चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
चलो मिल सूरज उगायें..
चलो मिल सूरज उगायें
सघनतम तिमिर हो जब
उज्ज्वलतम कल हो तब
जब निराश अंतर्मन-
नव आशा फल हो तब
विघ्न-बाधा मिल भगायें
चलो मिल सूरज उगायें
पत्थर का वक्ष फोड़
भूतल को दें झिंझोड़
अमिय धार प्रवहित हो
कालकूट जाल तोड़
मरकर भी जी जाएँ
चलो मिल सूरज उगायें
अपनापन अपनों का
धंधा हो सपनों का
बंधन मत तोड़ 'सलिल'
अपने ही नपनों का
भूसुर-भुसुत बनायें
चलो मिल सूरज उगायें
तुमको देखा तो..
तुमको देखा
तो मरुथल मन
हरा हो गया।
चंचल चितवन मृगया करती
मीठी वाणी थकन मिटाती।
रूप माधुरी मन ललचाकर -
संतों से वैराग छुड़ाती।
खोटा सिक्का
दरस-परस पा
खरा हो गया।
तुमको देखा
तो मरुथल मन
हरा हो गया।
उषा गाल पर, माथे सूरज
अधर कमल-दल, रद मणि-मुक्ता।
चिबुक चंदनी, व्याल केश-लट
शारद-रमा-उमा संयुक्ता।
ध्यान किया तो
रीता मन-घट
भरा हो गया।
तुमको देखा
तो मरुथल मन
हरा हो गया।
सदा सुहागन, तुलसी चौरा
बिना तुम्हारे आँगन सूना।
तुम जितना हो मुझे सुमिरतीं
तुम्हें सुमिरता है मन दूना।
साथ तुम्हारे गगन
हुआ मन, दूर हुईं तो
धरा हो गया।
तुमको देखा
तो मरुथल मन
हरा हो गया।
सच हर झूठ..
सच हर झूठ
झूठ हर सच है
तू-तू, मैं-मैं कर हम हारे
हम न मगर हो सके बेचारे
तारणहार कह रहे उनको
मत दे जिनके भाग्य सँवारे
ठगित देवयानी
भ्रम कच है
सच हर झूठ
झूठ हर सच है
काश आँख से चश्मा उतरे
रट्टू तोता यादें बिसरे
खुली आँख देखे क्या-कैसा?
छोड़ झुनझुना रोटी कस रे!
राग न त्याज्य
विराग न शुभ है
सच हर झूठ
झूठ हर सच है
'खुला' न खुला बंद है तब तक
तीन तलाक मिल रहे जब तक
एसिड डालो तो प्रचार हो
दूध मिले नागों को कब तक?
पत्थरबाज
न अपना कुछ है
सच हर झूठ
झूठ हर सच है
मुस्कानें विष बुझी..
मुस्कानें विष बुझी
निगाहें पैनी तीर हुईं
कौए मन्दिर में बैठे हैं
गीध सिंहासन पा ऐंठे हैं
मन्त्र पढ़ रहे गर्दभगण मिल
करतल ध्वनि करते जेठे हैं.
पुस्तक लिख-छपते उलूक नित
चीलें पीर भईं
मुस्कानें विष बुझी
निगाहें पैनी तीर हुईं
चूहे खलिहानों के रक्षक
हैं सियार शेरों के भक्षक
दूध पिलाकर पाल रहे हैं
अगिन नेवले वासुकि तक्षक
आश्वासन हैं खंबे
वादों की शहतीर नईं
न्याय तौलते हैं परजीवी
रट्टू तोते हुए मनीषी
कामशास्त्र पढ़ रहीं साध्वियाँ
सुन प्रवचन वैताल पचीसी
धुल धूसरित संयम
भोगों की प्राचीर मुईं
ध्वस्त हुए विश्वास किले..
