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चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
यादों में शेष रहे..
यादों में शेष रहे
सावन के झूले
गाँव- गाँव फैल गई
शहरों की धूल
छुई-मुई पुरवा पर
हँसते बबूल
रह-रह के सूरज
तरेरता है आँखें
बाहों में भरने को
दौड़ते बगूले
मक्का के खेत पर
सूने मचान
उच्छ्वासें लेते हैं
पियराये थान
सूनी पगडण्डियाँ
सूने हैं बाग
कोयल-पपीहे के
कण्ठ गीत भूले
मुखिया की बेटा
लिये चार शोहदे
क्या पता, कब कहाँ
फसाद कोई बो दे
डरती आशंका से
झूले की पेंग
कहो भला कब-कैसे
अम्बर को छूले
रो रही बरखा दिवानी..
रात के पहले प्रहर से
रो रही बरखा दिवानी
हो गई है भोर लेकिन
आँख का थमता न पानी
आ गई फिर याद निष्ठुर
चुभ गये पिन ढ़ेर सारे
है किसे फुर्सत कि बैठे
घाव सहलाये-संवारे
मन सुनाता स्वत: मन को
आप बीती मुँह-जबानी
नियति की सौगात थी
कुछ दिन रहे मेंहदी-महावर
किन्तु झोंका एक आया
और सपने हुए बे-घर
डाल से बिछुड़ी अभागिन
हुयी गुमसुम रातरानी
कौंधतीं हैं बिजलियाँ फिर
और बढ़ जाता अँधेरा
उठ रहा है शोर फिर से
बाढ़ ने है गाँव घेरा
लग रहा फिर पंचनामा
गढ़ेगा कोई कहानी
शैलेन्द्र शर्मा
मोबा: 07753920677
ईमेल: shailendrasharma643@gmail.com
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