महिला मुक्ति के प्रश्न पर नये सिरे से विचार विमर्श
अन्य भाषाओँ का हिन्दी अनुवाद साहित्य और साहित्यकार तक पहुंचने का माध्यम ही नहीं बल्कि समाज में हो रहे बदलावों से परिचय कराती है। इसके साथ ही स्त्री मुक्ति के प्रश्न व उसमें अंतर्निहित संघर्षों की व्याख्या करने में मदद करती है बल्कि उसमें हस्तक्षेप करने के लिए भी आह्वान करती है।
जे.एल.रेड्डी द्वारा संकलित एवं अनुवादित पुस्तक ‘स्त्री-मुक्ति की प्रतिनिधि तेलुगु कहानियाँ’ स्त्री संघर्ष और स्त्री मुक्ति की जद्दोजहद को सामने लाती है। पुस्तक में स्त्रियों की इच्छा शक्ति, स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता, संकल्प को पूरा करने का साहस दिखाने का प्रयास ही नहीं किया बल्कि उन मुस्लिम महिलाओं की रचनाओं को भी शामिल किया गया है जिन्हें मजहब के नाम पर घरों में कैद किया गया है। इस संग्रह में त्रिपुरनेनि गोपीचन्द की कहानी ‘ये पतित लोग’ पढने पर ऐसा लगता है कि दुनिया कितनी भी आगे बढ़ गयी हो लेकिन आज भी निम्न जाति और महिला अभिशप्त जीवन जीने को मजबूर हैं लेकिन यह कहानी जहाँ यथार्थ जीवन की व्याख्या करती है वहीं भविष्य की रूपरेखा भी तैयार करती है।
‘एलूरू जाना है’ कहानी के माध्यम से चा. सो. स्पष्ट करते हैं कि सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था कैसे महिलाओं को पतन की तरफ धकेलती है. इस कहानी का मर्म इससे समझा जा सकता कि संतान का न होना आज भी समाज में अभिशाप और कुंठित करने वाला है बल्कि महिलाओं को समाज से अलगाव पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
1902 में भंडारु अच्चमांबा द्वारा संवाद शैली में लिखी गयी ‘स्त्री शिक्षा’ आपमें अनोखी कहानी है। यह कहानी स्त्री शिक्षा के महत्व को बहुत ही ऊँचे स्तर तक पहुँचाती है। यह कहानी स्त्री समानता और स्वतन्त्रता का प्रश्न पूरे विश्व के दुखों तक पहुँचाने में मदद करती है।
वैश्वीकरण के दौर में पैदा हुई लड़कियों की क्या स्थिति होती है, इसका जीता जागता उदाहरण कहानी ‘मेरा नाम क्या है?’ में स्पष्ट होता है. जैसे ही कहानी की पात्रा का नाम उसके मस्तिष्क से धूमिल हो जाता है, उसका अस्तित्व खत्म हो जाता है। वह पति, बच्चों व अन्य रिश्तों के सहारे जीती है. जब उसे पता चलता है कि उसका नाम शारदा है तो उसे सबकुछ याद आ जाता है कि वह दसवीं में प्रथम, संगीत प्रतियोगिता में प्रथम आई थी. वह एक अच्छी चित्रकार थी।
वह इस अज्ञातवास का कारण ढूँढती है “मेरे दिमाग के सारे खाने तो लीपने-पोतने में भरे हुयें हैं और किसी बात की वहाँ गुंजाईश ही नहीं रही। यह कहानी विद्रोह भी करती है अपने अस्तित्व और पहचान को बनाने के लिए अपने पति से संघर्ष करती है- “घर को लीपने-पोतने से त्यौहार नही हो जाता. हाँ एक बात और. आज से आप मुझे ऐ, ओय कहकर मत बुलाइए. मेरा नाम शारदा है.” यह बहुत ही मार्मिक और दिल में हलचल पैदा करने वाली कहानी है।
‘ऐश-ट्रे’एक ऐसी लड़की की कहानी है जो अपनी जिन्दगी अपनी तरह से जीना चाहती है। उसने अपने हठ के कारण शादी नहीं की. उसी का परिणाम है कि वह आज अपने पैरो पर खड़ी है, समाज में उसकी प्रतिष्ठा है एक कॉलेज के प्रिंसिपल के रूप में, अच्छा व्यक्तित्व रखने वाली कुशल प्रशासक।
‘बीवी के नाम प्रेम-पत्र’ कहानी में बहुत ही रोचक तरीके से पति-पत्नी के सम्बन्धों को नये सिरे से समझने की कोशिश की गयी है। पत्नी सिर्फ और सिर्फ उसके घर के काम को करने वाली नहीं है। प्रेम का अपना सौन्दर्य बोध होता है यदि वह नहीं तो कुछ भी नहीं.
महिला मुक्ति का प्रश्न निरंतर प्रगति कर रहा है और नये सिरे से विचार-विमर्श हो रहा है. वह घर और बाहर दोनों जगह समान रूप से हमारी चेतना में उपस्थित है लेकिन सभी जगह महिलाओं को सामन्ती और पुरुषवादी मानसिकता से टकराना पड़ रहा है। कहानी ‘संघर्ष’ में जब ललिता का पति तलाक की बात करता है तो वह तमाम, सवालों, उलझनों और अन्तर्द्वन्द्वों को हल करती हुई फैसला करती है कि “अब मुझे जीवन में एक नया संघर्ष करना है। एक मनुष्य की तरह अपने ही सहारे खड़े होना है। इस प्रकार यह कहानी महिला मुक्ति के प्रश्नों को आर्थिक आजादी तक पहुँचाती है कि महिला मुक्ति का आरम्भ आर्थिक निर्भरता से शुरू होता है।
इस कहानी संकलन में एक महत्वपूर्ण बात सामने आती है कि मुस्लिम महिला लेखिकाओं ने भी उन मुद्दों को सामने रखा है जिसका जिक्र आमतौर पर नहीं किया जाता। दूसरा यह कि पुरुष लेखकों की कहानियों को भी इस संकलन में शामिल किया गया है जिससे यह अहसास होता है कि तेलुगु साहित्य में महिला मुक्ति के प्रश्न पर नये सिरे से विचार विमर्श हो रहा है। महिला मुक्ति का प्रश्न स्त्री एवं पुरुष के लिए साझा प्रश्न है, साझा हस्तक्षेप है, साझा संघर्ष और साझा सपना है।
-एम.एम.चन्द्रा
- पुस्तक-स्त्री-मुक्ति की प्रतिनिधि तेलुगु कहानियाँ
- अनुवादक-जे.एल. रेड्डी
- प्रकाशक-शिल्पायन, नयी दिल्ली
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