चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
मिट्टी और माँ
घर के आँगन में
गाय है और उसका बछड़ा
बच्चे गाँव के तालाब से
काली मिट्टी ले आये हैं
खिलौने बना रहे हैं है....
मिट्टी की को देखते ही में अंदर
सालों से निस्तेज हुई गज़ब की चेतना
सतेज होती हैं ...
शायद मेरा पुनर्जन्म देख रहा हूँ मैं
उन्हीं बच्चों में
अपने गाँव के कुम्हार के घर हर शाम को
उसके ही बेटे के साथ मिलकर खेलना
उनके गरीब माता-पिता की थकान की
रेखाओं को आनंद में परिवर्तित करते हुए
उनके ही बेटे के साथ उस काली मिट्टी में
पानी डालकर अपने पैरों से गोंदना ...
आज बड़ों से सुनता हूँ, खुद सोचता हूँ
मिट्टी और इंसान की फिलसूफी को
क्या फर्क हैं दोनों में....?
शरीर की ईस मिट्टी में क्या हैं?
देह तो नश्वर है, गंदकी से भरा
हाड, मांस और चरम का पिटारा
जिसे खोलते ही दुर्गंध....
तो फिर-
इस शरीर से इतना मोह क्यूं?
सुंदरता और भोग का आनंद क्यूं?
शरीर हैं तो सबकुछ हैं
शरीर सुगंध, अस्तित्त्व और पहचान है
शरीर से मन है, विचार, व्यवहार और जीवन का आनंद
शरीर भोग है तो आध्यात्म भी हैं
तो शरीर अपवित्र क्यूं हैं?.....
मिट्टी पवित्र है
मिट्टी पार्थेश्वर है, अंतिम विराम है
मिट्टी से आत्मिक लगाव है
और मिट्टी हमारी माँ हैं !
और
माँ से पवित्र ब्रह्माण्ड में कोई नहीं है !!
मैं देखना चाहता हूँ..
देखना चाहता हूँ तुम्हारी उन आँखों को
जो तरसती थी मुझे देखने के लिए
और फैलती रहती थी दूर दूर तक से आती हुई
पगदंडी पर...
मैं
देखना चाहता हूँ तुम्हारे कानों को
जो उस पगदंडी से आते हुए मेरे कदमों की
आहट सुनकर खड़े हो जाते थे..........
मैं
देखना चाहता हूँ तुम्हारे उन हाथों को, जिस पर
चूडियाँ आपस में टकराकर भी खनकती हुई
छेड़ती हो प्यार के मधुर संगीत को...
जिस पर हम दोनों कभी गाते थे प्यार के तराने......
मैं
देखना चाहता हूँ तुम्हारे मन को
जो हमेशा सोचता रहता था मेरी खुशियों के लिए
आसपास के लोगों के लिए, दुखियों के लिए
मैं
देखना चाहता हूँ तुम्हारे उस धड़कते हुए ह्रदय को
जो हरपल खुद को छोड़कर भी धड़कता था मेरे लिए
परिवार और बच्चों के लिए.....
मैं
देखना चाहता हूँ उन साँसों को
जो दौड़ी आती हैं अंदर-बाहर
जैसे तुम दौड़ी आती थी मेरे घर आने के
इन्तजार में बावरी होकर.....
मैं
देखना चाहता हूँ तुम्हारे पैरों को
जो उम्र को भी थकाते हुए दौड़ते रहते थे
मेरी हर आवाज़ पर.......
मैं
तुम्हें देखना चाहता हूँ तुम्हें
जिसने कुछ न कहकर भी सबकुछ किया था
खुद के सपनों को दफ़न करते हुए समर्पित करती थी
अपने अरमानों को.......
मैं
तुम्हें देखना चाहता हूँ
ईसी घर में, खानाती चूड़ियों और पायल के साथ
उस मन की सोच और धड़कते दिल के साथ
उन खड़े कानों और फ़ैली हुई आँखों के साथ.....
क्योंकि-
मैं जनता हूँ, तुम अब भी चाहती हो मुझे
मेरी प्रत्येक मर्दाना हरकतों की मर्यादाओं के साथ
मगर मैं कुछ नहीं कर सकता दूर से तुम्हें चाहकर भी
मर्द हूँ मैं, तुम औरत...
इतना जरूर कहूंगा कि-
मैं तुम्हें अब भी बहुत चाहता हूँ ....!
कैसे छूट पाओगे तुम..?
रिश्ते कभी ख़त्म नहीं होते हैं
रिश्तों के नाम बदल सकते हैंछल का नकाब उतर जाता है कभी
तो जीने का मज़ा ही ओर होता है
अपनी भावनाओं से कटुता नहीं होती
मन की बेरुखी से कड़वाहट होती है
दिल तो आखिर दिल है, जो सोचता नहीं
वो खिलता हैं फूलों सा, बहता हैं झरनों सा
कुछ पल होते हैं
अपने नीजीत्व से संवाद करने के
पता नहीं क्यूं बेहाल हो जाते हैं हम !
दायरा बढ़ता है वक्त का, संबंधों का
बात सिर्फ इतनी हैं...
आओ प्यार करें, संवाद करें
कहने को तो बहौत कुछ है मगर
हर पल ऐसे बीत जाता है,
तुम कौन, मैं कौन..?
