जब वनों में गुनगुनातीं..
पेड़ चम्पा की लुभातीं, डालियाँ फूलों भरी।
शुष्क भू पर, ये कतारों, में खड़े दरबान से,
दृष्ट होते सिर धरे ज्यों, टोपियाँ फूलों भरी।
पीत स्वर्णिम पुष्प खिलते, सब्ज़ रंगी पात सँग,
मन चमन को मोह लेतीं, झलकियाँ फूलों भरी।
बाल बच्चों को सुहाता, नाम चम्पक-वन बहुत,
जब कथाएँ कह सुनातीं, नानियाँ फूलों भरी।
मुग्ध कवियों ने युगों से, जान महिमा पेड़ की,
काव्य ग्रन्थों में रचाईं, पंक्तियाँ फूलों भरी।
पेड़ का हर अंग करता, मुफ्त रोगों का निदान,
याद आती हैं पुरातन, सूक्तियाँ फूलों भरी।
सूख जाते पुष्प लेकिन, फैलकर इनकी सुगंध,
घूम आती विश्व में, भर झोलियाँ फूलों भरी।
मित्र ये पर्यावरण के, लहलहाते साल भर,
कटु हवाओं को सिखाते, बोलियाँ फूलों भरी।
यह धरोहर देश की, खोने न पाए साथियों,
युग युगों फलती रहें, नव पीढ़ियाँ फूलों भरी।
गगन में छाए हैं बादल..
उड़ी सुगंध फिज़ाओं में चल के देखते हैं।
सुदूर गोद में वादी की, गुल परी उतरी,
प्रियम! हो साथ तुम्हारा, तो चल के देखते हैं।
उतर के आई है आँगन, बरात बूँदों की,
बुला रहा है लड़कपन, मचल के देखते हैं।
अगन ये प्यार की कैसी, कोई बताए ज़रा,
मिला है क्या, जो पतंगे यूँ जल के देखते हैं।
नज़र में जिन को बसाया था मानकर अपना,
फरेबी आज वे नज़रें, बदल के देखते हैं।
चले तो आए हैं, महफिल में शायरों की सखी,
“अभी कुछ और करिश्में, ग़ज़ल के देखते हैं।
विगत को भूल ही जाएँ, तो ‘कल्पना’ अच्छा,
सुखी वही जो सहारे, नवल के देखते हैं।
बदलती ऋतु की रागिनी..
उड़ी सुगंध बाग में, बुला रही फुहार है।
कहीं घटा घनी-घनी, कहीं पे धूप है खिली,
लुका-छुपी के खेल से, रिझा रही फुहार है।
अमा है चाँद रात भी, है साँवली प्रभात भी,
अनूप रूप सृष्टि का, दिखा रही फुहार है।
वनों में पेड़-पेड़ पर, पखेरुओं को छेड़कर,
कि मंद छंद कान में, सुना रही फुहार है।
चमन के पात-पात पर, कली-कली के गात पर,
बिसात बूँद-बूँद से, बिछा रही फुहार है।
पहाड़ पर कछार में, नदी-नदीश धार में,
जहाँ-तहाँ बहार में, नहा रही फुहार है।
सहर्ष होगी बोवनी, भरेगी गोद भूमि की,
किसान संग-संग हल, चला रही फुहार है।
मयूर नृत्य में मगन, कुहुक रही है कोकिला,
सुरों में सुर मिलाके गीत, गा रही फुहार है।
झुला रही है शाख पे, सहेलियों को झूलना,
घरों में पर्व प्यार से, मना रही फुहार है।
देखकर सपने..
लुट रही जनता, दलालों से भरे बाज़ार में।
चील बन महँगाई ले जाती झपट्टा मारकर,
जो कमाते लोग, चीलों से भरे बाज़ार में।
लॉटरी, सट्टा, जुआ, शेयर सभी परवान पर,
बढ़ रही लालच, भुलावों से भरे बाज़ार में।
खल, कुटिल, काले मुखौटों पर सफेदी देखकर,
जन ठगे जाते, नकाबों से भरे बाज़ार में।
जोंक बन चिपके हुए हैं तख्त से रक्षक सभी,
दे सुरक्षा कौन, जोंकों से भरे बाज़ार में।
हारते सर्वस्व फिर भी नित्य लगती बोलियाँ,
दाँव है जीवन, बिसातों से भरे बाज़ार में।
रिश्तों में सबसे प्यारी..
मजबूत रिश्ते सारे करती है दोस्ती।
जीवन को अर्थ देती, बिन स्वार्थ के सदा,
बेदाम प्रेम का दम, भरती है दोस्ती।
जब घेरता अँधेरा, चहुँ ओर से हमें,
बुझते हृदय को रोशन करती है दोस्ती।
कितने हों झूठ जग में, यह सत्य है अहम,
हर उम्र का सहारा, बनती है दोस्ती।
यदि मित्र साथ हों तो, हर गम अजीज है,
हर हाल में हरिक गम, हरती है दोस्ती।
मासूम मन चमन का, यह फूल जानिए,
पाकर के स्पर्श स्नेहिल, खिलती है दोस्ती।
सदमित्र बनके मित्रों, पर नाज़ कीजिये
किस्मत से ज़िंदगी में, मिलती है दोस्ती।
मेरी रचनाएँ प्रकाशित करने के लिए आपका हार्दिक आभार आ॰ सुबोध जी
जवाब देंहटाएं'सुबोध सृजन' पर आपका स्वागत है सदैव..
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