चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
होली की गोधूलि बेला में..
होली की गोधूलि बेला में आलि ,
तू खड़ी मगन लिए दीपों की थाली?
माथे पर सिन्दूरी आभा,पर.....
कसमसाता,
तेरी रहस्यमयी आँखों में बसा क्रंदन,
रक्ताभ कपोल दमकते...
पर कंपकंपाता ,
तेरे मेंहदी रचे हाथों का कम्पन.
तेरे मदमाते यौवन में बँधी,
यह कैसी होली, कैसी दीवाली?
होली की गोधूलि बेला में आलि,
तू खड़ी हाथ में लिए दीपों की थाली?
हाँ सखि यह मेरी होली,यही मेरी दीवाली.
होली की गोधूलि बेला में आलि ,
मैं खड़ी प्रतीक्षारत लिए दीपों की थाली.
माथे के सिन्दूर में बसा है एक विश्वास,
आतुर नयनों में लिए मिलन की आस.
मौन अधरों में धड़कता हृदय स्पंदन.
मेहँदी रचे हाथों से मैं पिया की सेज सजाती.
होली की हर संध्या में मैं दीपमाला सजाती.
हाँ होली की गोधूलि बेला में आलि,
मैं खड़ी प्रतीक्षारत लिए दीपों की थाली.
तू रंग-बिरंगे रंगों में डूबी बनी मतवाली?
दीप-शिखा की लौ में देख विरह की लाली.
सखी री ...
आज न खोलूँगी हृदय के द्वार ,
करूँगी सैंया से जी भर तकरार,
प्रेम गली से जब जायेंगे वापस ,
अठखेलियाँ करूँगी बारम्बार .
सखी री ...
गीत विरह के गाऊँगी जी भर के ,
याद करूँगी पिया को जी भर के ,
अँखियाँ जो मेह सी बरसन लागी
अनसुनी करूँगी दिल की पुकार .
सखी री ...
चैन न आये,रैन बीती पिया बिन,
अँखिया थक गयीं तारे गिन-गिन,
साँकल दिल की किवड़िया लागी ,
खोलूँगी अब, जब करेंगे मनुहार .
सखी री ...
शील निगम
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अंधेरी (पश्चिम),मुंबई-61
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