ध्वस्त हुए विश्वास किले
जूही-चमेली
बगिया तजकर
वन-वन भटकें
गोदी खेली
कलियाँ ही
फूलों को खटकें
भँवरे करते मौज
समय के अधर सिले
ध्वस्त हुए विश्वास किले
चटक-मटक पर
ठहरें नज़रें
फिर फिर अटकें
श्रम के दर की
चढ़ें न सीढ़ी
युव मन ठिठकें
शाखों से क्यों
वल्लरियों के वदन छिले
ध्वस्त हुए विश्वास किले
संजीव वर्मा 'सलिल'
204, विजय अपार्टमेंट,
नेपियर टाउन, जबलपुर-482001
मोबाइल: 9425183244
ई-मेल: salil.sanjiv@gmail.com
संजीव वर्मा 'सलिल'
- जन्म: २०-८-१९५२, मंडला मध्य प्रदेश।
- माता-पिता: स्व. शांति देवी - स्व. राज बहादुर वर्मा।
- प्रेरणास्रोत: बुआश्री महीयसी महादेवी वर्मा।
- शिक्षा: त्रिवर्षीय डिप्लोमा सिविल अभियांत्रिकी, बी.ई., एम. आई. ई., विशारद, एम. ए. (अर्थशास्त्र, दर्शनशास्त्र), एलएल. बी., डिप्लोमा पत्रकारिता, डी. सी. ए.।
- प्रकाशित कृतियाँ: १. कलम के देव (भक्ति गीत संग्रह १९९७), २. भूकंप के साथ जीना सीखें (जनोपयोगी तकनीकी १९९७), ३. लोकतंत्र का मक़बरा (कविताएँ २००१) विमोचन शायरे अजं कृष्ण बिहारी 'नूर', ४. मीत मेरे (कविताएँ २००२) विमोचन आचार्य विष्णुकांत शास्त्री तत्कालीन राज्यपाल उत्तर प्रदेश, ५. काल है संक्रांति का नवगीत संग्रह २०१६ विमोचन ज़ाहिर कुरैशी-योगराज प्रभाकर, ६. कुरुक्षेत्र गाथा प्रबंध काव्य २०१६ विमोचन रामकृष्ण कुसुमारिया मंत्री म. प्र. शासन।
- संपादन: (क) कृतियाँ: १. निर्माण के नूपुर (अभियंता कवियों का संकलन १९८३),२. नींव के पत्थर (अभियंता कवियों का संकलन १९८५), ३. राम नाम सुखदाई १९९९ तथा २००९, ४. तिनका-तिनका नीड़ २०००, ५. सौरभः (संस्कृत श्लोकों का दोहानुवाद) २००३, ६. ऑफ़ एंड ओन (अंग्रेजी ग़ज़ल संग्रह) २००१, ७. यदा-कदा (ऑफ़ एंड ओं का हिंदी काव्यानुवाद) २००४, ८. द्वार खड़े इतिहास के २००६, ९. समयजयी साहित्यशिल्पी प्रो. भागवतप्रसाद मिश्र 'नियाज़' (विवेचना) २००६, १०-११. काव्य मंदाकिनी २००८ व २०१०। (ख) स्मारिकाएँ: १. शिल्पांजलि १९८३, २. लेखनी १९८४, ३. इंजीनियर्स टाइम्स १९८४, ४. शिल्पा १९८६, ५. लेखनी-२ १९८९, ६. संकल्प १९९४,७. दिव्याशीष १९९६, ८. शाकाहार की खोज १९९९, ९. वास्तुदीप २००२ (विमोचन स्व. कुप. सी. सुदर्शन सरसंघ चालक तथा भाई महावीर राज्यपाल मध्य प्रदेश), १०. इंडियन जिओलॉजिकल सोसाइटी सम्मेलन २००४, ११. दूरभाषिका लोक निर्माण विभाग २००६, (विमोचन श्री नागेन्द्र सिंह तत्कालीन मंत्री लोक निर्माण विभाग म. प्र.) १२. निर्माण दूरभाषिका २००७, १३. विनायक दर्शन २००७, १४. मार्ग (IGS) २००९, १५. भवनांजलि (२०१३), १६. अभियंता बंधु (IEI) २०१३। (ग) पत्रिकाएँ: १. चित्राशीष १९८० से १९९४, २. एम.पी. सबॉर्डिनेट इंजीनियर्स मंथली जर्नल १९८२ - १९८७, ३. यांत्रिकी समय १९८९-१९९०, ४. इंजीनियर्स टाइम्स १९९६-१९९८, ५. एफोड मंथली जर्नल १९८८-९०, ६. नर्मदा साहित्यिक पत्रिका २००२-२००४। (घ). भूमिका लेखन: ३६ पुस्तकें। (च). तकनीकी लेख: १५।
