चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
एक सफर दिल से..
माज़ी से मुस्तकिबल तक
एक सफर दिल से दिल तक
रास्तों में यारी कर ले
आ जाएगा मंजि़ल तक
दरिया कितना भूखा है
खा जाता है साहिल तक
दिखता है उसका चेहरा
तनहाई से महफि़ल तक
रंगीनी है दुनिया की
बस आँखों की झिलमिल तक
मुश्किल में आसानी है
आसानी है मुश्किल तक
ऐसा भी कुछ कहो कि..
एहसास में हो ‘मीर’, जबाँ में ‘असद’ रहे
ऐसा भी कुछ कहो कि जहाँ में सनद रहे
सर ही नहीं उठाना तो डरने की बात क्या
चेहरा हो चाहे जैसा भी, कैसा भी क़द रहे
कोई सबब तो हो कि तुम्हें याद रख सकें
दिल टूटने में कुछ तो तुम्हारी मदद रहे
इल्ज़ाम हमसे कोई नकारा नहीं गया
जिस जुर्म में शरीक रहे, नामज़द रहे
ये जि़न्दगी की जंग लडंूगा मैं शान से
लेकिन है शर्त साथ ग़मों की रसद रहे
मुख्तलिफ़ रंग हैं जमाने के..
कुछ दिखाने के, कुछ छुपाने के
मुख्तलिफ़ रंग हैं जमाने के
छीन कर हमसे ले गया कोई
सारे अन्दाज़ मुस्कराने के
जि़न्दग़ी बस उसे कहा जाए
जिसमें मौके़ हों गुनगाने के
क्या सिले देखिए मिले हमको
इन बुतों को खुदा बनाने के
दाने-दाने पे उसका है
लोग मोहताज दाने-दाने के
चोट खाते रहे..
चोट खाते रहे ज़माने से
बाज़ आए न मुस्कुराने से
चार-सू रौशनी महकती है
एक दिल का दिया जलाने से
हमसे मिल जाओ फिर कभी आकर
ज़ख़्म होने लगे पुराने से
ज़िक्र उनका कोई करे हमसे
जिनको देखा नहीं ज़माने से
इश्क करना गुनाह ठहरा तो
हम गुनहगार हैं ज़माने से
कह रही हैं ख़तों की तहरीरें
हम न मिट पाएंगे मिटाने से
धूप के तज्रबे सुनाते हैं
बैठकर लोग शामियाने से
हुस्न की शान में ग़ज़ल कहना
सीखिये ‘मीर’ के घराने से
घर-सा लगने लगा है मयख़ाना
रोज़ आने से, रोज जाने से
ये तमाशा है, सब...
ये तमाशा है, सब लकीरों का
मुन्तजि़र है शिकार तीरों का
गाल अपने बजाओ महफि़ल में
क्या करोगे मियाँ मँजीरों का
जुल्म पर, कैद पर, हु़कूमत पर
कितना एहसान है असीरों का
कंकरी कोहेनूर कर डालें
मर्तबा है बड़ा फ़क़ीरों का
कौडि़यों की जिन्हें तमीज़ नहीं
भाव तय कर रहे हैं हीरों का
उम्दा गजले वाह | बधाई
जवाब देंहटाएं