चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
एक आश्रम अशान्त
एक शान्त जलधारा है
एक शान्त किनारा है
मंदिर में गूँज रहा
घंटा भी शान्त है
मंत्र उच्चार रहे
भक्त भी शान्त हैं
बोलते भी शान्त हैं
हँसते भी शान्त हैं
प्रश्न सब शान्त हैं
उत्तर सब शान्त हैं
शान्त हैं
धरती से जुड़ी तमाम वनस्पतियाँ
शान्त हैं
आकाश को ताकते तमाम वृक्ष
कलरव भी शान्त है
शान्त है आवाज भी
शान्त हर ओर है
शान्त सब शोर है
शान्त आसपास है
क्षितिजों तक
बस शान्त ही शान्त है
तो फिर
रहना अशान्त मेरा
क्या नहीं है अनुचित?
खोजता हूँ तो पाता हूँ
एक मरियल सी जिज्ञासा है
एक लकीर सी शंका
एक गर्दन उठाए स्वार्थ है
एक अनुभवहीन तर्क है
एक अहंकारी श्रद्धा है
एक चाटुकार विनय है
खोने में पाना है
देने में लेना है
शब्दों में शोर है
आवाज में भीड़ है
चिन्तन में चीर है
लालच के ढूँह पर
बैठा फकीर है।
शान्त को भीतर से
खाता हुआ अशान्त है।
चुप भी अशान्त है
सब कुछ अशान्त है।
कविते!
माना कि जोर बहुत है तुझमें
पर आज मुझे झोंकनी है ताकत
देखता हूँ कैसे रचवाती हो खुद को!
मृत घोषित होकर भी हो जीवित
पढ़ता ही कौन है तुम्हें
फँस चुकी हो पुरस्कार-फुरस्कार की दलदल में
पाठ्यक्रमों तक में सरेआम भोग लेती हो बलात्कार
कैसे रह लेती हो शान्त तब भी!
जानता हूँ बहुत जोर है तुझमें
और जिद्दी भी कम नहीं
और मूर्ख इतनी कि अकेला भी चलने को तैयार
फूँक फाँक, छोड़-छाड़ घर द्वार।
अशोक हो
हो पीपल सी
अध्यात्म भी, विज्ञान भी
कैसी हो तुम, पृथ्वी सी
रहस्य भी, अनिवार्य भी।
कितनी सहज हो तुम
दिखती न दिखती लहर सी।
पर बदमाश भी, थोड़ी चुलबुली
रचवा ही लिया न खुद को।
काश
काश कि मैं एक नागरिक न होता
दबा
सभ्य होने के बोझ से
तो न करता इन्तज़ार
किसी गवाही
किसी अदालत की।
उखाड़ फेंकता जहरीले वृक्षों को
कर डालता शिकार वर्जित क्षेत्र में भी
वहशी प्राणियों का
नहीं करता परवाह मंत्रालयों की,
विभागों की।
काश कि मैं पिशाचभक्षी हो पाता
तो खाता एक एक अंग
जिंदा ही भूनकर उनका
और अट्टहास करता
उनके गगनभेदी चीत्कारों पर।
देखता पूरी खिंची आँखों से।
नोचता उनकी स्मृतियों को।
कैसे चबाया होगा उन्होंने
मासूम बच्चों और महिलाओं के गोश्त को!
कैसे किया होगा उपेक्षित
उनकी आँखेां से टपकती मानवता को!
कैसे ?
काश !
