कमला कृति

बुधवार, 29 अप्रैल 2015

डा.राजेंद्र तेला.निरंतर की दो कविताएं



अजामिल की कलाकृति



डर



रिश्तों को
जोड़ कर रखते रखते
अब थकने लगा हूँ
एक टांका लगाता हूँ
दूसरा टूट जाता है
सब्र की सुई भी
भौंटी होने लगी है
मोह का धागा
कमज़ोर पड़ने लगा है
दिल पर काबू रखना
मुश्किल होने लगा है
रिश्तों का लिबास
तार तार नहीं हो जाए
सारी कोशिशें
बेकार नहीं जाए
सोच कर
मन घबराने लगा है
मोहब्बत की हार
खुदगर्ज़ी की
जीत के डर से
दिल बैठने लगा है



मिज़ाज़ बदल डालें



कई मौसम बदल गए
कई मंजर देख लिए
न तुम बदले
ना हम बदले
दोनों ज़िद पर अड़े रहे
ना तुम्हें सुकून मिला
ना हमें सुकून मिला
नाहक ही
अहम में जीते रहे
आओ अब
मिज़ाज़ बदल डालें
तल्खियाँ कम कर लें
मोहब्बत का
मौसम भी देख लें
सुकून का मज़ा चख लें

सबरंग:सामाजिक विसंगतियों के खिलाफ़ अनूठी जंग






पोस्टरों के ज़रिये अलख जगाता एक किशोर



बचपन में बहराइच जिले में लता के गाने गा-गा कर और आसपास के जिलों, यहां तक कि पड़ौसी देश नेपाल तक में अपने गानों की गूंज पहंुचा देने वाले श्री किशोर श्रीवास्तव का बचपन अत्यन्त ग्लेमरयुक्त रहा। बचपन से किशोरवास्था और फिर युवावस्था तक आते-आते श्री किशोर का गायन कुछ कम होता गया और उसकी जगह ले ली साहित्य की विभिन्न विधाओं ने। अपने पिता के झांसी में तबादले के पश्चात अपनी कॉलेज की पढ़ाई के साथ ही श्री किशोर ने झांसी के ही एक दैनिक अखबार में पार्ट टाइम काम करना शुरू कर दिया। अख़बार में रहते हुए जब श्री किशोर ने विभिन्न अखबारों में प्रकाशित प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट श्री काक के कार्टून देखे तो उनसे प्रभावित होकर उन्होंने कार्टून के क्षेत्र में भी अपना हाथ आज़माना शुरू कर दिया। शीघ्र ही उनके कार्टून लोटपोट, सरिता, पराग, दैनिक जागरण, नवनीत, सत्यकथा, नूतन कहानियां, जनसत्ता, नवभारता टाइम्स और साप्ताहिक हिंदुस्तान आदि जैसी बड़ी पत्र-पत्रिकाओं में स्थान पाने लगे।

उन दिनों देश में मंदिर-मस्जिद के विवाद का दौर था, साथ ही दहेज और कन्या भू्रण हत्याओं के कारण समाज में भय और आक्रोश का वातावरण व्याप्त था। श्री किशोर को इन सब घटनाओं ने इतना उद्वेलित किया कि उन्होंने अपनी रचनाओं, कार्टूनों और गीतों को ही इन विसंगतियों के खिलाफ़ आवाज़ उठाने का एक माध्यम बना लिया।

श्री किशोर ने उस वक्त विभिन्न सामाजिक विसंगतियों पर कटाक्ष करते और साम्प्रदायिक सद्भाव को मद्दे नज़र रखते हुए ‘खरी-खरी’ शीर्षक के अंतर्गत लगभग 100 रंगीन पोस्टर तैयार किये। इन पोस्टरों का प्रदर्शनी के रूप में का पहला आयोजन झांसी में दूरदर्शन ज्ञानदीप मंडल की स्थानीय शाखा द्वारा वर्ष 1985 में किया गया। श्री किशोर का यह प्रयास अत्यन्त सफल रहा और सैकड़ों लोगों ने न केवल इसका अवलोकन किया अपितु इसे अत्यन्त सराहा भी। इसके पश्चात उ. प्र. की ही ललितपुर शहर की एक संस्था ने भी ‘खरी-खरी’ नामक इस जन चेतना कार्टून पोस्टर प्रदर्शनी का आयोजन अपने शहर में किया। जहां टिकट रखे जाने के बावजूद अपार जन समूह ने इसे देखा और सराहा। यही नहीं दर्शकों की मांग पर इसे अगले दिन के लिये भी जारी रखा गया। इससे श्री किशोर का उत्साह और बढ़ा तथा सामयिकता को ध्यान में रखते हुए इसमें नशे के दुष्परिणाम, भिक्षावृत्ति, आवास समस्या, अपराध, वृद्धावस्था की त्रासदी, नई पीढ़ी का खुलापन, फर्जी वृक्षारोपण, आतंकवाद, ऋण की समस्या, समलैंगिकता, गुडागर्दी, रिश्वतखेरी, बाढ़ की समस्या, जल का अपव्यय, क्षेत्रवाद, संस्कृति पर प्रहार, दलबदल, बेरोज़गारी, धार्मिक उन्माद, परिवार नियोजन, नारी उत्पीड़न, बलात्कार की समस्या, भ्रष्टाचार आदि जैसे अनेक अन्य विषयों को भी जोड़ा।

श्री किशोर ने अपने इन पोस्टरों में उपर्युक्त विभिन्न विषयों को कार्टून, रेखाचित्र और लघु रचनाओं के माध्यम से उकेरा है। एक ओर जहां इन पोस्टरों में विभिन्न सामाजिक विसंगतियों पर कटाक्ष हैं तो वहीं दूसरी ओर
विभिन्न जाति-धर्म के बीच सद्भाव का वातावरण बनाने और राष्ट्रभाषा हिंदी के पक्ष में वातावरण तैयार करने का प्रयास भी सन्निहित है। विगत 28 वर्षों में विभिन्न साहित्यिक/ सामाजिक, शैक्षिक और सांस्कृतिक संस्थाओं आदि के माध्यम से इस प्रदर्शनी के सौ से भी अधिक आयोजन दिल्ली सहित झाँसी, ललितपुर, साहिबाबाद, मथुरा, आगरा, देवबंद, साहिबाबाद, खुर्जा, गाजियाबाद, इंदिरापुरम, बिजनौर, गोरखपुर (उ.प्र.), अंबाला छावनी (हरियाणा), जबलपुर (म.प्र.), शिलांग (मेघालय), बेलगाम (कर्नाटक), सोलन (हि.प्र.), हिम्मत नगर (गुजरात), नांदेड, कोल्हापुर (महाराष्ट्र), भरतपुर, राजसमन्द (राजस्थान), खटीमा (उत्तराखंड) में हो चुके हैं। और इसे कई राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत भी किया जा चुका है।

