चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
तुम्हें छू लेती हूँ
तुम्हें छू लेती हूँ
खाली कागज़ पर शब्दों से
पेंटिंग में भर के रंग
ठहरे पानी में फैक के कंकड़
बरसती बूंदों को तन पर छुआ कर
पेड़ से टपके पत्ते की शरारत से
तुम मेरे पास नहीं
फिर भी तुम्हें छू लेती हूँ
अहसासों के कुंड में नहा कर
छूने के लिए पास होना जरूरी तो नहीं
मन की सड़क
मत दिखाओ मेरे पावोँ को
अपने मन की सड़क
फिर क्या पता वो रास्ता
मुझे रास आ जाए।
महरों-माह की चमक रहेगी
ताउम्र हमारे रिश्तों पर
ख़्यालों का यूं फिसलना
रातों को रास आ जाये।
थकने लगे हैं अब तो
तेरी-मेरी परछाइयों के भी पाँव
ए जिंदगी तेरा धीरे चलना
थकान को रास आ जाए।
जिंदगी जो बन गयी थी
तेज़ाब की उफनती नदी
क्या पता किसी रिश्ते को
फिर तैरना रास आ जाये।
वफ़ा की बात करते हो
तमाम रास्ते तिरगी करके
इतिहास जीने के लिए, फिर
अनारकली होना रास आ जाए।
अलाव
तुमसे अलग होकर
घर लौटने तक
मन के अलाव पर
आज फिर एक नयी कविता पकी है
अकेलेपन की आँच से
समझ नहीं पाती
तुमसे तुम्हारे लिए मिलूँ
या एक और
नयी कविता के लिए ?
फागुनी मन
सपनों में भर के रंग
अक्सर भूल जाया करते हैं
कि पेड़ों के सायों को भी
धूप सताती है
सपनों की रंगीन स्याही से
हाथ की टूटी लकीरों पर
कुछ इबारत जब जब लिखी है
रात आ कर
हथेली को रगड़ गई हैं
स्याही चूस
वक्त की खूंटी पर
मेरी जिंदगी को
टांग कर अक्सर
मेरे ही दर्द
नहाने चल देते हैं
नदी में
उजले हो कर लौटते हैं
और
गुनगुनाते हुए
मेरी पीढ़ा के दंश को
नाग बन चूस लेते हैं
सहमे से मेरे प्राण
सुख के खरगोश
ढूंढने लगते हैं।
बोंजाई
हर रोज़ यह चाँद
रात की चोकीदारी में
सितारों की फ़सल बोता है
पर चाँद को सिर्फ बोंजाई पसंद है
तभी तो वो सितारों को
कभी बड़ाही नहीं होने देता है ।
आँखों की सड़क
मेरी आँखों की सड़क पर
जब तुम चलकर आते थे
कोलतार मखमली गलीचा बन जाता था
मेरी आँखों की सड़क से जब
तुम्हें वापस जाते देखती थी
वही सड़क रेगिस्तान बन जाती थी
तुम फिर जब-जब वापस नहीं आते थे
रगिस्तान की रेत आँख की किरकिरी बन जाती थी
आँखों ने सपनों से रिश्ता तोड़ लिया था
फिर मुझे नींद नहीं आती थी
उसके जाने के बाद
उसके जाने के बाद मैं
ताकती रही उसके क़दमों के निशाँ
मैंने कहा था उसे
हो सके तो उन्हें भी साथ ले जाना
अब कितना मुश्किल है उसका जाना…
जिंदगी के जाने के बाद मै
छूती रही उसकी परछाई के निशां
मैने कहा था उसे
हो सके तो साँसे भी साथ ले जाना
अब कितना मुश्किल है जीना ….
यादों के जल जाने के बाद मै
बिनती रही उसकी राख़ के निशाँ
मैने कहा था उसे
हो सके तो राख़ उढ़ा ले जाना
अब कितना मुश्किल हैं
ढेर में जीना….
डॉ अनिता कपूर
- शिक्षा : एम.ए. हिन्दी, अँग्रेजी एवं संगीत (सितार), पी.एचडी (अँग्रेजी),पत्रकारिता में डिप्लोमा
- कार्यरत : अमेरिका से प्रकाशित हिन्दी समाचारपत्र “यादें” की प्रमुख,संपादक, “ग्लोबल वुमेन पावर” संस्था संस्था की को-फ़ाऊनडर
- प्रकाशित कृतियाँ: बिखरे मोती, अछूते स्वर, ओस में भीगते सपने,कादंबरी, साँसों के हस्ताक्षर (कविता-संग्रह), दर्पण के सवाल (हाइकु-संग्रह), अनेकों भारतीय एवं अमरीका की पत्र-पत्रिकाओं में कहानी, कविता, कॉलम, साक्षात्कार एवं लेख प्रकाशित, प्रवासी भारतीयों के दुःख-दर्द और अहसासों पर एक पुस्तक शीघ्र प्रकाशीय.
- पुरस्कार/सम्मान:(2015) अमेरिका में कम्यूनिटी सम्मान,GOPIO द्वारा तथा मिलपिटस शहर के मेयर द्वारा सम्मानित, (2014) पंचवटी राष्ट्रभाषा सम्मान, समाज कल्याण बोर्ड द्वारा सम्मानित, अमेरिका के टीवी और गोपियो संस्था द्वारा कम्यूनिटी सम्मान-(2013) GOPIA (Global organization of People of Indian Origin), अमेरिका, द्वारा हिन्दी में योगदान के लिए सम्मान, -जोधपुर में “कथा-साहित्य एवं संस्कृति संस्थान” द्वारा “सूर्य नगर शिखर सम्मान” (वर्ष 2012) ,-“कायाकल्प साहित्य-कला फ़ाउंडेशन” सम्मान (वर्ष 2012),-“कवयित्री सम्मेलन” आगरा द्वारा विशिष्ट सम्मान (वर्ष 2012) ,-महाराष्ट्र राज्य हिन्दी अकादमी और कथा यू.के द्वारा प्रवासी हिन्दी सेवी सम्मान (2012),-10 वां अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी उत्सव, नयी दिल्ली, प्रदत् “अक्षरम प्रवासी साहित्य सम्मान”, (2012) ,प्रवासी हिन्दी सेवी सम्मान-2012,प्रवासी कवियत्री सम्मान-2012,कायाकल्प साहित्य कला फ़ाउंडेशन-12 पॉलीवूड स्टार मीडिया अवार्ड-2011, सामाजिक सेवा अमरीका अवार्ड-2009
- संपर्क: Fremont, CA 94587, USA
- फोन: 510-894-9570
- ईमेल: anitakapoor.us@gmail.com
सभी रचनाएं प्रभावी हैं ...अलाव कविता विशेष प्रिय लगी ..आदरणीया अनिता जी उच्चकोटि की सृजन क्षमता रखने वाली कवियित्री हैं ...उन्हें उनकी रचनाओं के लिए बधाई ....सुबोध जी .आपका धन्यवाद साझा करने के लिए ...!!
जवाब देंहटाएंshukriya bhavana ji
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