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चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
कर्त्तव्य
आओ पूछें
सितारों से उनका धर्म
वे प्रति क्षण कैसे लड़ते हैं
अँधेरे से
आदिकाल से
लड़ते लड़ते
लेश मात्र भी थके नहीं,
क्योंकि वे
अँधेरे से लड़ना
अपना धर्म मानते हैं,
दूर-दूर तक रौशनी बांटने में
वे अपना अस्तित्व
सकारते हैं
उन्होंने कभी भी
अँधेरे से लड़ने में
या रौशनी बांटने में
मुख नहीं मोड़ा है;
उन्होंने रौशनी को
अस्तित्व-सम्बल मान
कैद किया है
किन्तु उसके
अविराम विस्तार पर
कण-मात्र भी
प्रतिबन्ध नहीं लगाया है।
विजय श्री
अपार दुःख-सागर में
डूबते क्षण
आशाएं ले रही हों
अंतिम श्वास
स्वाह हो रहा हो
अस्तित्व अर्थ मिट रहा हो
जीवन का,
ऐसे में झटका दो
स्वयं को,
उगते हुए सूर्य की
कुंआरी किरणों का
एक टुकड़ा क़ब्ज़ा लो;
जीवन का हर कोना
सुनहरे सपनों से
नहला लो,
मिटता हुआ अस्तित्व
साकार हो उठेगा;
टूटती आशाएं
विजय-श्री बनकर
तुम्हारा वरण कर लेंगी
अभीष्ट की
सीमाओं से परे
तुम्हारा स्वागत होगा।
जीवन आशा
आओ
प्रातः वेला
शुभ महूर्त में
बाँध लें
पूरब से उगती
नित्य जीवन-आशा,
फिर दिवस भर तो
खो जाना है
उहा-पोह के
अन्धे जंगल में।
संघर्ष
आओ
उन्हें
मीठे सपने उधार दें
जो अपनी ही आँखों में
गिर गए थे
बहुत दिन पहले ।
आओ उन्हें
मुक्त करायें
जो कुंठाओं में कैद
ग्रंथियों से घिरे
अपना अस्तित्व
खोने ही वाले हैं।
आओ
उन्हें
सुबह का स्वप्न दें
अदृश्य जिन्हें
अँधेरे में, जब वे
स्वप्निल लोक में खोए रहते
निगलना चाहता है।
साहस
तुम्हें किसने कहा
सूरज कब्ज़ा लो,
जानते नहीं
ऐसा करने से
जल जाओगे।
यदि कर सकते हो तो इतना करो
धूप कब्ज़ा
लो एक टुकड़ा-भर धूप
काफ़ी है,
आलोकित कर लोगे
अपना जीवन।
डॉ प्रेम लता चसवाल 'प्रेम पुष्प'
संपादक,
'अनहद कृति' त्रैमासिक ई-पत्रिका
(www.anhadkriti.com)
ईमेल:chaswalprempushp@gmail.com
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