कमला कृति

बुधवार, 24 सितंबर 2014

डॉ प्रेम लता चसवाल 'प्रेम पुष्प' की दो कविताएं



चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार


एक गांव 



बिहड़ गांव है ये
रेल की पटड़ियां ले आई यहां मुझे,

बीहड़ घना जंगल फैला है आस-पास इसके
कितना हरा-भरा सम्मोहन
समृद्ध भरा पूरा जंगल
सम्पन्न गहराया जंगल
फला-फूला विशाल
बरगदी डालों,
चौड़े पत्तों घने पेड़ों से
हहराता जंगल
अन्ततः अपनी अन्तः गहराइयों तक
फैली बीहड़ता से जूझता जंगल,
हरियाली ने घनत्व फैलाते समो लिया था जाने कब
भय से भरा अन्तहीन दबा खजाना।
पाल लिए थे कितने
हिंस्र सुरक्षा-गार्ड
जो बनैले पशु बन घूम रहे हैं स्वच्छन्द
बिहरगांव की बीहड़ हरियाली में,
बने जा रहे अब
जन-अस्तित्व को ही ख़तरा इक,
अपनी दीर्घ यात्रा पर निकले बटोही
बिहरगांव से गुजर ले जाएगी
रेल तुझे अपनी मंजिल पर
कुछ पल इस हरे-भरे जंगली सम्मोहन से
छुड़ा के आँचल चलना होगा,
बीहड़ में बहती गहन-संवलाई नदी पार कर
अगली राह बढ़ना होगा
बिना रुके ही चलना होगा
उत्तर दिशा की ओर
फूटती है जहाँ अजस्र धारा
काट भूरे-मटमैले पहाड़
निर्मल बहती कल-कल करती।


सत्यं शिवं सुदरम् 


ऐ भुजंगधारी!
सुन नीलकण्ठ!!
शिवरूप सृष्टि तेरी निशि दिन
घूँट  ज़हर के पीने की मजबूरी में हैं
पड़ी यहाँ
कैसे बोलें, हैं रूंधे गले
कंकाल बने नर धरा पुत्र के
रोम रोम में फैले उसके विष को  
ऐ विषपायी, आकर पीले,
मुमकिन है तब
श्रम घिसता-पिसता पीड़ित जन
कुछ क्षण को तो अपना
नितान्त अपना जीवन जी ले।

ऐ महाकाल!
सुर-असुर समर के कर्णधार!
त्रिनेत्र खोल,
व्यापक दृग दृष्टि इधर डाल!
धरती पर पड़ी बड़ी दरारें पाट ज़रा
झपटा-झपटी की नीति में
ब्रह्मास्त्रों-से ये प्रक्षेपास्त्र
छूटें न कहीं
आघातों से टुकड़े-टुकड़े हो
बिखर न जाए विश्व कहीं,
यह ब्रह्म बना अदना मानव
चीन्दा-चीन्दा हो कर
विलीन हो जाएगा
ऐ महादेव!
सुन्दर स्वरूप, अखण्ड पुरूष,
तब खण्ड-खण्ड हो जाएगा।
करूणा स्वरूप!
तू जाग आज
समाधि त्याग कर देख ज़रा,
धरती पर पड़ी बड़ी दरारें पाट ज़रा!

हे विश्वेश्वर, नटराज!
आज के पर्यावरण की सुन चीखें,
जीवनधारा कल-कल नदियां
कलुषित होती,
वन-थली लुटी
मरूथल बन तपती मूक धरा
द्रोपदी-सी विवश खड़ी अचला
क्षत-विक्षत आँचल पसार
मांगे गंगाजल की शुचिता,
ताण्डव कर भस्म करो
अब तो भस्मासुर को,
जो शिव स्वरूप इस सृष्टि को
अपने स्वार्थ हित छलता है
अपने सुख स्वर्ग बनाने को जो
यहाँ रौरव नरक बनाता है।

ऐ समदर्शी त्रिनेत्रधारी!
अपने त्रिनेत्र की ज्वाला को
जन-जन में प्रज्जवलित कर दो
जो भस्म करें उस वहशी को,
फैला दो क्रोधाग्नि प्रचण्ड
ताण्डव पद-तल में रौंद-रौंद
भस्मासुर भस्मीभूत करो।