इस प्रदर्शनी के लिये श्री किशोर किसी से कोई पारिश्रमिक नहीं लेते बल्कि इसकी तैयारी का खर्चा भी खुद ही वहन करते हैं। अवकाश के दिनों में दूरदराज क्षेत्रों तक में इसके प्रदर्शन से उन्हें कोई गुरेज़ नहीं। इस प्रकार से अपनी इस प्रदर्शनी के ज़रिये श्री किशोर पिछले दो दशकों से भी अधिक समय से जनमानस का ध्यान उपर्युक्त विसंगतियों की ओर आकर्षित करते हुए कटाक्ष और हंसी-हंसी में ही सही, उन्हें इन सब बुराइयों के प्रति
आगाह करने का काम करते चले आ रहे हैं। श्री किशोर पोस्टरों के ज़रिये केवल दूसरों को ही उपदेश नहीं देते अपितु स्वयं मंदिर में दहेज रहित विवाह और अपने परिवार को एक बच्चे तक सीमित करके उन्होंने औरों के सामने खुद भी एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। श्री किशोर अपने आपको कोई खास कार्टूनिस्ट या कलाकार नहीं मानते, वह तो बस अपनी बात लोगों तक पहुंचाने का अपनी कलाओं को एक ज़रिया भर मानते हैं। उनका मानना है कि छोटे ही सही पर ऐसे आंदोलन दूरगामी परिणाम वाले होते हैं। लगातार प्रयास से धीरे-धीरे ही सही इनका समाज व जन मानस पर कभी न कभी और कुछ न कुछ असर ज़रूर पड़ता है। ऐसा उन्हें प्रदर्शनी के दौरान दर्शकों की मौखिक व लिखित प्रतिक्रियाओं से भी पता चलता रहता है। प्रदर्शनी के संबंध में दर्शकों के विचार उनकी ‘‘खरी-खरी’’ नामक पुस्तिका में भी संकलित हैं। उनसे विभिन्न विसंगतियों व मेल-मिलाप के प्रति जनता जनार्दन का रूझान भी पता चलता है।

भारत सरकार के दिल्ली स्थित एक कार्यालय में राजपत्रित अधिकारी होने के साथ ही श्री किशोर अपने अवकाश के समय का उपयोग अपने इस अभियान को सतत जारी रखने के लिये करते हैं। ‘‘खरी-खरी’’ के साथ ही श्री किशोर का गायन, संगीत और अभिनय आदि का शौक भी साथ-साथ चलता रहता है। श्री किशोर काव्य मंचों पर कविता की फुहारें छोड़ने और संगीत के मंच से सुमधुर गायन के अलावा संास्कृतिक मंचों पर अपनी हास्यकला/मिमिक्री से लोगों को हंसा-हंसा कर लोट-पोट भी करते रहते हैं। श्री किशोर का मो. न.-9599600313 और ईमेल-kishor47@live.com


-प्रस्तुतिः

इरफान अहमद ‘‘राही’’

 (स्वतंत्र पत्रकार)
म.न. 106, पाकेट-8,
दुर्गापार्क, नई दिल्ली-110045
ईमेलः irfanraahi@gmail.com

दस्तक: दो कविताएं-सूर्यप्रकाश मिश्रा



चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार



गांव



अक्सर ख्वाब में
घर का कुवाँ नजर आता है
आजकल मुझे
मेरा गांव याद बहुत आता है
याद आतें हैँ
खेत खलिहान औ चौबारा
बरसों बीत गये
जहाँ पहुँच न पाये दुबारा
याद आता है
बरगद का वो पेड़
जहाँ हम छहाँते थे
कैसे भूल पाऊँ
हाय वो पोखरिया
जिसमें हम नहाते थे
नहर की तेज धार का
वो बहता पानी
आज बहुत याद आया
डूबते खेलते बहते
नहर की वो लहर
जिसने तैरना सिखाया
वो छडी वो डन्डे
आज सब याद आतें हैं
खत्म हो रहा जिन्दगी का सफर
मुझे मेरे वो मास्टर जी
दिल से आज भी भाते हैं
अक्सर ख्वाब में
घर का कुवाँ नजर आता है
आजकल मुझे
मेरा गांव याद बहुत आता है



भविष्य



किसी शाख से टूटे पत्ते की तरह
भटकते हैं हम..
दिशाविहीन..
अन्तहीन...
लक्ष्य तो है मगर,
लक्ष्यहीन...
अपनी पहचान पाने की कोशिश में-
अहिंसक आन्दोलनोँ की राहोँ में,
व्यवस्था की क्रूर लाठी से
या घोड़ों की टापोँ से...
जब भी कुचले जाते हैं...
बिखरता है
निर्दोष खून...
कच्ची पक्की सड़कों पर.,
इस दोष के साथ कि
अराजकता स्वराज नहीं..
अधिकार नहीं.,
बिखरी तमन्नायेँ
अभिलाषायेँ
और खून
जब अपने भविष्य की ओर बहता है
या बहने लगता है
तब व्यवस्था व कानून मुस्कराते हैं
कि यही संविधान है
कल्याणकारी आदर्शोँ से
ओतप्रोत..
अनगिनत
मुश्किलोँ
संघर्षो के बाद..
जब सोते हैं
अपने ख़्वाबोँ में
तब ही अक्सर रातों को.,
वोटों की राजनीति जगा देती है.,
झिँझोड़ कर उठा देती है ...
उठो, वोट दो...
मानवतावादी
कल्याणकारी
सर्वजन हिताय
आदर्शोँ को छोड़ दो....

जाति,धर्म, संस्था
अपराध
अपराधी ही व्यवस्था बने ..
संस्कार
बुद्धि, ज्ञान, विवेक को त्याग दो...
सोचते हैं

हम कौन हैं ...
क्या हैं ...
क्योँ हैं ...
कौन है दोषी ?..
हम या व्यवस्था .
कब तक पिसेँगेँ
नियति के चक्रव्यूह में
अभिमन्यु की मृत्यु तो निश्चित ही है
काश,
कोई अर्जुन होता.,.
भविष्य के गर्त में न जाने कितने,
चमकते सितारे-
डूब रहे हैं
खो रहे हैं
डुबेँगेँ
खोते रहेंगे..
और एक दिन-अनगिनत
सवालों के साथ ...
जबाब माँगते
अपने प्रश्नोँ का
भविष्य
खड़ा होगा सामने हमारे...
अपनी मूक निगाहोँ के साथ
मेरा कसूर क्या है...
बोलो...!!


