह अपने पिता स्वर्गीय सत्तार अहमद ख़ान और माता श्रीमती ख़ुशनूदी ख़ान को अपना आदर्श मानती हैं। हाल में उन्होंने राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम का पंजाबी अनुवाद किया है। उनके कई बलॉग हैं। फ़िरदौस डायरी और मेरी डायरी उनके हिंदी के बलॉग है. हीर पंजाबी का बलॉग है. जहांनुमा उर्दू का बलॉग है और द पैराडाइज़ अंग्रेज़ी का बलॉग है। अपने बारे में वह कहती हैं-मेरे अल्फ़ाज़, मेरे जज़्बात और मेरे ख़्यालात की तर्जुमानी करते हैं, क्योंकि मेरे लफ़्ज़ ही मेरी पहचान हैं…!