खुशी
खुशी को मैंने
उँगलियों में पकड़ा
और सहलाया उसकी पंखुड़ियों को
पाया
खुशी शर्माते शर्माते
सकुचा गई थी
मैंने
थोड़ा खोला खुशी की पंखुड़ियों को
पाया
खुशी मेरी खुशी में
सम्मिलित हो गई थी
मैंने खोल दिया पूरा
और कर दिया अर्पित उसे
उस पूरी दुनिया पर
जहाँ नहीं थी वह
पाया
मैंने कभी नहीं देखा था खुशी को
इससे ज़्यादा खुश
पहले कभी
ताज्जुब
मेरी खुशी तक मना रही थी जश्न
जैसे मुक्त हो गई हो मेरी कैद से
डर
बस इतना ही मालूम था मुझे
कि एक डोर है यह
जिसका यह सिरा मेरे हाथ में है।
कहाँ है दूसरा सिरा
सब कुछ अदृश्य था
जितना भी खींच लूँ
हिला लूँ कितना भी
कहीं कोई तनाव नहीं था डोर में
हालाँकि
आ बसा था तनाव
पूरा
मेरी देह में
डर भी था कितना
और वह भी अजाना
कि नहीं छोड़ पा रहा था डोर को।
तभी किसी विचार की तरह
न जाने कैसे सूझा
और पाया
वह डोर, डोर थी ही नहीं
एक उँगली थी किसी दैत्य की
मेरा हिलना डुलना
यहाँ तक कि चलना भी
उसी उँगली के वश था
मैं स्वयं
जैसे उसी के वशीभूत था
उसकी अद्भुत आत्मीयता से
उसकी उँगलियों से ही
निरन्तर उतर रही थीं
उदासियाँ
मेरी देह में
कि तन रही थी जो निरन्तर
और मैं
कुर्बानी की हद तक
स्वीकार कर रहा था जिन्हें।
कितनी कठोर होती है सच की समझ
मैंने जाना था।
झटक दिया था
एक ही झटके में
मैंने उस दैत्य की उँगली को
आश्चर्य!
न डर था, न तनाव
मैं स्थिर था
मेरी उदासियाँ तक
कुर्बान हो चली थीं
खुद मुझ पर।
दिविक रमेश
- दिविक रमेश (वास्तविक नाम - रमेश शर्मा)
- जन्म : १९४६, गाँव किराड़ी, दिल्ली।
- शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी), पी-एच.डी. (दिल्ली विश्वविद्यालय)
- संप्रति : प्राचार्य, मोतीलाल नेहरू कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय, नई दिल्ली
- पुरस्कार/सम्मान : गिरिजाकुमार माथुर स्मृति पुरस्कार, १९९७
- सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, १९८४
- दिल्ली हिन्दी अकादमी का साहित्यिक कृति पुरस्कार, १९८३
- दिल्ली हिन्दी अकादमी का साहित्यकार सम्मान २००३-२००४
- एन.सी.ई.आर.टी. का राष्ट्रीय बाल-साहित्य पुरस्कार, १९८९
- दिल्ली हिन्दी अकादमी का बाल-साहित्य पुरस्कार, १९८७
- भारतीय बाल-कल्याण संस्थान, कानपुर का सम्मान १९९१
- बालकनजी बारी इंटरनेशनल का राष्ट्रीय नेहरू बाल साहित्य एवार्ड १९९२
- इंडो-रशियन लिटरेरी कल्ब, नई दिल्ली का सम्मान १९९५
- कोरियाई दूतावास से प्रशंसा-पत्र २००१बंग नागरी प्राचारिणी सभा का पत्रकार शिरोमणि सम्मान १९७६ में।
- प्रकाशित कृतियाँ :कविताः 'रास्ते के बीच', 'खुली आंखों में आकाश', 'हल्दी-चावल और अन्य कविताएं', 'छोटा-सा हस्तक्षेप', 'फूल तब भी खिला होता' (कविता-संग्रह)। 'खण्ड-खण्ड अग्नि' (काव्य-नाटक)। 'फेदर' (अंग्रेजी में अनूदित कविताएं)। 'से दल अइ ग्योल होन' (कोरियाई भाषा में अनूदित कविताएं)। 'अष्टावक्र' (मराठी में अनूदित कविताएं)। 'गेहूँ घर आया है' (चुनी हुई कविताएँ, चयनः अशोक वाजपेयी)।