सूर्यप्रकाश मिश्रा


गोरखपुर (उ०प्र०) !
ईमेल-surya.prakash1129@yahoo.com

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015

डॉ.अनिता कपूर की कविताएं



चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार


तुम्हें छू लेती हूँ



तुम्हें छू लेती हूँ
खाली कागज़ पर शब्दों से
पेंटिंग में भर के रंग
ठहरे पानी में फैक के कंकड़
बरसती बूंदों को तन पर छुआ कर
पेड़ से टपके पत्ते की शरारत से
तुम मेरे पास नहीं
फिर भी तुम्हें छू लेती हूँ
अहसासों के कुंड में नहा कर
छूने के लिए पास होना जरूरी तो नहीं


मन की सड़क


मत दिखाओ मेरे पावोँ को
अपने मन की सड़क
फिर क्या पता वो रास्ता
मुझे रास आ जाए।
महरों-माह की चमक रहेगी
ताउम्र हमारे रिश्तों पर
ख़्यालों का यूं फिसलना
रातों को रास आ जाये।
थकने लगे हैं अब तो
तेरी-मेरी परछाइयों के भी पाँव
ए जिंदगी तेरा धीरे चलना
थकान को रास आ जाए।
जिंदगी जो बन गयी थी
तेज़ाब की उफनती नदी
क्या पता किसी रिश्ते को
फिर तैरना रास आ जाये।
वफ़ा की बात करते हो
तमाम रास्ते तिरगी करके
इतिहास जीने के लिए, फिर
अनारकली होना रास आ जाए।


अलाव


तुमसे अलग होकर
घर लौटने तक
मन के अलाव पर
आज फिर एक नयी कविता पकी है
अकेलेपन की आँच से
समझ नहीं पाती
तुमसे तुम्हारे लिए मिलूँ
या एक और
नयी कविता के लिए ?


फागुनी मन


सपनों में भर के रंग
अक्सर भूल जाया करते हैं
कि पेड़ों के सायों को भी
धूप सताती है


सपनों की रंगीन स्याही से


हाथ की टूटी लकीरों पर
कुछ इबारत जब जब लिखी है
रात आ कर
हथेली को रगड़ गई हैं
स्याही चूस


वक्त की खूंटी पर


मेरी जिंदगी को
टांग कर अक्सर
मेरे ही दर्द
नहाने चल देते हैं
नदी में
उजले हो कर लौटते हैं
और
गुनगुनाते हुए
मेरी पीढ़ा के दंश को
नाग बन चूस लेते हैं
सहमे से मेरे प्राण
सुख के खरगोश
ढूंढने लगते हैं।


बोंजाई


हर रोज़ यह चाँद
रात की चोकीदारी में
सितारों की फ़सल बोता है
पर चाँद को सिर्फ बोंजाई पसंद है
तभी तो वो सितारों को
कभी बड़ाही नहीं होने देता है ।



आँखों की सड़क


मेरी आँखों की सड़क पर
जब तुम चलकर आते थे
कोलतार मखमली गलीचा बन जाता था
मेरी आँखों की सड़क से जब
तुम्हें वापस जाते देखती थी
वही सड़क रेगिस्तान बन जाती थी
तुम फिर जब-जब वापस नहीं आते थे
रगिस्तान की रेत आँख की किरकिरी बन जाती थी
आँखों ने सपनों से रिश्ता तोड़ लिया था
फिर मुझे नींद नहीं आती थी



उसके जाने के बाद


उसके जाने के बाद मैं
ताकती रही उसके क़दमों के निशाँ
मैंने कहा था उसे
हो सके तो उन्हें भी साथ ले जाना
अब कितना मुश्किल है उसका जाना…
जिंदगी के जाने के बाद मै
छूती रही उसकी परछाई के निशां
मैने कहा था उसे
हो सके तो साँसे भी साथ ले जाना
अब कितना मुश्किल है जीना ….
यादों के जल जाने के बाद मै
बिनती रही उसकी राख़ के निशाँ
मैने कहा था उसे
हो सके तो राख़ उढ़ा ले जाना
अब कितना मुश्किल हैं
ढेर में जीना….



डॉ अनिता कपूर 



  • शिक्षा : एम.ए. हिन्दी, अँग्रेजी एवं संगीत (सितार), पी.एचडी (अँग्रेजी),पत्रकारिता में डिप्लोमा 
  • कार्यरत : अमेरिका से प्रकाशित हिन्दी समाचारपत्र “यादें” की प्रमुख,संपादक, “ग्लोबल वुमेन पावर” संस्था संस्था की को-फ़ाऊनडर
  • प्रकाशित कृतियाँ: बिखरे मोती, अछूते स्वर, ओस में भीगते सपने,कादंबरी, साँसों के हस्ताक्षर (कविता-संग्रह), दर्पण के सवाल (हाइकु-संग्रह), अनेकों भारतीय एवं अमरीका की पत्र-पत्रिकाओं में कहानी, कविता, कॉलम, साक्षात्कार एवं लेख प्रकाशित, प्रवासी भारतीयों के दुःख-दर्द और अहसासों पर एक पुस्तक शीघ्र प्रकाशीय.                
  • पुरस्कार/सम्मान:(2015) अमेरिका में कम्यूनिटी सम्मान,GOPIO द्वारा तथा मिलपिटस शहर के मेयर द्वारा सम्मानित, (2014) पंचवटी राष्ट्रभाषा सम्मान, समाज कल्याण बोर्ड द्वारा सम्मानित, अमेरिका के टीवी और गोपियो संस्था द्वारा कम्यूनिटी सम्मान-(2013) GOPIA (Global organization of People of Indian Origin), अमेरिका, द्वारा हिन्दी में योगदान के लिए सम्मान, -जोधपुर में “कथा-साहित्य एवं संस्कृति संस्थान” द्वारा  “सूर्य नगर शिखर सम्मान” (वर्ष 2012) ,-“कायाकल्प साहित्य-कला फ़ाउंडेशन” सम्मान (वर्ष 2012),-“कवयित्री सम्मेलन” आगरा द्वारा विशिष्ट सम्मान (वर्ष 2012) ,-महाराष्ट्र राज्य हिन्दी अकादमी और कथा यू.के द्वारा प्रवासी हिन्दी सेवी सम्मान (2012),-10 वां अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी उत्सव, नयी दिल्ली, प्रदत् “अक्षरम प्रवासी साहित्य सम्मान”,  (2012) ,प्रवासी हिन्दी सेवी सम्मान-2012,प्रवासी कवियत्री  सम्मान-2012,कायाकल्प साहित्य कला फ़ाउंडेशन-12 पॉलीवूड स्टार मीडिया अवार्ड-2011, सामाजिक सेवा अमरीका अवार्ड-2009  
  • संपर्क: Fremont, CA 94587, USA 
  • फोन: 510-894-9570
  • ईमेल: anitakapoor.us@gmail.com 

रविवार, 19 अप्रैल 2015

आशुतोष द्विवेदी के गीत



चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार



कोई निर्णय कर जाने दो..



कोई निर्णय कर जाने दो
मिलने दो या मर जाने दो

शब्द निरर्थक, निश्चेतन थे,
उनमें डाले अर्थ नए क्यों ?
और सजे जब गीत अधर पर,
बिना सुने ही चले गए क्यों ?

कब से प्राण पुकार रहे हैं,
तुम तक मेरे स्वर जाने दो

एक सुगन्धित झोंका आकर,
भावों को झकझोर गया था
खोज रही है श्वास तभी से,
वह जाने किस ओर गया था ?

