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अजामिल की कलाकृति |
डर
रिश्तों को
जोड़ कर रखते रखते
अब थकने लगा हूँ
एक टांका लगाता हूँ
दूसरा टूट जाता है
सब्र की सुई भी
भौंटी होने लगी है
मोह का धागा
कमज़ोर पड़ने लगा है
दिल पर काबू रखना
मुश्किल होने लगा है
रिश्तों का लिबास
तार तार नहीं हो जाए
सारी कोशिशें
बेकार नहीं जाए
सोच कर
मन घबराने लगा है
मोहब्बत की हार
खुदगर्ज़ी की
जीत के डर से
दिल बैठने लगा है
मिज़ाज़ बदल डालें
कई मौसम बदल गए
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg8crzwI0hdy4YcCszT7KgY-LwhkSiT3g3k44ocJ-Yn6Y-R3FDRMtlW4LpXROnOM8TCvzED2gzLO4R5RdzwInAe52jgypuQBrYITeat2al07tDJdRH4ttfcb2lfF_EdbEt4VVs_ZIh44xkV/s1600/rajendra.jpg)
न तुम बदले
ना हम बदले
दोनों ज़िद पर अड़े रहे
ना तुम्हें सुकून मिला
ना हमें सुकून मिला
नाहक ही
अहम में जीते रहे
आओ अब
मिज़ाज़ बदल डालें
तल्खियाँ कम कर लें
मोहब्बत का
मौसम भी देख लें
सुकून का मज़ा चख लें
DHANYWAAD
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