चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
ज़िन्दा रहे तो हमको..
सूली पे चढ़ गये तो पयम्बर कहा गया
ऐसा हमारे दौर में अक्सर कहा गया
पत्थर को मोम, मोम को पत्थर कहा गया
खुद अपनी पीठ ठोंक ली कुछ मिल गया अगर
जब कुछ नहीं मिला तो मुक़द्दर कहा गया
वैसे तो ये भी आम मकानों की तरह था
तुम साथ हो लिये तो इसे घर कहा गया
जिस रोज़ तेरी आँख ज़रा डबडबा गयी
क़तरे को उसी दिन से समन्दर कहा गया
जो रात छोड़ दिन में भी करता है रहज़नी
ऐसे सफेद पोश को रहबर कहा गया
तेरा आँचल जो..
तेरा आँचल जो ढल गया होता
रुख़ हवा का बदल गया होता
देख लेता जो तेरी एक झलक
चाँद का दम निकल गया होता
छू न पायी तेरा बदन वरना
धूप का हाथ जल गया होता
झील पर ख़ुद ही आ गए वरना
तुझको लेने कमल गया होता
मैं जो पीता शराब आँखों से
गिरते-गिरते सँभल गया होता
माँगते क्यूँ वो आईना मुझसे
मैं जो लेकर ग़ज़ल गया होता
हम कहाँ आ गये..
हम कहाँ आ गये आशियाँ छोड़कर
खिलखिलाती हुई बस्तियां छोड़कर
उम्र की एक मंजिल में हम रुक गये
बचपना बढ़ गया उँगलियाँ छोड़कर
नाख़ुदा ख़ुद ही आपस में लड़ने लगे
लोग जायें कहाँ कश्तियाँ छोड़कर
आज अख़बार में फिर पढ़ोगे वही
कल जो सूरज गया सुर्ख़ियाँ छोड़कर
लाख रोका गया पर चला ही गया
वक़्त यादों की परछाईयाँ छोड़कर
बह रही है जहाँ पर नदी..
बह रही है जहाँ पर नदी आजकल
जाने क्यूँ है वहीं तश्नगी आजकल
अपने काँधे पे अपनी सलीबे लिये
फिर रहा है हर एक आदमी आजकल
बोझ काँधों पे है, ख़ार राहों में हैं
आदमी की ये है ज़िन्दगी आजकल
पाँव दिन में जलें, रात में दिल जले
घूप से तेज़ है चाँदनी आजकल
एक तुम ही नहीं हो मेरे पास बस
और कोई नहीं है कमी आजकल
अपना चेहरा दिखाये किसे ‘क़म्बरी’
आईना भी लगे अजनबी आजकल
कोई खिलता गुलाब क्या जाने..
कोई खिलता गुलाब क्या जाने
आ गया कब शबाब क्या जाने
गर्मिये-हुस्न की लताफ़त को
तेरे रुख़ का नक़ाब क्या जाने
इस क़दर मैं नशे में डूबा हूँ
जामो-मीना शराब क्या जाने
लोग जीते हैं कैसे बस्ती में
इस शहर का नवाब क्या जाने
ए.सी. कमरों में बैठने वाले
गर्मिए-आफ़ताब क्या जाने
नींद में ख़्वाब देखने वाले
जागी आँखों के ख़्वाब क्या जाने
जिसको अल्लाह पर यकीन नहीं
वो सवाबो-अज़ाब क्या जाने
अंसार क़म्बरी
-‘ज़फ़र मंजिल’ ११/११६,
ग्वालटोली, कानपूर–२०८००१मो - ९४५०९३८६२९
संक्षिप्त परिचय
- नाम : अंसार क़म्बरी
- पिता का नाम : स्व. ज़व्वार हुसैन रिज़वी
- जन्म : ०३ – ११ – १९५०
- लेखन : ग़ज़ल, गीत, दोहा, मुक्तक, नौहा, सलाम, यदा-कदा आलेख एवं पुस्तक समीक्षा आदि
- प्रकाशित कृति : ‘अंतस का संगीत’ (दोहा व गीत काव्य संग्रह) नवचेतन प्रकाशन,
- दिल्ली वर्ष – २०११
- सम्मान : उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ व्दारा १९९६ के सौहार्द पुरस्कार एवं
- समय-समय पर नगर व देश की अनेकानेक साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं
- व्दारा पुरस्कृत व सम्मानित
- सम्पर्क : ‘ज़फ़र मंजिल’ ११/११६, ग्वालटोली, कानपूर – २०८००१
- मो - ९४५०९३८६२९
- घर - ९३०५७५७६९१
- e-mail : ansarqumbari@gmail.com
सुबोध भाई मुझे आपने अपनी बेहतरीन पत्रिका में शामिल किया - बहुत-बहुत आभार - सदा सुखी रहें ....
जवाब देंहटाएंवाह ..सभी ग़ज़लें बेहद उम्दा कहन लिए हुए ...हर हर्फ़ में साफ़ एहसासात ...गर्मी के लिए गरीब आदमी के एहसासात और जज्बात ...बहुत देर से पहुँची इस बात का खेद ....अंसार जी को बधाई और सुबोध सृजन से जुड़े परिवार को ..
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