सुरभि वही फिर प्रियतम
मेरे अंतरतम तक भर जाने दो

उसी लहर के साथ चल दिए,
जो लेती थी नाम तुम्हारा
आज फँसे हैं भँवर में,
छूट गया हर एक सहारा

पीछे लौट नहीं सकते हैं,
अब उस पार उतर जाने दो

प्रतिबंधित जब पंथ प्रणय के,
पद करते संधान रहे क्यों?
नियम अभी प्रतिकूल समय के,
आशाएं गतिमान रहे क्यों?

जीवन का यथार्थ बन जाओ
या सब स्वप्न बिखर जाने दो




मौसम का दीवाना होना..



तू-तू, मैं-मैं, पाना-खोना
भीतर भी है, बाहर भी
आना-जाना, रोना-धोना,
भीतर भी है, बाहर भी

भावों का मुरझाना या
बागों में पतझर का आना
कोई भेद नहीं, दोनों
में ही गहरा सूनापन है
पीड़ा का हँसना या
वासंती पवनों का इठलाना
कोई भेद नहीं, दोनों
में ही प्राणों की थिरकन है

आँसू की रिमिझिम हो
या फिर बहके बादल की झड़ियाँ
मौसम का दीवाना होना,
भीतर भी है, बाहर भी

एक बात ऐसी जो मन में
गहरा घाव बना देती
एक बात ऎसी जो घायल
मन को गीत सुनाती है
एक बूँद ऎसी जो सीपी में
गिरकर मोती बनती
एक बूँद ऐसी जो मरुथल में
गिरकर खो जाती है

किसके साथ कहाँ कब
क्या हो जाये कोई क्या जाने !
जंतर-मंतर, जादू-टोना,
भीतर भी है, बाहर भी

अंतस के आँगन में
मर्यादाओं की सड़ती लाशें
झरते अंगारे ममता की
भीनी-भीनी अलकों से
कंकालों का अनशन,
भूखे उदरों की नारेबाज़ी
लहू टपकता समता की
देवी की प्यासी पलकों से

ऐसे-ऐसे दृश्य कि जिनको
देख दहल जाते सीने
कहने को संसार सलोना,
भीतर भी है, बाहर भी

ठहरावों में सदा रही फिर
नए सफ़र की तैयारी
हँसने वाली आँखों में भी
छिपी कहीं कुछ नमी रही
कोई गीत जिसे पूरा
करने में इतने गीत रचे
उसके पूरा होने में
हर बार ज़रा सी कमी रही

कितने भी हम यत्न करें
पर संभव नहीं जिसे भरना
नन्हा सा वह खाली कोना,
भीतर भी है, बाहर भी



तुम सोचा करते हो..



तुम सोचा करते हो
अच्छे-ख़ासे लौटे हैं
हम तो नदिया के
तट से भी प्यासे लौटे हैं

ख़ुशियों को हमने
पाना चाहा बाज़ारों में
सच्चाई की सीमा को
बांधा अख़बारों में
हाय, न जाने पागल
मन क्यों जान नहीं पाया!
सूरज की वह आग नहीं
मिल सकती तारों में

अँधियारे की भूल-भुलैया
में खोये थे हम
भटकन की, भ्रम की
लम्बी कारा से लौटे हैं

मकड़ी के जालों जैसे
सम्बन्ध बनाए थे
भावों के शव इन कन्धों
पर बहुत उठाये थे
जाने काँटों से कितनी
उम्मीदें बांधीं थीं
हर क्यारी में नागफनी
के पेड़ लगाये थे
जहाँ न अपना साया भी
अपना साथी होता
सूनेपन की उसी चरम
सीमा से लौटे हैं
क्या मजबूरी थी माली
ने उपवन बेच दिया?
पूजा करने वालों ने
देवायन बेच दिया!
जाने क्या मजबूरी थी,
ये नयन न भर पाए?
ख़ुद, घर के लोगों ने ही
घर-आंगन बेच दिया!

मुस्काते गीतों जैसे
उस पार गए लेकिन
लौटे हैं तो रोती हुई
कथा से लौटे हैं

अनजाना था नयनों की
भाषा का परिवर्तन
बना पहेली मन की
अभिलाषा का परिवर्तन
नक़ली व्यक्तित्वों के
षङ्यंत्रों ने कर डाला
मौलिकता की मौलिक
परिभाषा का परिवर्तन

वासंती मौसम ने
इतने धोखे दिए हमें
अब तो केवल पतझड़
की आशा से लौटे हैं




ऐसी है उधेड़बुन..



ऐसी है उधेड़बुन जिसको
लाख मनाऊँ साथ न छोड़े
उधर तुम्हारी प्रीत पुकारे,
इधर ज़माना हाथ न छोड़े

भाँति-भाँति की बातें आती
रहती हैं इस पागल मन में
कभी तुम्हें दोषी ठहराता,
कभी बिठा लेता पूजन में
भला या बुरा चाहे जैसा,
मगर सोचता सिर्फ़ तुम्हीं को
अनुभव रखने वाले शायद,
कहते होंगे प्यार इसी को

दुनियादार कभी बन जाऊँ,
कभी प्यार में गोते खाऊँ
कभी सशंकित, कभी अचंभित,
कभी समर्पित-सा हो जाऊँ

कभी बुद्धि संकल्प करे फिर
डाँवाडोल कभी हो जाए
इसे तुम्हारी ख़ुशी समझ कर
अपने भ्रम में ही इतराए

कभी पुरानी परंपरा कोई
फिर से हावी हो जाए
चित्त संकुचित हो जाए
तब अपने ऊपर ही पछताए
इसी डूबने-उतराने का खेल
न जाने कब से चलता
ले हिचकोले जीवन-बेड़ा
कभी बहकता, कभी संभालता

सरल नहीं संघर्ष प्रिये यह,
लेकिन जूझ रहा मैं अब तक
भीतर कोई ताक़त है जो
मुझको कभी अनाथ न छोड़े

ऐसी है उधेड़बुन जिसको
लाख मनाऊँ साथ न छोड़े
उधर तुम्हारी प्रीत पुकारे,
इधर ज़माना हाथ न छोड़े



आशुतोष द्विवेदी 


भारतीय राजदूतावास,
अद्दिस अबाबा,
इथियोपिया |
ईमेल:ashutoshdwivedi1982@gmail.com

मंगलवार, 14 अप्रैल 2015

किशोर श्रीवास्तव की रचनाएं



अजामिल की कलाकृति




वो धर्म क्या जो..(ग़ज़ल)



वो धर्म क्या जो लाश पे फिर लाश बिछा दे
मज़लूम बेक़सूर को बिन बात सज़ा दे।

मसजिद में जाके बैठें मंदिर में या रहे
वो सिर्फ़ हमारा है यह बात भुला दें

होता नहीं खुदा खुश इस मारकाट से
कुरबानियों का अब ये बाज़ार हटा दे

अपने मज़ाक की जब उसको फ़िकर नहीं
हम क्यों किसी बंदे का घर-बार जला दें

है एक ही रखवाला है एक ही दाता
अल्लाह कहें या फिर भगवान बना दें।



मुक्तक 


(एक)

