चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
सुखद घनेरी छाँव..
कर में बसते देवता, कर दर्शन नित प्रात,
एक नए संकल्प से दिन की हो शुरुवात।
कर दाता, कर दीन भी, जैसा करें प्रयोग।
छिपा हुआ हर हाथ में, सुख दुख का संजोग।
दिखलाती हर रेख है, जीवन की तस्वीर।
अपने हाथ सँवार लें, खुद अपनी तकदीर।
अपनेपन से है बड़ा, नहीं दूसरा भाव।
हाथ मिले तो गैर भी, करे नेक बर्ताव
गुस्से में जब कर उठे, मन हो जाता खिन्न।
सहलाए कर प्यार से, तो हो वही प्रसन्न।
अंतर में चाहे भरा, कितना भी दुर्भाव।
होता स्नेहिल स्पर्श से, पशु मन में बदलाव।
कर से ही निर्माण हैं, कर से ही विध्वंस,
या तो मनुज कहाइए, या फिर दनुज नृशंस।
हवा विषैली हो चली, चलो विहग उस गाँव।
जहाँ स्वच्छ आकाश हो, सुखद घनेरी छाँव।
भूख बढ़ी है शहर में, पड़ने लगा अकाल।
क्या खाओगे तुम, तुम्हें खा जाएगा काल।
राहें हैं दुर्गम बड़ी, मगर न टूटे आस,
भर लो कोमल पंख में, एक नया उल्लास।
कल्पना रामानी
- जन्म तिथि-6 जून 1951 (उज्जैन-मध्य प्रदेश)
- शिक्षा-हाईस्कूल तक
- रुचि- गीत, गजल, दोहे कुण्डलिया आदि छंद-रचनाओं में विशेष रुचि।
- वर्तमान में वेब की सर्वाधिक प्रतिष्ठित पत्रिका ‘अभिव्यक्ति-अनुभूति’ की सह संपादक।
- प्रकाशित कृतियाँ-नवगीत संग्रह-‘हौसलों के पंख’
- निवास-मुंबई महाराष्ट्र
- ईमेल- kalpanasramani@gmail.com
मेरी रचनाओं को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार सुबोध जी
जवाब देंहटाएंaapki rachnaon ka sada swagat hai kalpna ji..
हटाएंभाव सुघर उर में लिए,लिखती मधुर कलाम
जवाब देंहटाएंकल्पनाओं के शिखर पर ,सुंदर शबद ललाम॥
आपके इस स्नेह से अभिभूत हूँ, प्रिय कल्पना! अपनेपन की यह डोर हमेशा मजबूत बनी रहे। शुभकामनाएँ...
हटाएंकल्पना दी ,आप की शान में मेरी तरफ से एक दोहा,गलती हो तो मांफ करिएगा :)
जवाब देंहटाएं……सुन्दर भाव संयोजन्।
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