चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
रंग उड़े बयार में..
रंग उड़े बयार में
खुशबू हरसिंगार
टेसू मन रंग गए
पत्ते बंदन वार
ओढ़े चुनर थी ठगी
सरसों बारम्बार
खेत खलिहान रंग गए
मलयानिल बौछार .
फाग नहाई रुत हुई
जीवन जगा बसंत
पिया मिलन की आस में
चकवी उड़ी दिगंत .
द्वार सजाने आ गए
बाल गोपाल अनंग
बसंत भेज सन्देश तो
मन में बजे मृदंग .
टेसू तन मन भिगो रहे
गुलाल अबीर कपोल सजे
आज बुनेगा प्रेम कोई
नूतन प्रणय प्रसंग .
रंग भरे बादल से..
रंग भरे बादल से
उड़ रहे अबीर संग
आँगन द्वार रंग गए
यादों के पनघट
सज गए .
गाँव छोड़, शहर गए
खेतों दो मंजिला भये
खलियान बेरंगत हुए
देख मन रुसवा हुए
यादों के पनघट
सज गए .
कृष्ण रेंगे गोपियाँ रंगी
रधिया अपटूडेट सजी
दुलेंडी के गीत गवे
कचौरी और गुजिया बनें
शगुन की घुटी भाँग
सुन मनवा भी मोद भए
यादों के पनघट
सज गए .
होलिका जली चौराहे पे
भूंज लाये बूटवा
हल्दी लगी चूनर उड़े
फाग मंजिरें ढोलक बजे
आंखियन पोर रेशमी हुए
यादों के पनघट
सज गए .
बसंत ओड़ दुशाला..
बसंत ओड़ दुशाला
झुरमुटों का
पीत वसन छिटका रही
दूर तलक .
सरसों बीच छिपी चाँदनी
सिमिट गयी .
किरण दिनमान के
पंख लगाये
उतरी है धरा पर
शुभ्र निश्चल.
मंगल हलद पीत
वीणा के तार झंकृत करती
मन प्रागंण में ,रंग भरे .
निशब्द मन तकता कौन .
होली उत्सव है ,धूम मचे न हो मौन .
खुशबुओं के पाँव फैले..
होली की सुगबुगाहट है
पेड़ों ने की खुसर पुसर है
पक्षियों संग विमर्श है
पत्ते खत सा निमंत्रण हैं.
टेसू ,बोगन विला रंग भरे
द्वार फैले ,छाँव फैले
रंग फैले रहा अबीर सा
खुशबुओं के पाँव फैले
प्रकृति में आकर्षण है
पत्ते खत सा निमंत्रण है
अंतर्मन प्रतीक्षा है
बावरी उत्सुकता है
कोई उम्मीद जग रही
कोपले रस ले पगी
दे रही आमंत्रण है
पत्ते खत सा निमंत्रण है
हाट सजे बाग़ सजे
पलाश हरसिंगार सजे
सूर्य रथ चल पड़ा
हाक रहे श्री कृष्ण हैं
गोपियाँ मुग्ध हैं
उधो की न सुनें
प्रेम प्रीत हर्षन है
पत्ते खत सा निमंत्रण है .
फागुन चित्तचोर है..
आम्र पर बौर है
फिज़ाओं में शोर है
लिए सरसों पीत वर्ण
झूम रही कृषक मन
फागुन चित्तचोर है
कोयल की कूक सुन
अनमना सा क्यों है मन
उठ रही क्यों आज
प्रीत भरी हूक तन
फूल भरी शाख है
मन फिर भी उदास है
गोपियाँ रंगों भरी
तन मन उजास है
प्र कृति का हास है
पिया मिलन की आस है
रंग संग श्याम खेलें
होली का चुहू वास है
पलाश टेसू रस से भरे
पिचकारियों संग झरे
ग्वाल बाल रंगों से सने
फागून की बरसात है .
रंग भरे पलाश..
होली का आना
रंगों की दुनिया का
मुट्ठी में थी
सिमिट जाना.
उड़ रही है गंध
फिजाओं में
आँगन में उगे थे
कुछ रंग भरे पलाश
टेसू फूल डूबे
कांसे के डोळ में
अमृत बरस रहा था
बिन मोल में.
पलक झपकी थी
और दृश्य बदल गया
होलिका का मन छल गया
प्रह्लाद को बिठा अंक
पर अहंकार छल गया
असत्य यूँ जल गया .
मंजुल भटनागर
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Good poetry , from tradition to ' UPTODATE'
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