है इबादत घरों से मैकदा अपना बेहतर
प्यार झूठा हो तो सद्भाव का सपना बेहतर
बैर बढ़ता हो अगर मस्जिदों से मंदिर से
एक-दो पैग में मिल जुल के झुलसना बेहतर।


(दो) 

जितना सबको गले लगाया उतना ही बदनाम हुआ
जितना साथ चला वो सबके उतना ही गुमनाम हुआ
झूठ और तिकड़मबाजी से कितनों ने मंज़िल पाली
उसने जब-जब सच-सच बोला तब-तब वह नाकाम हुआ।



गंगा मां हरती रही (कुंडलिया)



गंगा मां हरती रही दुनिया भर के ताप
हम बेसुध धोते रहे अपने अपने पाप
अपने अपने पाप दर्द ना उसका देखा
कुड़ा करकट देह सभी कुछ उसमें फेंका
कह किशोर कविराय हुआ है मानव नंगा
है बेबस लाचार हमारी पावन गंगा।



सामाजिक रिश्ते (कविता)



अच्छा ही है
परिवार के
सभी लोग
अपने-अपने
कमरों में बैठकर
सोशल साइट्स पर
निभा रहे हैं अपने-अपने
सामाजिक रिश्ते
साथ बैठेंगे तो लड़ पड़ेंगे
किसी भी बात पर
एक ही पल में।




















































किशोर श्रीवास्तव


हम सब साथ साथ,
916-बाबा फरीदपुरी, वेस्ट पटेल नगर,
नई दिल्ली-110008
फोन: 09599600313/ 09868709348
08447673015/ 011-25889475 (निवास)
ईमेल- kishor47@live.com
kishorsemilen@gmail.com



