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चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
दीप जले
मन मेरा
भोलेपन से
दिवाली का दीप जलाता
त्योंहारो की डोर बाँध कर
मन ही मन यू
क्यू इठलाता
मोहित क्यों है?
दीप ज्योत से
पतंगा प्रकाश से
खुद को ही
क्यों मिटाता?
पर मेरे मन प्रागंन में
एक दीप जला जाता !
दीप जला कर
भूला मन मेरा
राग, द्वेष,विषाद
वो सब तेरा
प्रेम मन में
सदा रहें
दीपावली का रूप धरे
कष्ट पोटली सुदामा सी
देव भापते बिन कहे
लक्ष्मी बरसे,

हर बेबस लाचारो पर
मेहमान के द्वारो पर
होएँ आनंदित बाल गोपाल
हर चौखट पर दीप जले
सत्कार करूँ में
उस लक्ष्मी को ,
जो बेटी का रूप धरे
सरस्वती ज्ञान फैलाती
ऐसी लक्ष्मी रोज वरे
अन्धकार सब मिट जाये
दीप दिलो में रोज जले
स्नेह दीप जले तो
बुझे न कोई आस
हर घर मे दीपोत्सव हो
यह सोच बनाये रखना
हर चौखट हर आँगन में
बस एक दीप जलाये रखना
अनुष्ठान
आसमां से तम नहा कर
एक मोहता छंद आया
दीप सी आस लेकर
जागता एक स्वपन आया
स्वर्ग की सीढ़ी उतर कर
दीपमालिका का अनुष्ठान आया
खिल गए सब सूरजमुखी हैं
खिल गया आसमान
खिल गयी चहुँ नव दिशाएँ
खिल गए उद्यान
जग गयी डूबती सी आशा
दीप पंक्ति है क्षणिक सी
दो दिवस मेहमान
जाग गयी पग डंडियाँ हैं
जाग गए काजल दिठौने
जाग गए हैं सब संगी साथी
भर गए बाज़ार सारे
आ गयी दीपों की पंक्ति
उगा जैसे रात्रि में दिनमान
हो नया सवेरा..
घुप अन्धेरा क्षितिज पर लेटा
द्वार भोर का नहीं दीखता
सघन कालिमा पसरी जाए
पग डंडी भी नज़र ना आये
राहो को दमकाता दीपक,
राहें नयी दिखाता दीपक
लालच पसरा आतंक फैला
अनाचार ने तांडव खेला,
मनुष्यता है धूमिल हाय
राह कोई भी नज़र ना आये
सही राह दिखाता दीपक,
घर अपने पहुंचता दीपक
रिश्ते जो भी रूठ गए हैं
साथी जो थे छूट गए हैं
मन के कोने लीप लाप कर
बरसो की धूल हटाता दीपक,
हर चौखट और देहेरी पर
फिर से दीप जलाता दीपक
एक हो मेरा एक तुम्हारा,
दीप पंक्ति से मिटे घनेरा
चाँद गगन का दीप सही
दीप धरा की मृतिका ने उकेरा
दीपावली का दीप जले तो
अज्ञान तिरोहित, हो नया सवेरा
विश्वास
जले दीप ज्योति
मन देहरी पर
बाले रखूँ
मन में ,तेरा उजास लिए
तिमिर घटे
चहुं ओर
ऐसा विश्वास
बनायें रखूँ
मन में तेरा प्रकाश लिए
आँधियों से भी
बुझे नही
दीप अनवरत जले

झंझावात में
टपकती बरसात में
छप्पर छवाए रखूं
एक तेरा संबल लिए
टिमटिमाते तारें
हुए तिरोहित
अमावस की इस गहन रात्रि में
धन लक्ष्मी का दीप जले,
मन में प्रभु विश्वास लिए ..
क्षणिकाएं
(एक)
अमावसी रात में
दीप तुम हो दिव्यार्थ
दीप है घर पाहुना
देता नूतन प्रकाश
सुन्दर किसलय संग
अंबुज पर
माँ लक्ष्मी का वास
दीप जले अनवरत
हर ओर हो
माँ लक्ष्मी का वास .
(दो)
दीप पुरुष है
दीप है प्रकृति
मिटटी पानी की देह रची
ज्योति दीप की
प्राण गति
दीप मनु है
बात्ती इरावती
दीप वेदों की है अनुकृति।
(तीन)
दीप पर्व है
दीप है गति
दीप स्वर्ग की है स्वीकृति
अन्धकार में
बन कर्मरत
दीप जलाये रखना
हर चोखट चोराहों पर
उजड गए जो
उन दरियारों पर
एक दीप जलाये रखना
एक आस जगाए रखना
(चार)
आँधियों से भी
बुझे नही

दीप अनवरत
जलता रहे
भीषण झंझावात में
पथ दिखाता रहे
टपकती बरसात में भी
बुझे नहीं कोई आस
द्वार ,छप्पर बंधे रहे
दीप तेरा आलोक फैले
मन में तन में
दीप्त हों दिशाएं अज्ञान छ्टे।
मंजुल भटनागर
0/503, तीसरी मंजिल, Tarapor टावर्स
नई लिंक रोड, ओशिवारा
अंधेरी पश्चिम, मुंबई 53।
फोन -09892601105
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