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चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
रैन बसेरा
नाम रखा है रैन बसेरा,
दो मंजिल का घर है मेरा।
नीचे धरती ऊपर छप्पर,
घर दिखता है कितना सुन्दर।
बैठक खाना रम्य मनोहर,
खिड़की पर परदों की झालर।
सोफा सेट गद्दियों वाला,
बिछी हुई सुन्दर मृग छाला।
कोने में सुन्दर गुलदस्ते,
दरवाजों पर परदे हँसते।
है घर में खुशियों का डेरा,
दो मंजिल का घर है मेरा।
शयन कक्ष भी तीन बने हैं,
परदे बहुत महीन लगे हैं।
बड़े पलंगों पर गादी है,
चादर बिछी स्वस्छ सादी है।
शिवजी की होती हर हर है,
यह दादी का पूजा घर है।
जहाँ रामजी लड्डू खाते,
कृष्ण कन्हैया धूम मचाते।
सबको सबसे प्रेम घनेरा,
दो मंजिल का घर है मेरा।
इस कमरे में दादी दादा,
उच्च विचार काम सब सादा।
सभी दुआएं लेने आते,
दादी दादा झड़ी लगाते।।
बच्चे धूम मचाते दिन भर,
भरा लबालब खुशियों से घर।
दादाजी के लगें ठहाके,
लोट पोट हैं हंसा हंसा के।
कण कण में आनंद बिखेरा,
दो मंजिल का घर है मेरा।
पलकों की चादर
थपकी देकर हाथ थक गए,
लजा लाज कर लोरी हारी।
लजा लाज कर लोरी हारी।
तुम अब तक न सोये लल्ला,
थककर सो गई नींद बिचारी।
थककर सो गई नींद बिचारी।
देखो कब के सो गए भैया।
पर तुम अब तक जाग रहे हो,
किये जा रहे ता ता थैया।
कौशल्या ने अवधपुरी में,
राम लखन को सुला दिया है।
गणपति को माँ पार्वती ने,
निद्रा का सुख दिला दिया है।
हनुमान को अंजनी माँ ने ,
शुभ्र शयन पर अभी लिटाया।
तुरत फुरत सोये बजरंगी,
माँ को बिलकुल नहीं सताया।
सुबह तुझे में लड्डू दूंगी,
बेसन की बर्फी खिलवाऊं।
पर झटपट तू सोजा बेटा,
तू सोये तो मैं सो पाऊं।
अगर नहीं तू अब भी सोया,
तो मैं गुस्सा हो जाउंगी।
और इसी गुस्से में अगले ,
दो दिन खाना न खाऊँगी।
इतना सुनकर लल्ला भैया,
मंद मंद मन में मुस्काये।
धीरे से अपनी आँखों पर,
पलकों की चादर ले आये।
लाइलाज बीमारी
बन्दर मामा शिक्षक बनकर,
शाळा गए पढ़ाने।
भूल पढ़ाना बच्चों से वे,
गप्पें लगे लड़ाने।
तभी अचानक हेडमास्टर ,
भालूजी आ धमके।
बन्दर की ऐसी हरकत पर,
गरज गरज कर चमके।
बंदर ने इक डिब्बा खोला,
शहद वहां बिखराई।
भूल डांटना, व्यस्त हो गए,
उसमें भालू भाई।
यही व्यवस्था शालाओं की,
तब से अब तक जारी।
शहद गिराना, शहद चाटना,
लाइलाज बीमारी।
हथनी दीदी
हथनी दीदी बैठ रेल में,
निकल पड़ीं भोपाल को।
धुम चुक धुम चुक बजा रहीं थीं,
अपने सुन्दर गाल को।
तभी अचानक टिकिट निरीक्षक,

हथनी बोली टिकिट मांगकर,
तुमको शरम नहीं आई।
टिकिट केंद्र है इतना छोटा,
सूंड नहीं घुस पाई थी।
अरे! निरीक्षक जी इस कारण,
टिकिट नहीं ले पाई थी।
पहले तो तुम ,जाकर खिड़की,
खूब बड़ी करवाओ।
उसके बाद निरीक्षक भैया,
टिकिट मांगने आओ।
प्रभुदयाल श्रीवास्तव
- जन्म : 4 अगस्त, 1944 धरमपुरा दमोह {म.प्र.)।
- शिक्षा : वैद्युत यांत्रिकी में पत्रोपाधि।
- संप्रति : सेवानिवृत कार्यपालन यंत्री म.प्र. विद्युत मंडल छिंदवाड़ा से।
- लेखन : विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानियाँ, कवितायें व्यंग्य, लघु कथाएँ लेख, बुंदेली लोकगीत, बुंदेली लघु कथाएँ, बुंदेली गज़लों का लेखन।
- प्रकाशन : लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग-बेरंग में प्रकाशन, दैनिक भास्कर, नवभारत, अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस, पंजाब केसरी एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्यों का प्रकाशन, कविताएँ बालगीतों क्षणिकाओं का भी प्रकाशन हुआ। पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली, शुभ तारिका अंबाला, न्यामती फरीदाबाद, कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन, मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित।
- कृतियाँ : दूसरी लाइन (व्यंग संग्रह), बचपन छलके छल छल छल (बाल गीत), बचपन गीत सुनाता चल (बाल गीत)।
- प्रसारण : आकाशवाणी छिंदवाड़ा से बालगीतों, बुंदेली लघुकथाओं एवं जीवन वृत पर परिचर्चा का प्रसारण।
- सम्मान : राष्ट्रीय राज भाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा "भारती रत्न" एवं "भारती भूषण सम्मान"; श्रीमती सरस्वती सिंह स्मृति सम्मान, वैदिक क्रांति देहरादून एवं हम सब साथ साथ पत्रिका दिल्ली द्वारा "लाइफ एचीवमेंट एवार्ड"; भारतीय राष्ट्र भाषा सम्मेलन झाँसी द्वारा "हिंदी सेवी सम्मान"; शिव संकल्प साहित्य परिषद नर्मदापुरम, होशंगाबाद द्वारा "व्यंग्य वैभव सम्मान"; युग साहित्य मानस गुन्तकुल आंध्रप्रदेश द्वारा काव्य सम्मान।
- संस्था संबद्धता : अध्यक्ष बुंदेलखंड साहित्य परिषद, भोपाल, छिंदवाड़ा जिला इकाई के अध्यक्ष।
- विशेष : बुंदेली लोक गीत, गज़लें, बुंदेली साहित्य पर लेख। वर्ष 2009 में साहित्य अकादमी दिल्ली में आयोजित बुंदेलखंड साहित्य परिषद भोपाल के कार्यक्रम में रवींद्र भवन दिल्ली में बुंदेली की दक्षिणी सीमाएँ विषय पर आलेख का पाठन।
- ईमेल : pdayal_shrivastava@yahoo.com
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शनिवार 31 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचनाएं
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन सभी रचनाएं बहुत आकर्षक।
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