किशोर श्रीवास्तव




  • शैक्षिक व अन्य योग्यतायें-संपादक कला विशारद, एम.ए. (हिन्दी), एलएल.बी., पत्रकारिता एवं जनसंचार में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा, अनुवाद प्रमाण पत्र, कम्प्यूटर प्रशिक्षण, गायन/वादन में डिप्लोमा।
  • विशेष-पूर्वी चम्पारण, बिहार स्थित ननिहाल में जन्में तथापि पूरा बचपन एवं किशोरावस्था उत्तर प्रदेश के बहराईच, मीरजापुर एवं झांसी जिले में बीता एवं इन्ही जिलों में बचपन से किशोरावस्था और फिर युवावस्था की ओर बढ़ते हुए विभिन्न अवस्थाओं में हिन्दी साहित्य लेखन-संपादन/संगीत/अभिनय आदि के क्षेत्रों में विशेष रूप से सक्रियता रही। बाद में नई दिल्ली में सरकारी सेवा में आने के पश्चात भी उपर्युक्त क्षेत्रों में निरन्तर सक्रियता बरकरार।
  • लेखन- (कविता, गीत, कहानी एवं लघुकथा आदि), व्यंग्य चित्र/रेखा चित्र बनाना, सुगम गायन/अभिनय/मंच संचालन/हास्य कला (मिमिक्री), संगीत रचना, बांसुरी/हारमोनियम/केसियो वादन।
  • कार्य अनुभव
  • गैर सरकारीः वर्ष 1980 से (वर्ष 1986 में सरकारी सेवा में आने से पहले) मृगपाल मासिक, दैनिक जागरण (झाँसी), सुपरब्लेज मासिक (लखनऊ), दैनिक विकासशील भारत (आगरा), सन्मार्ग (कोलकाता) से कार्टूनिस्ट/स्तंभ लेखक/उप संपादक एवं दिल्ली प्रेस की पत्रिकाओं, भू-भारती व मुक्ता से विश्वविद्यालय प्रतिनिधि के रूप में संलग्न।
  • सरकारीः विस्तार निदेशालय (कृषि मंत्रालय), नई दिल्ली में 22 मई, 1986 में सूचना सहायक के पद पर नियुक्ति एवं तत्पश्चात उप संपादक, वरिष्ठ अनुवादक के पद पर कार्य करते हुए 2000 से सहायक निदेशक (राजभाषा) के पद पर कार्यरत। कुछ सालों तक केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड, भारत सरकार, नई दिल्ली में समाज कल्याण पत्रिका के संपादक पद पर कार्य।
  • प्रकाशन विवरण
  • मुख्यतः वर्ष 1980 से लेकर अब-तक देश की विभिन्न लघु एवं प्रतिष्ठित पत्र/पत्रिकाओं जैसे- नवभारत टाइम्स, समाज कल्याण, दैनिक जागरण, दैनिक हिन्दुस्तान, जनसत्ता, राष्ट्रीय सहारा, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, कादम्बिनी, इन्द्रप्रस्थ भारती, माधुरी, पराग, बाल भारती, किलकारी, सरस सलिल, बाल हंस, लोटपोट, राष्ट्रकिंकर, मुक्ता, दैनिक सन्मार्ग, खान संपदा, आजकल, दि संडे पोस्ट, पाखी, हंस, मधुमती, भारतीय रेल, अट्टाहास, समकालीन चौथी दुनिया, मधुमती, शब्द प्रवाह, साहित्य अमृत, सरस्वती सुमन, शुभ तारिका, इंडिया इन साइड, हम सब साथ साथ, सरोपमा, अर्द्धांगिनी, काजल, सुखी समृद्ध परिवार, सादर इंडिया, समय सुरभि अनंत, नवनीत, अविराम तथा इंटरनेट पर सृजनगाथा, शब्दशिल्पी, रचनाकार, हिंदयुग्म, स्वर्गविभा आदि वेबसाइटों पर राष्ट्रभाषा हिन्दी में सैकड़ों लेख, कविता, कहानी, व्यंग्य चित्र, रेखाचित्र आदि प्रकाशित।
  • एकल पुस्तकें/संकलन-अभागा राजकुमार, रिश्तों की डोर, अपना घर, ग़लती का अहसास, सबका अधिकार, माँ का प्यार, पछतावा (बाल कहानी संकलन), प़िक्षयों के सुंदर घर, अच्छी सेहत के नुस्खे, पक्षियों की एकता (बाल लेख व काव्य संकलन), कटाक्ष (लघुकथा संकलन), आप बीती जग बीती (व्यंग्य संकलन) , खरी-खरी (व्यंग्य चित्रों आदि का संकलन) प्रकाशित।
  • संपादन/संपादन सहयोग/प्रतिनिधि के रूप में कार्य-गैर सरकारी स्तर पर वर्ष 1982 से पेंजनी, सोशल रिफॉर्मर, परिवर्तन स्मारिकाओं एवं मासिक पत्रिकाओं; मृगपाल (झांसी), सहेली समाचार (दिल्ली), गुरू दृष्टि (पाक्षिक), दिल्ली के विशेष अंकों का संपादन; दैनिक जागरण (झांसी), सुपर ब्लेज (लखनऊ), विकासशील भारत (आगरा), दिल्ली प्रेस की पत्रिकाओं आदि के लिये कार्य किया। हम सब साथ-साथ द्विमासिक पत्रिका में वर्ष 2002 से अवैतनिक रूप से कार्यकारी संपादक के रूप में कार्यरत।
  • सरकारी स्तर पर वर्ष 1986 से  विस्तार निदेशालय (कृषि मंत्रालय) की सरकारी पत्रिकाओं घरनी, उन्नत कृषि, कृषि विस्तार समीक्षा के संपादन में सहयोग एवं स्मारिका राजभाषा विस्तारिका का वर्ष 2002 से संपादन। कुछ वर्ष तक केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड, भारत सरकार की मासिक पत्रिका समाज कल्याण का संपादन।
  • आकाशवाणी के छतरपुर केन्द्र से अनेक कहानियों का प्रसारण। आकाशवाणी के दिल्ली केन्द्र से आज सुबह कार्यक्रम में कार्टूनिस्ट के रूप में साक्षात्कार एवं इनकी राहें इनकी मंजिल कार्यक्रम में संपूर्ण गतिविधियों पर साक्षात्कार प्रसारित, साथ ही वार्ता एवं काव्य गोष्ठियों में कविताओं और एफ एम रेडियो पर नाटक का प्रसारण। दूरदर्शन के दिल्ली केन्द्र से दूरदर्शन ज्ञानदीप मंडल द्वारा एकल कार्टून प्रदर्शनी प्रसारित एवं दूरदर्शन के लिए निर्मित हिन्दी बाल नाटक मियां गुमसुम एवं बत्तो रानी में अभिनय व बांसुरी वादन सहित अनेक अन्य छुट-पुट कार्यक्रमों का प्रदर्शन। सहारा समय एवं आज तक चैनल पर हास्य कार्यक्रम एवं प्रज्ञा चैनल व बिग मैज़िक पर संपूर्ण साहित्यिक/सांस्कृतिक गतिविधियों पर कार्यक्रम प्रसारित।
  • हिन्दी नाटकों की संगीत रचना
  • प्रमुख पुरस्कार/सम्मान-1, युवा साहित्य मंडल, गाज़ियाबाद द्वारा 1987 में  आयोजित लघुकथा प्रतियोगिता में तृतीय स्थान 2, राष्ट्र गौरव पुरस्कार,  1989 नई दिल्ली, तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री श्री जगदीश टाइटलर द्वारा हिन्दी में सामाजिक लेखन, कार्टून रचना हेतु श्रीमती किरन बेदी/विमला मेहरा आदि जैसी चर्चित हस्तियों के साथ प्राप्त 3, गाँधीराम फोकस पुरस्कार, 1989 नई दिल्ली, त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री श्री सुधीर रंजन मजूमदार द्वारा विशिष्ट सामाजिक/साहित्यिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों के लिये प्राप्त 4, युवा कवि पुरस्कार, 1990 नई दिल्ली, श्री एच. के. एल. भगत द्वारा काव्य लेखन हेतु प्राप्त 5, मोदिनी पुरस्कार, 1992 नई दिल्ली, श्री बी एल शर्मा, प्रेम सांसद द्वारा हास्य व्यंग्य लेखन/कार्टून रचना हेतु प्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री बरसाने लाल चतुर्वेदी के साथ प्राप्त 6, राष्ट्रभाषा सम्मान, 1994 श्री साईदास बालूजा साहित्य कला अकादमी, पानीपत द्वारा राष्ट्रभाषा सेवा के लिये प्राप्त 7, हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा आयोजित प्रश्न मंच, 1996 में पुरस्कृत 8, रेड एण्ड व्हाइट सामाजिक बहादुरी पुरस्कार, 1996 दिल्ली के तत्कालीन राज्यपाल श्री तेजेन्द्र खन्ना द्वारा सामाजिक बहादुरी से संबधित गतिविधियों विशेषकर हिन्दी की लघु साहित्यिक रचनाओं एवं व्यंग्य चित्रों द्वारा सामाजिक जन जागरण आदि के लिये एक अभियान के रूप में सतत जारी स्व निर्मित पोस्टर प्रदर्शनी खरी-खरी के लिये प्राप्त 9, साहित्य मनीषी चित्रकार सम्मान, 1998 गाजियाबाद युवा साहित्य मंडल द्वारा हिन्दी साहित्य लेखन एवं पोस्टर प्रदर्शनी खरी-खरी हेतु प्राप्त 10, चिल्ड्रेन बुक ट्रस्ट, नई दिल्ली द्वारा आयोजित हिन्दी बाल कहानी प्रतियोगिता 1999 व 2002 में पुरस्कृत 11, यूएसएम एवं अ.भा. राजभाषा संगठन गाजियाबाद द्वारा रा. भा. सम्मेलन 2003 व 2006 के अवसर पर विस्तार निदेशालय की हिन्दी पत्रिका व हिन्दी की सराहनीय गतिविधियों के लिए सम्मानित 12, लघुकथा संग्रह कटाक्ष के लिए प्रथम स्व. श्री जगदीश कश्यप लघुकथा सम्मान,2004 (गाजियाबाद) प्राप्त 13, कार्टूनिस्ट के रूप में राष्ट्रकिंकर, नई दिल्ली  द्वारा राष्ट्रकिंकर सम्मान, 2008 से सम्मानित 14, कादम्बरी संस्था, जबलपुर द्वारा व्यंग्य संग्रह आप बीती जग बीती के लिए वर्ष 2008 का व्यंग्यकार सम्मान प्राप्त 14, पूर्वाेत्तर हिन्दी अकादमी, शिलांग द्वारा आयोजित हिन्दी साहित्य सम्मेलन, 2009 के दौरान हिन्दी साहित्य की विशिष्ट सेवा के लिए महाराज कृष्ण जैन सम्मान से सम्मानित 15, शिक्षक विकास परिषद, गोवा द्वारा आयोजित राष्ट्रीय अधिवेशन,2009 के अवसर पर विभिन्न सामाजिक/साहित्यिक व सांस्कृतिक कार्यों के लिए राष्ट्रीय समाज भूषण सम्मान, 2009 से सम्मानित 16, भारतीय संस्कृति एवं राष्ट्रीय एकता में उल्लेखनीय योगदान के लिए स. अवतार सिंह वालिया स्मृति राष्ट्रीय एकता सम्मान, 2010, नई दिल्ली 17, खिलाफत बुलेटिन, देवबंद द्वारा पत्रकारिता दिवस, 2010 पर आयोजित पत्रकारिता सम्मेलन में राष्ट्रभाषा के विकास एवं संवर्द्धन में उल्लेखनीय योगदान के लिए भाषा रत्न सम्मान,2010 से सम्मानित 18, करगिल शहीद स्व. दाताराम के शहीदी दिवस के अवसर पर उनकी स्मृति में घराऊँ (खुर्जा) में आयोजित सम्मेलन,2010 में सम्मानित   19, राष्ट्रीय शिक्षक विकास परिषद द्वारा बेलगाम में आयोजित सम्मेलन, 2010 में चित्र प्रदर्शनी व समाज सेवा हेतु राष्ट्रीय समाज भूषण सम्मान, 2010 से सम्मानित 20, विक्रमशिला विद्यापीठ, भागलपुर द्वारा वर्श 2010 का भाषा सम्मान से सम्मानित  21, राजभाषा संस्थान, दिल्ली द्वारा सोलन (हि. प्र.) में आयोजित हिंदी कार्यशाला एवं सम्मेलन,2011 के अवसर पर कार्यालय में हिंदी कामकाज के लिये सम्मान 22, निम्बार्क शोध संस्थान, हिम्मत नगर, गुजरात द्वारा आयोजित हिंदी-संस्कृत सम्मेलन,2011 के अवसर पर हिंदी साहित्य/संगीत की सेवा एवं खरी-खरी कार्टून प्रदर्शनी के माध्यम से सामाजिक जनजागरण एवं राष्ट्रीय एकता के लिये किये जाने वाले प्रयासों हेतु निम्बार्क साहित्यक राजदूत सम्मान से हिम्मत नगर में सम्मानित, 23, विक्रमशिला विद्यापीठ द्वारा हिंदी सेवा, सारस्वत साधना एवं कला-विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धियों आदि के लिये विद्यावाचस्पति,2011 सम्मान से उज्जैन में सम्मानित 24, दिल्ली सरकार की हिंदी अकादमी एवं अहिंदी भाषी हिंदी लेखक संघ, दिल्ली अकादमी द्वारा नांदेड, महाराष्ट्र में आयोजित अ. भा. हिंदी लेखक सम्मेलन में भाषा रत्न की उपाधि से सम्मानित 25, सीमापुरी टाइम्स द्वारा केंद्रीय कोयला राज्य मंत्री श्री श्रीप्रकाश जायसवाल के हाथों राजीव गांधी एक्सीलेंस अवार्ड,2012 प्राप्त 26, प्रज्ञा कहानी पुरस्कार (2012), 27, शोभना सम्मान,2012 28, माँ धनपति देवी स्मृति कथा साहित्य सम्मान,2012 29, धरोहर स्मृति न्यास, बिजनौर द्वारा बाबू सिंह चौहान स्मृति साम्प्रदायिक सद्भावना पुरस्कार, 2013 30, पं. राम प्रसाद बिस्मिल फाउंडेशन, नई दिल्ली द्वारा हंस के संपादक श्री राजेन्द्र यादव द्वारा प्रदत्त बिस्मिल सम्मान,2013 आदि 31. संस्कृति सम्मान, 2014 द्वारा- राष्ट्रकिंकर, नई दिल्ली 32.  बाल साहित्यकार सम्मलेन, 2014 के दौरान खटीमा (उत्तराखंड) में बाल साहित्यकार सम्मान से सम्मानित 33. शिक्षक विकास परिषद् द्वारा कोल्हापुर में आयोजित राष्ट्रीय सम्मलेन, 2014 में राष्ट्रीय स्तर के सम्मान से अलंकृत 34. प्रतिमा रक्षा सम्मान समिति, करनाल द्वारा प्राइड आफ़ इंडिया अवार्ड, 2014  से सम्मानित, 35. नवनारी महिला द्वारा काठमांडू में गरीब बच्चों के लिए आयोजित चेरिटी समारोह, 2015 में नवनारी सम्मान से अलंकृत.
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गुरुवार, 9 अप्रैल 2015

