चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
हिचकियां याद दिलाएँगी..
हिचकियां याद दिलाएँगी भूलने वालों को
गुमनाम चिठ्ठियां यूँ लिखी जाती नहीं ।
जल चुका है पूरा जंगल एक शरारे से
हवाओं की वो शरारत रुक पाती नहीं।
डूब जाते हैं लोग यूँ ही इस समन्दर में
कश्तियां ये सबको पार लगाती नहीं।
फिर टूटा है एक तारा आसमान में और
हर टूटे तारे की खबर लग पाती नहीं।
बह जाते हैं कई समन्दर बन्द पलकों से
खुली आंखों की किरक मगर जाती नहीं।
रात की पलकों पर..
रात की पलकों पर फिर खेला है चांद
फिर हवा आज यह जाने कैसी चली
मेरे संग संग चल तो रहा था आसमां
रास्तों ने ही यूँ मुड़-मुड़के करवटें लीं
तारों का ये कारवां लेकर हम जाए कहां
हर आँख में तो झिलमिल एक मूरत बसी
किनारे वो प्यासे खडे ही रहे उम्र भर
नदी एक दरमियां थी, जो बहती रही
उड़ने को आकाश नहीं..
उड़ने को आकाश नहीं ठहरने को टहनी नहीं
समंदर सी गहराई है पर पीने को पानी नहीं
दरिंदों के साये हैं यहाँ पर दरख्त नहीं
खुदा की दुनिया में अब रहमत नहीं
नादानी है हमने बात ये हंस कर उड़ा दी
पर मन ने बात वो हरगिज मानी नहीं
चलो घोंसले बनाए खुशियाँ जो उम्मीद से हैं
रूह का सफर ये सुख-दुख की कहानी नहीं।
रेत रेत की प्यास..
जंगल जंगल आग लगी मन पाखी ना शांत
एक कहे विश्वास तुम, दूजा तुम मेरे एकांत
सागर से मन में कब डूबी सूरज सी हर बात
लहर लहर का शोर और रेत रेत की प्यास
चांद खड़ा खिड़की से बोला बढ़ना घटना जग का भाव
मन बेचारा कैसे जाने एक सीमा भी लांघ सके ना पांव़
तीखे हैं आंखों के सपने तीखी मन की प्यास
तीखी इक आंच से जलते धरती औ आकास
बूंद बूद बरसा है भटकेगा अब फिर यह मेघ विपुल...
किरन किरन धरती की आस ओढ़े जो बैठी इंद्रधनुष।
बूंद-बूंद बरसते हैं लब्ज..
बूंद-बूंद बरसते हैं लब्ज आसमां से
और लहरों की साजिश में डूब जाते हैं
जैसे बगीचे में बैठा पत्थर का बुद्धा
हिलता नहीं आँधी और तूफानों में
जैसे नभ के सारे रंग, तारे औ फूल
खिलते बुझते रोज, अनदेखे नजारों में
कल रात एक कविता जन्मी तो थी
पर जी न सकी मन के वीराने में...
समंदर सी प्यास है जिन्दगी..
तिश्नगी, समंदर सी प्यास है जिन्दगी
बरस जाते हैं बादल भी रेगिस्तान में
जंगल और जीवन का नियम नहीं
भटकते क्यों दिनरात सभी चाह में
सूखे पत्तों से झांके रूप औ खुशबू
दबी रह जाए एक चिनगारी राख में
बढ़े तो बढ़े घटे तो घटता ही जाए
चंदा भी उलझा है किस विचार में
नमक सा बदल दे स्वाद तुरंत ही
मिल जाए जब चाहत इंतजार में
शैल अग्रवाल
राग-वैराग के शहर बनारस में 21 जनवरी 1947 को जन्म और वहीं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में एम.ए। मानव और प्रकृति के साथ-साथ भाषा और भारत में विशेष रुचि। 50 से अधिक देशों का भ्रमण। रुझान कलात्मक व दार्शनिक। अंग्रेजी के साथ साथ संस्कृत और चित्रकला में प्रथम श्रेणी में औनर्स, साथ-साथ मूर्तिकला और सितारवादन व भरतनाट्यम में भी प्रशिक्षण। शादी के बाद से यानी पूरी वयस्क जिन्दगी यहाँ यू.के की संघर्षमय दौड़ती-भागती सभ्यता में स्वेच्छा से सहज गृहिणी जीवन शैली का वरण। मन से पूर्णतः भारतीय और स्वभाव से चिर विद्यार्थी। सत्यम्, शिवम, सुन्दरम की पुजारी। मुख्यतः आत्म उद्वेलन और मंथन को शान्त करने के लिए ही लिखा। पहली कविता आठ वर्ष की उम्र में और पहली कहानी 11 वर्ष की उम्र में। बचपन के छुटपुट लेखन और फिर 1967 से 1997 तक एक लम्बे मौन के बाद 1997 से हिन्दी और अंग्रेजी दोनों में ही निरंतर लेखन। सभी मुख्य पत्रिकाओं में व कई साझे संकलनों में प्रकाशित व देश विदेश के कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंच और विमर्शों में साझेदारी। पिछले आठ साल से नेट पर हिन्दी और अंग्रेजी की मासिक पत्रिका www.lekhni.net का संपादन व प्रकाशन।
- प्रकाशित किताबें-
- समिधा ( काव्यसंग्रह-2003)
- ध्रुवतारा ( कहानी संग्रह-2003)
- लंदन पाती ( निबंध संग्रह-2007)
- कई पाण्डुलीपियाँ सही प्रकाशक की तलाश में
- सम्मान-
- 2006 - भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, साहित्य अकादमी तथा अक्षरम का संयुक्त अलंकरणः काव्य पुष्तक समिधा के लिए लक्ष्मीमल सिंघवी सम्मान। (देहली)
- 2007- उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थानः उत्कृष्ट साहित्य-सृजन व हिन्दी प्रचार-प्रसार सम्मान (विदेश)। (लखनऊ)
- 2010 - यू.के. हिन्दी समितिः हिन्दी सेवा सम्मान (लंदन)
- 2012- प्रवासी मीडिया सम्मान ( अक्षरम देहली)
- ई मेल-shailagrawal@hotmail.com
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