ऐ निर्निमेष महेश प्रभु!
जग में फैले विष-कण्टक को
त्रिशूलधारी चुन-चुन बेंधो!
ऐ आशुतोष, गंगाधारी!
खोलो अब जटाजूट खोलो
जन-जन में हर हर हर बोलो
मन-मानस में अमृत घोलो
शिवशक्ति से सत्य स्थापित हो
कण-कण में सौन्दर्य भर दो।



डॉ. प्रेम लता चसवाल 'प्रेमपुष्प'


  • जन्म तिथि: 1952-07-20
  • जन्म स्थान: गाँव जनसुई, अम्बाला, हरियाणा
  • शिक्षा: M.A., M.Ed., Ph.D.
  • प्रकाशित कृतियाँ: 'दर्पण' (खंड-काव्य-१९८६), 'ममता' (कहानीसंग्रह-१९९३), 'मुक्तिबोध-काव्य: जनवादी चेतना के संदर्भ में' (समीक्षात्मक शोधग्रंथ-२००१), उर्दू से हिंदी में अनुवादित कहानी संग्रह 'कल्याणी-१' मूल-लेखक (उर्दू) श्री खजान चंद हरनाल (लोक-कथाएँ-२००५), हिंदी-शिक्षण (बी.एड. के पाठयक्रम हेतु २००८)
  • लेखन: प्रथम कविता 'आश्चर्य' १९८२ से आरम्भ कर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ, कहानियां, लघु-कथाएं, लेख आदि निरंतर प्रकाशित; उर्दू से हिंदी में कहानियों एवं ग़ज़लों का लिप्यांतरण।
  • सम्प्रति: महर्षि मारकंडेश्वर शिक्षण महाविद्यालय में हिंदी प्राध्यापिका के पद से सेवानिवृत्त; वर्ष २०१३ में जीवनसाथी श्री पुष्पराज चसवाल के साथ पी.पी.प्रकाशन (अम्बाला, शहर) के अंतर्गत - हिंदी साहित्य, कला एवं सामजिक सरोकारों की ई-पत्रिका 'अनहद-कृति' की संस्थापना और अब 'अनहद कृति' ई-त्रैमासिकी में सक्रीय लेखन एवं सह-सम्पादन।
  • रुचियाँ: पाक-कला, बागवानी, रेडियो-वार्ता, काव्य-पाठ व कहानी प्रसारण में रूचि, बुनाई-क्रोशिये की नयी-नयी चीजें बनाने का शौक, कुछ भी नया सीखने की लालसा.
  • सम्मान: पंजाब यूनिवर्सिटी से १९९५ में पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त हुई; प्रथम पुस्तक 'दर्पण' का हिमाचल प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री वीरभद्र सिंह द्वारा स्वतन्त्रता-दिवस (१९८६) पर देहरा (हिमाचल प्रदेश) में लोकार्पण; २००१ में सोहनलाल शिक्षण महाविद्यालय में मुक्तिबोध-काव्य की जनवादी शोधकर्त्री लेखिका के तौर पर गोष्ठी में सम्मानित;
  • सम्मानित शिक्षाविद - हिंदी शिक्षा (एजुकेशन) के क्षेत्र में भारत में ५० से अधिक पेपर, कांफ्रेंस प्रेसेंटेशन्स, वर्कशॉप-संचालन एवं वार्ताएं। ७ पी एच डी, २५ एम एड विद्यार्थियों का शोध-निदेशन। अंतर्राष्ट्रीय: वर्ष २००५ में यूनिवर्सिटी ऑफ़ विस्कॉन्सिन-मैडिसन (USA) में आयोजित ३४वॆन वार्षिक "कांफ्रेंस ओन साउथ-एशिया" में "पोएटिक्स एंड पॉलिटिक्स" में पैनल-चेयर के रूप में सम्मानित; वहीँ पर इंजीनियरिंग लर्निंग सेण्टर में "एजुकेशन इन इंडिया" में आमंत्रित वार्ता "कल्चरल कनेक्शन्स: ग्लोबल पर्स्पेकटीव्ज़" नामक आयोजन में; २००५ में ही यूनिवर्सिटी ऑफ़ विस्कॉन्सिन में "कम्युनिकेशन स्ट्रेटेजीज़ वाऎल ट्रांस्मिटिंग नॉलज बाय लैंग्वेज" सेमिनार शिक्षण-कला पे;
  • ईमेल: chaswalprempushp@gmail.com

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें