चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
(एक)
गली मोहब्बतों की जाके ,क्या भला मिला
मिला राह में जो भी वो ही दिलजला मिला
कहा इश्कजादे ले खुशियों की लूट दौलतें
ख़ुशी दूर हमको अश्कों का सिलसिला मिला
जहाँ पूछ ना तू ,करके मुहब्बत क्या मिला ?
खलिश थी नहीं लेकिन ,दिल में कुछ खला मिला
उठा है यकीं दुनिया से ,उसपे यकीन कर
मठा फूंककर पीता लोगों ,दूधों से जला मिला
तड़प दीद के उसकी ,है ख्वाईश आखिरी
झलक बेवफा की करने दर ये खुला मिला
(दो)
डुबायें क्यूँ न ,खुद को हम ,शराब में
मिली नफरत ,हमें इश्के-जवाव में
पढ़ी थीं मोहब्बतें आयतें समझ
मिलेगा लफ्ज ना अब ये किताब में
परखने से जियादा हम निरखा किये
कमी कुछ रह गयी शायद हिसाब में
भरा गोदाम खाली आज कर दिया
बिकी जागीर दिल की कोड़ी भाव में
न महकेगा कभी ये गुले दोस्त सुन
लगा कीड़ा कि अब खिलते गुलाब में
(तीन)
बारिशों में गमों को डुबाकर चले
अश्क हम इस जहाँ से छुपाकर चले
है डरे रूसबाई मगर क्या करें
दिल गली यार की हम बताकर चले
पूछते हो लहू रिस रहा क्यूँ भला
तीर दिल में मिरे वो चुभाकर चले
सीं लिए होंठ आया जिक्र जब तिरा
नाम तेरा लवों पे दबाकर चले
इश्क अरमान ईमान सब दे दिया
पास था दिल उसे भी लुटाकर चले
सर उठा चल रहे थे जहां में कभी
शोहरत ख़ाक में अब मिलाकर चले
(चार)
गले की प्यास होंठों से छुपानी आ गई
हमें यूँ धूल बातों पर उडानी आ गई
भुला डाला जिसे कबका कभी सोचा न था
हमें फिर याद भूली वो कहानी आ गई
कि उछली मौज जज्बों की गया दरिया सहम
गया था जम लहू रग में रवानी आ गई
किया उर्दू उसे खुद रोशनाई बन गए
कि गजलों में मिरी जबसे जवानी आ गई
गया सीने मिरे कुछ आज शीशे सा दरक
उभर के चोट ज्यादा यूँ पुरानी आ गई
(पांच)
झाड़ियाँ नफरत की ,बोते हैं बो जाने दो
डूबना गर किस्मत है तो ये भी हो जाने दो
जान भी ले ले देते हैं ये हक भी तुमको
दिल अगर रोता भी है तो क्या ,रो जाने दो
जिन्दगी ने दुत्कारा हमको बेदर्दी से
मौत की बाहों में खोना है खो जाने दो
धडकनें वो सब चलती हैं जो देख तुझको
खींच ले सीने से उन्हें ,मुझको जाने दे
मैं बयां करती भी हूँ तो क्या हासिल होगा
गम मिरा चीखें सन्नाटों की हो जाने दे
(छह)
दुश्मनों से कहाँ डर मुझे है
इल्म इंसान का गर मुझे है
क्यूँ जरूरत तुझे हो हमारी
चाह तेरी सनम पर मुझे है
दर्द कैसे तुझे दूँ भला मैं
है तुझे गम असर कर मुझे है
क्या हुनर वो करे बेवफाई
बेखबर सब खबर पर मुझे है
इल्तजा ये करूँ आखिरी अब
बेवफा कर न दर दर मुझे है
(सात)
फेरकर मुंह तू जो खड़ी है
बेखबर सुन ग़ज़ल आखिरी है
लुट गए जो नज़ारे नज़र थे
दिल तुझे मगर अपनी पड़ी है
उस खता की मिल रही सजायें
जो कि मैंने करी ही नहीं है
घूमते सब लगाकर मुखौटे
भेड़ीया नस्ल पर आदमी है
यूँ करम रव तिरे हैं बहुत से
जिन्दगी उस बिना बेबसी है
दिल मिरे जगह तेरी वही है
बेवफा तू जुबाँ से फिरी हैं
है बड़ी कशमकश दिल करूँ क्या
कल तलक थी ख़ुशी अब गमी है
फासले दरमियाँ कम न होते
दूर जैसे फ़लक से जमीं है
गोद मे में मरुँ बस तिरी ही
ये तमन्ना मिरी आखिरी है
सपना मांगलिक
- जन्म: 17 फरवरी-1981 भरतपुर (राजस्थान)।
- शिक्षा: एम.ए.; बी.एड.; एक्सपोर्ट मैनेजमेंट डिप्लोमा।
- प्रकाशन : पापा कब आओगे, नौकी बहू (कहानी संग्रह), सफलता रास्तों से मंज़िल तक, ढाई आखर प्रेम का (प्रेरक गद्द्य संग्रह), कमसिन बाला, कल क्या होगा, बगावत (काव्य संग्रह), जज़्बा-ए-दिल भाग -प्रथम, द्वितीय, तृतीय (ग़ज़ल संग्रह), टिमटिम तारे, गुनगुनाते अक्षर, होटल जंगल ट्रीट (बाल साहित्य)
- प्रसारण : आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर निरंतर रचनाओं का प्रसारण
- संपादन : तुम को ना भूल पायेंगे (संस्मरण संग्रह) स्वर्ण जयंती स्मारिका (समानांतर साहित्य संस्थान)
- संस्थापक : जीवन सारांश समाज सेवा समिति, बज़्म-ए-सारांश (उर्दू हिंदी साहित्य समिति)
- सदस्य : ऑथर गिल्ड ऑफ़ इंडिया, अखिल भारतीय गंगा समिति जलगांव, महानगर लेखिका समिति आगरा, साहित्य साधिका समिति आगरा, सामानांतर साहित्य समिति आगरा, आगमन साहित्य परिषद हापुड़, इंटेलिजेंस मिडिया एसोशिसन, दिल्ली
- सम्मान : विभिन्न राजकीय एवं प्रादेशिक मंचों से सम्मानित
- रचना कर्म : विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित।
- सम्पर्क : एफ-659, कमला नगर, आगरा-282005
- फोन-9548509508
- ईमेल –sapna8manglik@gmail.com
आभार मयंक जी उत्साहवर्धन के लिए..!
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