चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
होली आई है..
उड़े अबीर-गुलाल कि होली आई है.
करते रंग कमाल कि होली आई है.
भाँग छानकर हुए रवाना झाँसी वो,
पहुँच गए भोपाल कि होली आई है.
बच्चों को हम क्या समझाए ऐसे में,
बाबा करें धमाल कि होली आई है.
खेलें रंग कुंवारे देवर भाभी से,
भैया हैं बेहाल कि होली आई है.
पत्नी से वे कहते-तुम मैके जाओ,
मैं जाता ससुराल कि होली आई है.
रंग भरी पिचकारी मारी साली ने,
जीजा हुए निहाल कि होली आई है.
लपट-झपट कर कपड़े सालों ने फाड़े,
वे दिखते कंगाल कि होली आई है.
चाहे जैसे रंग खेल लो मस्ती में,
पर मत करो बवाल कि होली आई है.
किससे खेलूँ रंग पिया..
जब तुम ही नहीं हो संग पिया.
मैं किससे खेलूँ रंग पिया.
ये बैरी फागुन मतवाला,
करता है कितना तंग पिया.
जिस ओर नजर उठती मेरी,
दिखता है सिर्फ अनंग पिया.
ऐसे मौसम से मन मेरा,
क्या कर पायेगा जंग पिया.
यादों के नभ में उड़ती है,
फिर मन की आज पतंग पिया.
रंगों से नहीं अब अश्कों से,
सब भीग रहे हैं अंग पिया.
आ भी जाओ इस होली पर,
डालो मत रँग में भंग पिया.
डॉ. कमलेश द्विवेदी
119/427, दर्शनपुरवा,
कानपुर-208012 (उ.प्र.)
मो.09415474674,08081967020
ईमेल-drkamlesh.dwivedi@gmail.com
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