कमला कृति

गुरुवार, 5 मार्च 2015

रंग बरसे: पांच कुण्डलिया-शैलेन्द्र शर्मा


चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार



कवि

        

कतरन ले अखबार की
उसको तनिक उबाल
कहकर व्यंग परोसते
कविवर  बांकेलाल
कबिवर  बांकेलाल
लाल ये ललितकला के
मंच लूटते खूब
द्वि-अरथी तीर चला के
कहते कवि शैलेन्द्र
सुधीजन झेलें ज़बरन
वाह वाह क्या खूब
गज़ब ढाये है कतरन



आचार्य

     

बन बैठे आचार्य वे
कर पिंगल का जाप
किंतु काव्य के क्षेत्र में
रहे अंगूठाछाप
रहे अंगूठाछाप
चली पर चालें ऐसी
शनै: शनै: हो गयी
काव्य की ऐसी-तैसी
कहते कवि शैलेन्द्र
जली रस्सी से ऐठे
चलकर टेढी चाल
मियां फरज़ी बन बैठे



संपादक

    

निश्चित रोग छपास का
हर लेता है ताप
संपादक के नाम का
सदा कीजिये जाप
सदा कीजिये जाप
और भरसक अभिनन्दन
ह्विस्की से अभिशेक
सतत नवनीतम लेपन
कहते कवि शैलेन्द्र
न संशय करें कदाचित
स्वयं सिद्ध यह जाप



गज़ल-गो


पढ-पढ कर कुछ मज़मुए
गढ-गढ कुछ शेर
गालिब वे जब से हुए
' मिर्जा गालिब ' ढेर
'मिर्जा गालिब' ढेर
' मीर ' भरते हैं पानी
रह-रह आती याद
' दाग '  को अपनी नानी
कहते कवि शैलेन्द्र
डीग मारें ये बढ-चढ
कुछ सीखो भी मियां
इन्ही को तुम भी पढ-पढ



आयोजक


आयोजक भी काव्य के
अब हैं तुर्रमशाह
कोप-दृष्टि जिन पर पडे
होते वही तवाह
होते वही तवाह
फ़ाडते कपडे अपने
कौडी मोल खरीद
बेंचते सपने जिनके
कहते कवि शैलेन्द्र
करो मत इनसे बक-झक
अगर चाहते मंच
सतत पूजो आयोजक


शैलेन्द्र शर्मा

248/12, शास्त्री नगर,
कानपुर-208005
मोबा: 07753920677
ईमेल:shailendrasharma643@gmail.com

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