- रचनायें प्रकाशित: मुक्तक मंजरी (४० मुक्तक), कन्टेम्परेरी हिंदी पोएट्री (८ रचनाएँ परिचय), ७५ गद्य-पद्य संकलन, लगभग ४०० पत्रिकाएँ। मेकलसुता पत्रिका में २ वर्ष तक लेखमाला 'दोहा गाथा सनातन' प्रकाशित, पत्रिका शिकार वार्ता में भूकंप पर आमुख कथा।
- परिचय प्रकाशित ७ कोश।
- अंतरजाल पर- १९९८ से सक्रिय, हिन्द युग्म पर छंद-शिक्षण २ वर्ष तक, साहित्य शिल्पी पर 'काव्य का रचनाशास्त्र' ८० अलंकारों पर लेखमाला, छंदों पर लेखमाला जारी ८० छंद हो चुके हैं।
- सम्मान- १० राज्यों (मध्यप्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, हरयाणा, दिल्ली, गुजरात, छत्तीसगढ़, असम, बंगाल) की विविध संस्थाओं द्वारा शताधिक सम्मान तथा अलंकरण। प्रमुख सरस्वती रत्न, संपादक रत्न, विज्ञान रत्न, २० वीं शताब्दी रत्न, आचार्य, वाग्विदाम्बर, साहित्य वारिधि, साहित्य शिरोमणि, वास्तु गौरव, मानस हंस, साहित्य गौरव, साहित्य श्री(३), काव्य श्री, भाषा भूषण, कायस्थ कीर्तिध्वज, चित्रांश गौरव, कायस्थ भूषण, हरि ठाकुर स्मृति सम्मान, सारस्वत साहित्य सम्मान, कविगुरु रवीन्द्रनाथ सारस्वत सम्मान, युगपुरुष विवेकानंद पत्रकार रत्न सम्मान, साहित्य शिरोमणि सारस्वत सम्मान, भारत गौरव सारस्वत सम्मान, कामता प्रसाद गुरु वर्तिका अलंकरण, उत्कृष्टता प्रमाणपत्र, सर्टिफिकेट ऑफ़ मेरिट आदि।
- संप्रति: पूर्व कार्यपालन यंत्री लोक निर्माण विभाग म. प्र., अधिवक्ता म. प्र. उच्च न्यायालय, अध्यक्ष अभियान जबलपुर, पूर्व वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष / महामंत्री राष्ट्रीय कायस्थ महापरिषद, पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अखिल भारतीय कायस्थ महासभा, संरक्षक राजकुमारी बाई बाल निकेतन, संयोजक विश्ववाणी हिंदी परिषद, संयोजक समन्वय संस्था प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय भोपाल।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (29-06-2017) को
जवाब देंहटाएं"अनंत का अंत" (चर्चा अंक-2651)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
हार्दिक आभार मयंक जी..
जवाब देंहटाएंसुबोध जी, इतने सामयिक व काव्य-रस से सिक्त गीत प्रस्तुति के लिए सुबोध-सृजन पत्रिका और विशेषकर सलिल जी को वधाई !
जवाब देंहटाएं