चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
लौट चलो अब गाँव..
हमको ये सुविधा मिली, पार उतरने हेतु |
नदिए तो है आग की, और मोम का सेतु ||
सारी नगरी रौंदते, बुलडोज़र के पाँव |
दाना-पानी उठ गया, लौट चलो अब गाँव ||
वो मुझसे नफ़रत करे, मैं करता हूँ प्यार |
ये उसका व्यवहार है, ये मेरा व्यवहार ||
केवल जो गरजे नहीं, बरसे भी कुछ देर |
ऐसे भी बादल पवन, अब ले आओ घेर ||
कोई कजरी गा रहा, कोई गाये फाग |
अपनी-अपनी ढपलियाँ, अपना-अपना राग ||
पहले आप बुझाइये, अपने मन की आग |
फिर बस्ती में गाइये, मेघ मल्हारी राग ||
सावन में सूखा पड़ा, फागुन में बरसात |
मौसम भी करने लगा, बेमौसम की बात ||
सफल वही आजकल, वही हुआ सिरमौर |
जिसकी कथनी और है, जिसकी करनी और ||
वैभव जो मिल जाय तो, करो न ऊँची बात |
चार दिनों की चाँदनी, फिर अंधियारी रात ||
पंछी चिंतित हो रहे, कहाँ बनायें नीड़ |
जंगल में भी आ गयी, नगरों वाली भीड़ ||
अंसार क़म्बरी
- जन्म : 3–11–1950
- पिता का नाम : स्व.ज़व्वार हुसैन रिज़वी
- लेखन : ग़ज़ल, गीत, दोहा, मुक्तक, नौहा, सलाम, यदा-कदा आलेख एवं पुस्तक समीक्षा आदि
- प्रकाशित कृति : ‘अंतस का संगीत’ (दोहा व गीत काव्य संग्रह)
- सम्मान : उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ व्दारा १९९६ के सौहार्द पुरस्कार एवं
- समय-समय पर नगर व देश की अनेकानेक साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं
- व्दारा पुरस्कृत व सम्मानित
- सम्पर्क : ‘ज़फ़र मंजिल’ 11/116, ग्वालटोली, कानपूर – 208001
- मो - 9450938629/ 9305757691
- e-mail : ansarqumbari@gmail.com
बहुत बहुत आभारी हूँ भाई - सुखी रहें ..
जवाब देंहटाएंअंसार क़म्बरी के दोहे उत्तम हैं । वे श्रेष्ठ दोहाकार हैं । उन्हें बधाई और सुबोध जी पढ़वाने के लिए आप को धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद Sp Sudhesh जी..
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