कैसे काटोगे तुम रिश्ते की जड़ को
जितनी काटोगे, दुगनी चुभेगी तुम्हें
बेचैन दिल धकन से उठती सिसकियाँ
कौन सुनता है भला... !
यह रिश्ता है अजर-अमर, अनमोल
कैसे छूट पाओगे तुम ?
पंकज त्रिवेदी
संपादक - विश्वगाथा (त्रैमासिक हिन्दी साहित्यिक-शैक्षिक पत्रिका)
vishwagatha@gmail.com(M) 09662514007
- जन्म- 11 मार्च 1963
- पत्रकारिता- बी.ए. (हिन्दी साहित्य), बी.एड. और एडवांस प्रोग्राम इन जर्नलिज्म एंड मॉस कम्यूनिकेशन (हिन्दी) –भोपाल से
- साहित्य क्षेत्र-
- संपादक : विश्वगाथा (त्रैमासिक मुद्रित पत्रिका)
- लेखन- कविता, कहानी, लघुकथा, निबंध, रेखाचित्र, उपन्यास ।
- पत्रकारिता- राजस्थान पत्रिका ।
- अभिरुचि- पठन, फोटोग्राफी, प्रवास, साहित्यिक-शिक्षा और सामाजिक कार्य ।
- प्रकाशित पुस्तकों की सूचि -
- 1982- संप्राप्तकथा (लघुकथा-संपादन)-गुजराती
- 1996- भीष्म साहनी की श्रेष्ठ कहानियाँ- का- हिंदी से गुजराती अनुवाद
- 1998- अगनपथ (लघुउपन्यास)-हिंदी
- 1998- आगिया (जुगनू) (रेखाचित्र संग्रह)-गुजराती
- 2002- दस्तख़त (सूक्तियाँ)-गुजराती
- 2004- माछलीघरमां मानवी (कहानी संग्रह)-गुजराती
- 2005- झाकळना बूँद (ओस के बूँद) (लघुकथा संपादन)-गुजराती
- 2007- अगनपथ (हिंदी लघुउपन्यास) हिंदी से गुजराती अनुवाद
- 2007- सामीप्य (स्वातंत्र्य सेना के लिए आज़ादी की लड़ाई में सूचना देनेवाली उषा मेहता, अमेरिकन साहित्यकार नोर्मन मेईलर और हिन्दी साहित्यकार भीष्म साहनी की मुलाक़ातों पर आधारित संग्रह) तथा मर्मवेध (निबंध संग्रह) - आदि रचनाएँ गुजराती में।
- 2008- मर्मवेध (निबंध संग्रह)-गुजराती
- 2010- झरोखा (निबंध संग्रह)-हिन्दी
- 2014- हाँ ! तुम जरूर आओगी (कविता संग्रह)
- प्रसारण- आकाशावाणी में 1982 से निरंतर कहानियों का प्रसारण ।
- दस्तावेजी फिल्म : 1994 गुजराती के जानेमाने कविश्री मीनपियासी के जीवन-कवन पर फ़िल्माई गई दस्तावेज़ी फ़िल्म का लेखन।
- निर्माण- दूरदर्शन केंद्र- राजकोट
- प्रसारण- राजकोट, अहमदाबाद और दिल्ली दूरदर्शन से कई बार प्रसारण।
- स्तम्भ - लेखन- टाइम्स ऑफ इंडिया (गुजराती), जयहिंद, जनसत्ता, गुजरात टुडे, गुजरातमित्र,
- फूलछाब (दैनिक)- राजकोटः मर्मवेध (चिंतनात्मक निबंध), गुजरातमित्र (दैनिक)-सूरतः गुजरातमित्र (माछलीघर -कहानियाँ)
- सम्मान –
- (१) हिन्दी निबंध संग्रह – झरोखा को हिन्दी साहित्य अकादमी के द्वारा 2010 का पुरस्कार
- (२) सहस्राब्दी विश्व हिंदी सम्मेलन में तत्कालीन विज्ञान-टेक्नोलॉजी मंत्री श्री बच्ची सिंह राऊत के द्वारा सम्मान।
- सलाहकार- बाल श्रम उन्मूलन समिति, जिला-सुरेन्द्रनगर,गुजरात
- संपर्क- "ॐ", गोकुलपार्क सोसायटी,80 फ़ीट रोड, सुरेन्द्र नगर, गुजरात-363002
- मोबाईल: 096625-14007
- ई-मेल:vishwagatha@gmail.com
" मिटटी और माँ " को लेकर कवि की संवेदनशीलता कविता में उभर आई है I दोनों ही शब्द हर एक व्यक्ति के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण होते हैं I मैं देखना चाहता हूँ " कविता में कवि ने अपने मनोभावों को खूबसूरती से दर्शाया है I अपना ह्रदय खोल के दिखाया है I रिश्ते जन से होते हैं ....रिश्ते मन से होते हैं ...मन के रिश्ते शाश्वत होते हैं I सुंदर भाव , सुंदर सोच , सुंदर अभिव्यक्ति ...I पंकज त्रिवेदी जी को बधाई I
जवाब देंहटाएंसम्माननीय मंजुला जी,
हटाएंआपकी अमूल्य टिप्पणी से मुझे बहुत खुशी है.. मैं ह्रदय से आपका आभारी हूँ
- पंकज त्रिवेदी