- आलोचना एवं शोधः नये कवियों के काव्य-शिल्प सिद्धान्त, ‘कविता के बीच से’, ‘साक्षात् त्रिलोचन’, ‘संवाद भी विवाद भी’। ‘निषेध के बाद’ (कविताएं), ‘हिन्दी कहानी का समकालीन परिवेश’ (कहानियां और लेख), ‘कथा-पडाव’ (कहानियां एवं उन पर समीक्षात्मक लेख), ‘आंसांबल’ (कविताएं, उनके अंग्रेजी अनुवाद और ग्राफिक्स), ‘दूसरा दिविक’ आदि का संपादन।
- ‘कोरियाई कविता-यात्रा’ (हिन्दी में अनूदित कविताएं)। ‘द डे ब्रक्स ओ इंडिया’ (कोरियाई कवयित्री किम यांग शिक की कविताओं के हिंदी अनूवाद) । ‘सुनो अफ्रीका’।
- बाल-साहित्यः ‘जोकर मुझे बना दो जी’, ‘हंसे जानवर हो हो हो’, ‘कबूतरों की रेल’, ‘छतरी से गपशप’, ‘अगर खेलता हाथी होली’, ‘तस्वीर और मुन्ना’, ‘मधुर गीत भाग ३ और ४’, ‘अगर पेड भी चलते होते’, ‘खुशी लौटाते हैं त्यौहार’, ‘मेघ हंसेंगे जोर-जोर से’ (चुनी हुई बाल कविताएँ, चयनः प्रकाश मनु)। ‘धूर्त साधु और किसान’, ‘सबसे बडा दानी’, ‘शेर की पीठ पर’, ‘बादलों के दरवाजे’, ‘घमण्ड की हार’, ‘ओह पापा’, ‘बोलती डिबिया’, ‘ज्ञान परी’, ‘सच्चा दोस्त’, (कहानियां)। ‘और पेड गूंगे हो गए’, (विश्व की लोककथाएँ), ‘फूल भी और फल भी’ (लेखकों से संबद्ध साक्षात् आत्मीय संस्मरण)। ‘कोरियाई बाल कविताएं’। ‘कोरियाई लोक कथाएं’। ‘कोरियाई कथाएँ’।
- ‘और पेड गूंगे हो गए’, ‘सच्चा दोस्त’ (लोक कथाएं)।
- अन्यः ‘बल्लू हाथी का बाल घर’ (बाल-नाटक)।
- ‘खण्ड-खण्ड अग्नि’ के मराठी, गुजराती और अंग्रेजी अनुवाद।
- अनेक भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में रचनाएं अनूदित हो चुकी हैं। रचनाएं पाठयक्रमों में निर्धारित।
- विशेष : २०वीं शताब्दी के आठवें दशक में अपने पहले ही कविता-संग्रह ’रास्ते के बीच‘ से चर्चित हो जाने वाले आज के सुप्रतिष्ठित हिन्दी-कवि बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। ३८ वर्ष की आयु में ही ’रास्ते के बीच‘ और ’खुली आंखों में आकाश‘ जैसी अपनी मौलिक साहित्यिक कृतियों पर सोवियत लैंड नेहरू एवार्ड जैसा अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार पाने वाले ये पहले कवि हैं। १७-१८ वर्षों तक दूरदर्शन के विविध कार्यक्रमों का संचालन किया। १९९४ से १९९७ में भारत सरकार की ओर से दक्षिण कोरिया में अतिथि आचार्य के रूप में भेजे गए जहाँ इन्होंने साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में कितने ही कीर्तिमान स्थापित किए। वहाँ के जन-जीवन और वहाँ की संस्कृति और साहित्य का गहरा परिचय लेने का प्रयत्न