विनोद शाही की कलाकृति |
मेरे होने का मतलब: चार कविताएं
(एक)
कहते हैं साथ कुछ नहीं जाता
पर कुछ तो होगा जो
चला जायेगा मेरे साथ
फलित होने को
इस यात्रा के अंत में
शायद कोई ऐसा क्षण
जो मैंने जिया हो किसी के लिए
और वही क्षण रह भी जायेगा शायद
यहाँ मेरे पीछे.
(दो)
उस तरह नहीं
जिस तरह
चली जाती है पगार
महीने के पहले ही दिनों में
उचाट नींद के अधूरे सपने
दिन में भी चलते रहें
समय की सबसे हिट फिल्म की तर्ज़ पर
सर्दियों की गीली रातों में
सुलगता रहे
लकड़ी का एक सिरा
ऊष्ण उम्मीद बनकर
बम धमाके के बाद
पडी हो देह निष्प्राण
एक जीवन को ढंकती
जिसे मृत समझकर चले जाएँ जीवन के हत्यारे
सारी कड़वाहट कही जा चुकी हो
तब नयी इबारत के लिए
मेरी नीली पड चुकी देह लिखे
मौन को चीरती कविता
पीले पत्तों की तरह
जाना है मुझे
कोंपलों के लिए वसंत में जगह बनाकर.
(तीन)
.मानसून का पहला काला बादल
चढ़ रहा हो पश्चिम के आकाश में
और कोई विखंडित व्याकुल पुकार
बस डूबने को ही हो
धरती की शुष्क रगों में
अंतिम करवट ले रहा हो
जब अस्तित्व का कोई दाना
ऐसे संधिकाल में
होता है
बूँद का बूँद होना
जब सड़क पर जुटी भीड़ के नारे
चीत्कार बन चुके हों
और उनमें आ गयी हो
ताक़त
सच हो सकने की
भीड़ का भीड़ होना
होता है तभी
अपने होने की
पहचान दे सकने वाले
ऐसे ही एक क्षण के लिए
जीता हूँ मैं
जब वह आकर
निकल जाये
तो सांस बह सके
मुझसे निकलकर
मुक्त निर्बाध पवन में
और कोई देह का दरवाज़ा खटखटा कर कहे
चलो समय हो गया.
(चार)
.मैं बारिश में भीगूँ
और उग आऊं
जंगली अनाम फूल बनकर
जीवन की पगडंडी के दोनों ओर
चिलचिलाती धूप में
जल बिंदु सा गुम हो जाऊं
किसी बंजर धरा की
बदली बनने को
उस कड़ाके में
जैसे पेड़ों के पत्ते चले जाते हैं
आने वाली पीढीयों को
वसंत की सौगात देकर
इस तरह जब मैं चला जाऊं
तो सब मुझे महसूस करें
चारों ओर
सारी प्रतीक्षाओं के परे
जब मैं जा चूका हूँ
तो लगे मैं कभी गया ही नहीं.
परमेश्वर फुंकवाल
49, गांधीग्राम रेलवे अधिकारी कोलोनी,
निकट मीठा खली रेलवे क्रासिंग,
एलिस ब्रिज, अहमदाबाद 380006.
परमेश्वर फुंकवाल
- जन्म: 16 अगस्त 1967
- शिक्षा: आई आई टी कानपुर से सिविल इंजीनियरिंग में स्नातकोत्तर
- प्रकाशन: यात्रा, परिकथा, समालोचन, अनुनाद, अनुभूति, आपका साथ साथ फूलों का, लेखनी, नवगीत की पाठशाला, नव्या, पूर्वाभास, हाइकु दर्पण, विधान केशरी आदि में रचनाओं का प्रकाशन. ‘कविता शतक’ में नवगीत संकलित.
- सम्प्रति: पश्चिम रेलवे अहमदाबाद में प्रशासनिक अधिकारी
- ईमेल: pfunkwal@hotmail.com
पीले पत्तों की तरह
जवाब देंहटाएंजाना है मुझे
कोंपलों के लिये वसंत में जगह बनाकर....
वाह .... बहुत सुनदर और गहन अभिव्यक्ति.
शुक्रिया कृष्ण नंदन जी.
हटाएंहमेशा की तरह प्रभावपूर्ण वाक्य रचना से सुसज्जित, बधाई सर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद छत्रपाल जी.
हटाएंपरमेश्वर जी की रचनाओं में संवेदना और यथार्थ के मिले जुले वो सवर हैं जो देर तक पाठक को आनन्दित करते रहते हैं | आपकी चौथी रचना विशेष भायी |
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