छह क्षणिकायें-रमा द्विवेदी



विनोद शाही की कलाकृति


रेखाएँ



 (एक)


रेखाओं की भी,
होती है एक इबारत,
पढ़ सको तो पढ़ लेना ।


(दो) 


रेखाएँ,नदी के दो किनारे जैसी हों,
और रिश्तों के बीच बहती रहे,
मिठास, स्नेह और आत्मीयता।


(तीन) 


समानान्तर रेखाएँ
किसी को काटती नहीं,
इसलिए जीवन का बीजगणित,
अर्थवान हो उठता है।


(चार) 


रेखाओं की संवेदना को,
कठोर न बनने दें,
नहीं तो,
मनुष्यता नष्ट हो जाएगी।


(पांच) 


रेखाओं का समीकरण,
अक्षर की व्यतुपत्ति,
शब्द निर्माण,
और शब्द रचते हैं,
गीता,पुराण,
महाकाव्य और महाभारत।


(छह)


रेखाओं को यूँ ही
व्यर्थ मत करो,
क्योंकि यही रेखाएँ
होती हैं सभ्य संस्कृति
और सभ्य समाज की धरोहर।


डॉ रमा द्विवेदी 


102,Imperial Manor Apartment
Begumpet ,Hyderabad -500016 (A.P.)
फोन-.040- 23404051
(M) 09849021742
ईमेल: ramadwivedi53@gmail.com




डॉ रमा द्विवेदी 



डॉ रमा द्विवेदी का जन्म 1 जुलाई 1953 में हुआ । हिंदी में पी एच डी हैं तथा अवकाश प्राप्त व्याख्याता है । दे दो आकाश ,रेत का समंदर तथा साँसों की सरगम  तीन काव्यसंग्रह प्रकाशित तथा `भाव कलश 'ताँका संकलन ,`यादों के पाखी ' हाइकु संकलन ,`आधी आबादी का आकाश ' हाइकु संकलन ,`शब्दों के अरण्य में ' कविता संकलन ,`हिन्दी हाइगा ' हाइकु संकलन ,`सरस्वती सुमन' 'विशेषांक क्षणिकाएँ संकलन ,`अभिनव इमरोज' हाइकु संकलन में रचनाएँ संकलित हैं । `पुष्पक 'साहित्यिक पत्रिका की संपादक तथा साहित्य गरिमा पुरस्कार समिति की महासचिव है । दूर दर्शन हैदराबाद  से काव्य पाठ एवं आकाश वाणी से रचनाएँ प्रसारित । राष्ट्रीय -अंतरराष्ट्रीय मंचों से काव्य पाठ । साहित्य गरिमा पुरस्कार,परिकल्पना काव्य सम्मान  एवं अन्य कई सम्मानो से सम्मानित । अंतरजाल और देश -विदेश की  पत्र -पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित । कविता कोश में रचनाएँ संकलित । साहित्य की कई  विधाओं में लेखन । सर्वे में चयनित -`द सन्डे इंडियंस' साप्ताहिक पत्रिका के  111 श्रेष्ठ महिला लेखिकाओं में चयनित।
kavitakosh:www.kavitakosh.org/ramadwivedi
ईमेल: ramadwivedi53@gmail.com
Blog :http://ramadwivedi.wordpress.com

शनिवार, 4 अप्रैल 2015

अवधेश सिंह की रचनाएं



चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार




प्रियवर, मेरा मन बसंत..



