चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
आओ आज जलाए होली,
ईर्ष्या, जलन, घुटन की होली।
अवगुण, स्वार्थ, चुभन की होली,
चुगली, दमन, घात की होली।।
मंगाई, रिश्वतखोरी के,
जगह-जगह भारी अड्डे हैं।
नहीं निजी, सरकारी बाकी,
यहाँ वहाँ गहरे गड्ढे हैं।।
किया कलंकित धर्म धरा को,
लगते खेल खून की होली।
दहशत के साए में भाई,
किरकिट बाल दीखती गोली।।
कर देती तन-मन को घायल,
आज ठिठौली लगती गोली।
बम तन पर खनकाए पायल,
समझाओ क्या खेलूं होली।।
कल्याणसिंह शेखावत
श्री कल्याण रेजीडैंसी
39-उमा पथ राम नगर
सोडाला, जयपुर-302019
मो. नं. 9461300099
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