कमला कृति

गुरुवार, 26 फ़रवरी 2015

शैलेन्द्र शर्मा के गीत



विनोद शाही की कलाकृति



सुनो कहानी..



प्रेक्षा रानी सुनो कहानी
आने वाले कल की
होगी हर तस्वीर भयावाह
बस्ती की जंगल की

वन सिमटेंगे उपवन में
उपवन कल क्यारी में
मिला करेगी प्राणवायु.
कालाबाज़ारी में

अज़ायबघरों में दिखा करेगी
लकडी संदल की


सेतु और तटबंध रहेगे
नदी नही होगी
तन-मन से सब रोगीहोंगे
भोगी क्या जोगी

खून से बढकर बेशक ज्यादा
कीमत होगी जल की


धड तो होगा मानुस का
पर सिर होगा पशु का
ताली बजा करेंगे स्वागत
परखनली-शिशु का

कीमत लेकिन दो टके न होगी
बहते काजल की


वेलेनटाइन-डे के  आगे
जश्न सभी फीके
नांचेगी विकृतियां सिर चढ
'रम-व्हिस्की ' पी के

याद किसे फ़िर रह जायेगी
खिचडी-पोंगल की



       

तोडे सारे कीर्तिमान..



गिद्धों से बलशाली गिरगिट
नये जमाने के
तोडे सारे कीर्तिमान
इतिहास रचाने के

डाल-डाल से पात-पात पर
चलने मे माहिर
बिना ' ट्रम्प 'के जीतें बाज़ी
ये ऐसे ' नादिर '

नये-नये नित दांव सीखते
पैर जमाने के

बहुत तेज रफ्तार है इनकी
रंग बदलने की
धमकी देते सूरज को भी
ढंग बदलने की

सिखा रहे हैं गुर सुरसा को
मुंह फैलाने के

जिनके रंग शोख हैं ज्यादा
सत्ता पर बैठे
असंतुश्ट कुछ लिये वित्रिश्ना
रस्सी से एन्ठे

जनता झेले दिन लोहे के
चने चबाने के

अच्छे-भले परिन्दों की
पर-कटी उडानें हैं
तोता-मैना चुप सुनते
कौवों के तानें हैं

हवा हो गये दिन कोयल के
गीत सुनाने के


 

जागा करते रामधनी..



रात-रात भर नींद न आती
जागा करते रामधनी

अम्मा-बाबू बेटा-बेटी
बहन और वे खुद दोनों
दो कमरे के मकान में
प्राणी सात रहा करते हैं

अम्मा रात-रात भर
खांसें बाबू आसमान तकते
रात गये घर लौटे बेटा
क्या-क्या नही सहा करतें हैं

झपकी आई नही कि आहट
कर जाती है राहजनी

गरू दिनों के बाद हर बरस
खाक छानते फिरते हैं
शायद अबकी मिलही जाये
बहना खातिर कोई वर
जनम-कुंडली मिल जाती तो
धनम-कुंडली फन काढे
साल खिसक जाते हैं यों ही
सूख रहे चिंता कर-कर

तीस बरस की बहन कुंआरी
बीस  बरस की हीर-कनी

रामधनी सोचा करते हैं
दिन पहले भी कठिन रहे
लेकिन नही हुआ करते थे
आज सरीखे कभी मलिन
एक दूसरे कीमजबूरी
लोग समझते रहे सदा
आपस में भाईचारे का
रहता था मजबूत पुलिन

अब तो झोपडपटटी तक में
लूट-पाट औ आगजनी



पोर-पोर टूटन..



मोबाइल पर कभी-कभी
वो बातें कर लेता

सुननी होगी घर-डयोदी की
पोर-पोर टूटन
इसीलिये गढ लेता पहले ही
झूठी उलझन

कह कर हेलो शुरू हो जाता
तनिक नही रुकता

'आना था पर नही आसका
मैं पिछले हफ़्ते
छोटू को ज्वर तेज बहुत
दिन-रात नही काटते

मंहगी बहुत दवायें
पैसा पानी सा बहता

भरनी फ़ीस बडे बेटे की
सिलनी यूनीफ़ार्म
घडी खराब पडी हफ्तों से
बजता नही अलार्म

रोज लेट होजता घुडकी
अफ़सर की सहता

इसीबीच रानी का वादा
पूरा करना है
वर्षगांठ पर सूट सिलाना
तोहफ़ा देना है

आखिर है जीजा-साली का
नाज़ुक जो रिश्ता

भरसक कोशिश करूंगा फ़िर भी
मैं घर आने की
करना कोशिश किंतु स्वयं ही
कर्ज चुकाने की

जितना मिलता उसमें घर का
खरच नही चलता

सुनने की बारी पर कहता
कम बैलेन्स बचा'
रस्म निभाने का है
उसने यों इतिहास रचा

'अच्छा,..बाई' कह कर उसका
मोबाइल कटता


 

तुमने पत्र लिखा है..



तुमने पत्र लिखा है प्रियवर
घर के हाल लिखूं

घर में कमरे कमरों में घर
बिस्तर बंटे हुए
किरच-किरच दर्पण के टुकडे
जैसे जडे हुए

एक ' फ्रेम ' में है तो लेकिन
कैसे एक कहूं

एक रहे घर इसके खातिर
क्या-क्या नही किया
चषक-चषक भर अमृत बांटा
विष है स्वयं पिया

टुकडे-टुकडे बिका हाट में
कितना और बिकूं

इंद्रप्रस्थ के राजभवन सा
हम को यह लगता
थल में जल का जल में थलका
होना ही दिखता

भ्रम के चक्रव्यूह में पडकर
कैसे सहज दिखूं



शैलेन्द्र शर्मा



  • पिता : स्व.( डा.) राम नारायण शर्मा 
  • जन्म : 14 अक्तूबर 1947 
  • विधाएं : गीत-नवगीत गज़ल.दोहे, कुंडलिया, नई कविता लेख व संस्मरण आदि
  • प्रकाशन : "संन्नाटे ढोते गलि-यारे" (गीत-नवगीत संय्रह) प्रकाशित एवं " राम जियावन बांच
  • रहे हैं" (गीत-नवगीत) व"धडकन को विषपान (दोहा संग्रह) यंत्रस्थ 
  • और "घुटने घुटने पानी में" ( गज़ल संग्रह ) शीघ्र प्र्काश्य
  • सम्पर्क: 248/12, शास्त्री नगर, कानपुर-208005
  • मोबा: 07753920677
  • ईमेल: shailendrasharma643@gmail.com

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