किया। परिणामस्वरूप ऐतिहासिक रूप में, कोरियाई भाषा में अनूदित-प्रकाशत हिन्दी कविता के पहले संग्रह के रूप में इनकी अपनी कविताओं का संग्रह ’से दल अइ ग्योल हान‘ अर्थात् चिड़िया का ब्याह है। इसी प्रकार साहित्य अकादमी के द्वारा प्रकाशित इनके द्वारा चयनित और हिन्दी में अनूदित कोरियाई प्राचीन और आधुनिक कविताओं का संग्रह ’कोरियाई कविता-यात्रा‘ भी ऐतिहासिक दृष्टि से हिन्दी ही नहीं किसी भी भारतीय भाषा में अपने ढंग का पहला संग्रह है। साथ ही इन्हीं के द्वारा तैयार किए गए कोरियाई बाल कविताओं और कोरियाई लोक कथाओं के संग्रह भी ऐतिहासिक दृष्टि से पहले हैं।
- दिविक रमेश की अनेक कविताओं पर कलाकारों ने चित्र, कोलाज और ग्राफिक्स आदि बनाए हैं। उनकी प्रदर्शनियाँ भी हुई हैं। इनकी बाल-कविताओं को संगीतबद्ध किया गया है। जहाँ इनका काव्य-नाटक ’खण्ड-खण्ड अग्नि‘ बंगलौर विश्वविद्यालय की एम.ए. कक्षा के पाठ्यक्रम में निर्धारित है वहाँ इनकी बाल-रचनाएँ पंजाब, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र बोर्ड तथा दिल्ली सहित विभिन्न स्कूलों की विभिन्न कक्षाओं में पढ़ायी जा रही हैं। इनकी कविताओं पर पी-एच.डी के उपाधि के लिए शोध भी हो चुके हैं।
- इनकी कविताओं को देश-विदेश के अनेक प्रतिष्ठित संग्रहों में स्थान मिला है। इनमें से कुछ अत्यंत उल्लेखनीय इस प्रकार हैं १. इंडिया पोयट्री टुडे (आई.सी.सी.आर.), १९८५, २. न्यू लैटर (यू.एस.ए.) स्प्रिंग/समर, १९८२, ३. लोटस (एफ्रो-एशियन राइटिंग्ज, ट्युनिस श्ज्नदपेश् द्धए वॉल्यूमः५६, १९८५, ४. इंडियन लिटरेचर ;(Special number of Indian Poetry Today) साहित्य अकादमी, जनवरी/अप्रैल, १९८०, ५. Natural Modernism (peace through poetry world congress of poets) (१९९७) कोरिया, ६. हिन्दी के श्रेष्ठ बाल-गीत (संपादकः श्री जयप्रकाश भारती), १९८७, ७. आठवें दशक की प्रतिनिधि श्रेष्ठ कविताएं (संपादकः हरिवंशराय बच्चन)।
- दिविक रमेश अनेक देशों जैसे जापान, कोरिया, बैंकाक, हांगकांग, सिंगापोर, इंग्लैंड, अमेरिका, रूस, जर्मनी, पोर्ट ऑफ स्पेन आदि की यात्राएं कर चुके हैं।
- सम्पर्क : divik_ramesh@yahoo.com
धन्यवाद। आपके चुनाव के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंसभी कविताएँ बहुत ही उम्दा हैं.इन्हें सुबोध सृजन पर साझा करते हुए आत्मिक प्रसन्नता हुई..!
हटाएंहृदयस्पर्शी रचनाएँ , एक शांत जलधारा एक शांत किनारा .....
जवाब देंहटाएंआपकी मनमोहक कविताओ का शब्दनगरी मंच पर भी इंतज़ार है .....
आप www.shabdanagari.in -शब्दनगरी पर अपनी कविताए या मनचाहे लेख हिन्दी में प्रकाशित कर सकते है। हमे ईमेल भी कर सकते है info@shabdanagari.in पर
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