मधुमास में होता है क्यूँ
प्रियवर, मेरा मन बसंत ..

इच्छाएं दरवाजा खोलें
इधर-उधर मनमीत टटोलें
अनजाने कर जाये कोई
मुझमें इंतजार का अंत..

चादर की सिलवट बताये
विरही रात नींद नहीं आये
प्रणय कथा सुनाये कोई
बोलें बैरागी और संत..

अधर धरा को डाली चूमे
पेड़ों बीच बसंती झूमे
पुष्प पराग उड़ाए कोई
साबित कर दे प्यार अनंत..

मदिरालय उतरी आँखों में
रसधार बहती बातों में
ह्रदय चाहता तोड़े कोई
मेरे बंधन सभी तुरंत..

दहक उठे रक्तिम फ्लाश वन
मन में उग आये मधुबन
मरुथल को भीगा दे कोई
मेरी प्यास का हो बस अंत..

मधुमास में होता है क्यूँ
प्रियवर, मेरा मन बसंत ..



बसंत है आज उदास..



आसमान है राज छुपाए
ओस नहीं आँसू टपकाए
खेतों में फूली सरसों
प्रश्नों को हल से बातियाए

नयी फसलों के आंगन अब
आना भूल गया उल्लास
बसंत है आज उदास..

मौसम की रूठी है महफिल
फूलों की डाली है बोझिल
बगिया का सूना है दिल
बसंत को क्या है हासिल

पतझड़ ने रोकी सबकी सांस
बसंत है आज उदास..

तय था खिलना पुष्प खिले  नहीं
मिलना तय था वो मिले नहीं
शीतल हवा के रुख बदले हैं
ठंड–धुन्द के पर निकले हैं

कलियों के होठ बंद हैं
कोहरे में खोया विश्वास
बसंत है आज उदास..


अवधेश सिंह 


'स्वीट होम अपार्टमेन्ट',
एम.आई.जी/ऍफ़ ऍफ़-1,
प्लाट - 212 , सेक्टर-04,
वैशाली,गाजियाबाद–201010
[ रा.राज. क्षेत्र दिल्ली ]
मोबाइल–09868228699
ईमेल- info@hellohindil.com



अवधेश सिंह



  • जन्म: : जनवरी 4, 1959, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश (भारत)।
  • शिक्षा : विज्ञान स्नातक, मार्केटिंग मैनेजमेंट में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा, बिजनिस  एडमिनिस्ट्रेशन में परास्नातक तक शिक्षा प्राप्त की है ।
  • प्रतिनियूक्ति  पर भारतीय सूचना सेवा के वरिष्ठ मीडिया अधिकारी के पद पर भारत सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय के डी.ए.वी.पी. [DAVP] , डी.ऍफ़.पी [DFP] के प्रमुख रहे व पी आई बी [PIB] , समाचार प्रभाग दूरदर्शन तथा आकाशवाणी विभागों से सम्बद्ध रहे [1989 -1995]  ।
  • साहित्यक यात्रा : 1972 में आकाशवाणी  में पहली  कविता  प्रसारित हुई मात्र तेरह वर्ष की बालावस्था में, स्कूल, विद्यालय से कालेज स्तर तक लेख , निबंध , स्लोगन , कविता लिखने का एक  क्रम   नयी कविता , गीत , नवगीत , गज़ल , शब्द चित्र , गंभीर लेख , स्वतन्त्र टिप्पड़ी कार , कला व साहित्यक समीक्षक की विधाओं के साथ आज तक निर्बाध जारी है ।
  • अस्सी -नब्बे के दशक में मौलिक रचनाएँ व लेख, सांस्कृतिक समीक्षायें आदि दैनिक जागरण , दैनिक आज, साप्ताहिक हिदुस्तान , धर्मयुग  आदि   में प्रकाशित हुए   तब के समय ब्याक्तिगत रूप से धर्मयुग के श्री गणेश मंत्री ,  साप्ताहिक हिंदुस्तान की श्रीमती म्रनाल पान्डे , दैनिक जागरण के स्व श्री नरेन्द्र मोहन व वरिष्ठ पत्रकार स्व श्री जीतेन्द्र मेहता , वरिष्ठ पत्रकार स्व श्री हरनारायण निगम का सानिध्य व सुझाव दिशा निर्देश प्राप्त का सौभाग्य  मिला था जो आज भी अविस्मरनीय है. प्रख्यात साहित्यकार, हिंदी प्रोफ़ेसर, पत्रकार डाक्टर स्व. श्री प्रतीक मिश्र  द्वारा  रचित " कानपुर के कवि " एक खोज पूरक दस्तावेज में प्रतिनिध ग़जल- कविता व जीवन परिचय का संग्रह 1990 में किया गया था । नव निकस , परिंदे , मंजूषा ,संवदिया आदि  गंभीर साहित्यक पत्रिकाओं और नेट पत्रिकाओं में लगातार रचनाएँ प्रकाशित हो रहीं हैं ।
  • संपादन व प्रकाशन कार्य यात्रा : सामाजिक संस्था अशोक क्लब की वार्षिकी सामाजिक गृह पत्रिका अनुभूति के संपादन व प्रकाशन कार्य 1979 से 1981 तक किया , मीडिया अधिकारी के रूप में लगातार 1990 से 1995 तक सम्बंधित नगरों की डायरी सूचना प्रसारण मंत्रालय हेतु प्रस्तुत की.  दूरसंचार विभाग की विभागीय प्रकाशन गृह पत्रिका गंतव्य कानपुर 1995 से 1998 तक, विभागीय प्रकाशन गृह पत्रिका हिमदर्शन शिमला 2000 से 2002 तक में सम्पादकीय सहयोग का कार्य  किया इसके अतिरिक्त दूरदर्शन शिमला ,आकाशवाणी तथा स्थानीय मंचों पर काव्य पाठ के साथ विभागीय राज-भाषा कार्यों में सतत संलग्नता नें हिदी साहित्य की उर्जा का लगातार उत्सर्जन किया है ।
  • प्रकाशित किताबें-
  • -प्रेम कविताओं पर आधारित संकलन "छूना बस मन"  [2013 ]
  • -सामाजिक विघटन ,मूल्यों -आस्थाओं पर कविताओं का संग्रह "ठहरी बस्ती ठिठके लोग " [2014]
  • प्रकाशाधीन पांडुलिपियाँ : आवारगी (गजल संग्रह ) , नन्हें पंक्षी (बाल कविताओं का संगह )
  • सम्पादन : अंतर्जाल साहित्यक-सांस्कृतिक पत्रिका www.shabdsanchar.in
  • अन्य संपर्क : https://www.facebook.com/awadheshdm , www.hellohindi.com
  • सम्प्रति : वर्तमान में ग्रेड-ई 5 सीनियर एक्जीक्युटिव अधिकारी पद पर भारत संचार निगम लिमिटेड के कार्पोरेट आफिस नयी दिल्ली में कार्यरत हैं।