कमला कृति

मंगलवार, 22 मार्च 2016

रंग बरसे: मंजुल भटनागर की रचनाएँ


चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार


होली का अबीर


एक  पहली,
बनी रुपहली
पिया मिलन को
अंखिया तरसे
मनवा झुलसे
न कोई सन्देश
ना चिठिया अरसे
होली का रंग पर
चहु दिश बरसे

लगे कभी तो
फागुन रंग में
रंग गए  कान्हा
प्रेम रंग में भीगी गोपीन
बचपन की सब
नटखट सखियां ,
संग सहेली
संगी  अतरंगी
श्यामल  चुनरी रंगी
मन हुआ सतरंगी

मीरा की सी टीस
छिपा  कर
नव दुल्हनिया
प्रेम रंग से भरी अंजुरी
रंग गयी साडी, रंगी  नथनिया
बेरिंन हो गयी,अपनी अंखिया

प्रेम रंगी तो तन की चादर
मन की गागर
गगन में  छिटकी
मोहक चाँदनी
बनी फागुनी
खिली कुमुदनी
होली के रंगों को लेकर
नेह का सिंदूर लगा कर
सजी सलोनी
भोर उजासी
दसो दिशा में
होली की अबीर घुल गयी
पूरब  दिशा सी ।


चितचोर 


आम्र पर बौर है

लिए सरसों पीत वर्ण
झूम रही कृषक मन
फागुन चित्तचोर है

कोयल की कूक सुन
अनमना सा क्यों है मन
उठ रही क्यों आज
प्रीत भरी हूक  तन

फूल भरी शाख है
मन फिर भी उदास है
गोपियाँ रंगों भरी
तन मन उजास है

प्रकृति का हास है
पिया मिलन की आस है
रंग संग श्याम खेलें
होली का चुहू वास है

पलाश टेसू रस से भरे
पिचकारियों संग झरे
ग्वाल बाल रंगों से सने
फागून की बरसात है .


होली का आना


होली का आना
जैसे रंग की बौछार  लिए
टेसू पलाश हो जाना
गुलाल रंग मुख रंगें
अबीर बन बादल हो उड़ जाना
होली का आना
गाँव में ढोल
खेत में  मंजिरें खड ताल बजना
गुजिया में  पकवान  बने
शगुन की भाँग घुटना
गलियां  रंगेंगी रंग में
मुहल्लों में अमन सा आज
पायल खनकाती फिरे
हवा फागुनी
ख़ुशी से झूम रही जेसे
लाडली बहना
होली का आना
तो मिलन का एक बहाना है
गोकुल में फाग संग
ग्वालों का
हुड़ दंग मचाना
कृष्ण रंग की प्रीत है
उधौ देख दंग  है?
झाँक रही चूनरियों में
ढाई आखर का प्रसंग है
गोपियों संग रास आज

कृष्ण प्रेममय हो जाना
होली का आना
प्रेम प्रीत का मन्त्र  है
कोयल संग आम्र वृक्ष पर बैठ
मीठे राग सुनाना
होली का मौसम आये तो
नफरत छोड़ विश्व बंधुत्व में रंग जाना .


फिर फागुन मन..


टेसू ने रंगो से खेला
फिर फागुन मन यू
चितवन में डोला
धीरे से मनवा यू बोला
सोनजुही की पंखुरियाँ देख
लाल गुलाब हुआ छेल छबीला
हर मौसम में मन अलबेला
लुप्त कभी न हो
रंगों का यह अद्भुत मेला .


किरण समेटे उजाले..


किरण समेटे उजाले
आ गए द्वार पाहुने
सतरंगी चुनर है
कलियों के हैं घाघरे

द्वार उद्यान कलरव है
भौरें भी गा रहे वाद्य रे
जाग गयी सभी दिशाए
जाग गए मन फाग रे।

जड़ चेतन प्रगट हुए
गाँव में पगडण्डी आबाद
रहट गिर्द बेल घूमे
दुनिया घूमे घाम रे

भोर तकती दूर से
रौशनी भरती धूप से
सुख दुःख सा जीवन भी
आज है आतप कल सबेरा
जग की यही रीत
सब गुने मन जाग रे।


हाइकू


(एक)

रंगरेजन
कृष्ण प्रीत नयन
पीत वसन।


(दो) 

फागुन आस
पल्लव परिहास
कान्हा का रास !


(तीन) 

रंगरेजन
राधा थी पुख राज
कान्हा गुलाल .

(चार) 

एक चेहरा
रंगों की नकाब में
तेरा न मेरा.

(पांच)

इत्र सरसे
लतिका परिहास
फागुन आस


मंजुल भटनागर


0/503, तीसरी मंजिल, Tarapor टावर्स
नई लिंक रोड, ओशिवारा
अंधेरी पश्चिम, मुंबई 53।
फोन -09892601105
022-42646045,022-26311877।
ईमेल–manjuldbh@gmail.com

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