चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
- डा. कुँअर बेचैन ग़ज़ल लिखने वालों में ताज़े और सजग रचनाकारों में से हैं। उन्होंने आधुनिक ग़ज़ल को समकालीन जामा पहनाते हुए आम आदमी के दैनिक जीवन से जोड़ा है। यही कारण है कि वे नीरज के बाद मंच पर सराहे जाने वाले कवियों में अग्रगण्य हैं। उन्होंने गीतों में भी इसी परंपरा को कायम रखा है। वे न केवल पढ़े और सुने जाते हैं वरन कैसेटों की दुनिया में भी खूब लोकप्रिय हैं। सात गीत संग्रह, बारह ग़ज़ल संग्रह, दो कविता संग्रह, एक महाकाव्य तथा एक उपन्यास के रचयिता कुँवर बेचैन ने ग़ज़ल का व्याकरण नामक ग़ज़ल की संरचना समझाने वाली एक अति महत्वपूर्ण पुस्तक भी लिखी है।
(एक)
बड़ा उदास सफ़र है हमारे साथ रहो.
बस एक तुम पे नज़र है हमारे साथ रहो
हम आज ऐसे किसी ज़िंदगी के मोड़ पे हैं
न कोई राह न घर है हमारे साथ रहो
तुम्हें ही छाँव समझकर हम आ गए हैं इधर
तुम्हारी गोद में सर है हमारे साथ रहो
ये नाव दिल की अभी डूब ही न जाए कहीं
हरेक सांस भंवर है हमारे साथ रहो
ज़माना जिसको मुहब्बत का नाम देता रहा
अभी अजानी डगर है हमारे साथ रहो
इधर चराग़ धुएँ में घिरे-घिरे हैं 'कुँअर '
उधर ये रात का डर है हमारे साथ रहो
(दो)
दिलों में नफरतें हैं अब, मुहब्बतों का क्या हुआ
जो थीं तेरे ज़मीर की अब उन छतों का क्या हुआ
बगल में फाइलें लिए कहाँ चले किधर चले
छुपे थे जो किताब में अब उन खतों का क्या हुआ
ज़रा ज़रा सी बात पे फफक पड़े या रो पड़े
वो बात-बात में हँसी की आदतों का क्या हुआ
लिखे थे अपने हाथ से जो डायरी में आपने
नई-नई-सी खुशबुओं के उन पतों का क्या हुआ
कि जिनमें सिर्फ प्यार की हिदायतें थीं ऐ 'कुँअर'
वो मन्त्र सब कहाँ गए उन आयतों का क्या हुआ
(तीन)
फूल को ख़ार बनाने पे तुली है दुनिया
सबको अंगार बनाने पे तुली है दुनिया
मैं महकती हुई मिटटी हूँ किसी आँगन की
मुझको दीवार बनाने पे तुली है दुनिया
हमने लोहे को गलाकर जो खिलौने ढाले
उनको हथियार बनाने पे तुली है दुनिया
जिन पे लफ़्ज़ों की नुमाइश के सिवा कुछ भी नहीं
उनको फ़नकार बनाने पे तुली है दुनिया
क्या मुझे ज़ख्म नए दे के अभी जी न भरा
क्यों मुझे यार बनाने पे तुली है दुनिया
मैं किसी फूल की पंखुरी पे पड़ी शबनम हूँ
मुझको अंगार बनाने पे तुली है दुनिया
नन्हे बच्चों से 'कुँअर ' छीन के भोला बचपन
उनको हुशियार बनाने पे तुली है दुनिया
(चार)
हम कहाँ रुस्वा हुए रुसवाइयों को क्या खबर
डूबकर उबरे न क्यूँ गहराइयों को क्या खबर
ज़ख्म क्यों गहरे हुए होते रहे होते गए
जिस्म से बिछुड़ी हुई परछाइयों को क्या खबर
क्यों तड़पती ही रहीं दिल में हमारे बिजलियाँ
क्यों ये दिल बादल बना अंगड़ाइयों को क्या खबर
कौन सी पागल धुनें पागल बनातीं हैं हमें
होठ से लिपटी हुई शहनाइयों को क्या खबर
किस क़दर तन्हा हुए हम शहर की इस भीड़ में
यह भटकती भीड़ की तन्हाइयों को क्या खबर
कब कहाँ घायल हुईं पागल नदी की उंगलियाँ
बर्फ़ में ठहरी हुई ऊँचाइयों को क्या ख़बर
क्यों पुराना दर्द उठ्ठा है किसी दिल में कुँअर
यह ग़ज़ल गाती हुई पुरवाइयों को क्या खबर
(पांच)
हम बहुत रोये किसी त्यौहार से रहकर अलग
जी सका है कौन अपने प्यार से रहकर अलग
चाहे कोई हो उसे कुछ तो सहारा चाहिए
सज सकी तस्वीर कब दीवार से रहकर अलग
क़त्ल केवल क़त्ल और इसके सिवा कुछ भी नहीं
आप कुछ तो सोचिये तलवार से रहकर अलग
हाथ में आते ही बन जाते हैं मूरत प्यार की
शब्द मिटटी हैं किसी फ़नकाार से रहकर अलग
वो यही कुछ सोचकर बाज़ार में खुद आ गया
क़द्र हीरे की है कब बाज़ार से रहकर अलग
काम करने वाले अपने नाम की भी फ़िक्र कर
सुर्खियां बेकार हैं अखबार से रहकर अलग
स्वर्ण-मुद्राएं तुम्हारी भी हथेली चूमतीं
तुम ग़ज़ल कहते रहे दरबार से रहकर अलग
सिर्फ वे ही लोग पिछड़े ज़िंदगी की दौड़ में
वो जो दौड़े वक़्त की रफ़्तार से रहकर अलग
हो रुकावट सामने तो और ऊंचा उठ 'कुँअर'
सीढ़ियाँ बनतीं नहीं दीवार से रहकर अलग
(छह)
गलियों गलियों सिर्फ घुटन है बंजारा दम तोड़ न दे
बहरों के घर गाते गाते इकतारा दम तोड़ न दे
ऊंचे पर्वत से उतरी है प्यास बुझाने धरती की
अंगारों पर चलते चलते जलधारा दम तोड़ न दे
चंदा का क्या वह तो अपनी राहें रोज़ बदलता है
अपने वचनों पर दृढ रहकर ध्रुवतारा दम तोड़ न दे
मुमकिन हो तो दूर ही रखना दिल की आग को आंसू से
पानी की बाँहों में आकर अंगारा दम तोड़ न दे
अंधी आंधी में अब फिर से भेज न मन के पंछी को
माना पहले बच आया है दोबारा दम तोड़ न दे
केवल उजियारा रहता तो नींद न मिलती आँखों को
मेरे बचपन का साथी ये अंधियारा दम तोड़ न दे
घर घर जाकर बाँट रहा है चिट्ठी जो मुस्कानों की
देखो मेरे आंसूं का यह हरकारा दम तोड़ न दे
कितनी मुश्किल से बच पाया आंधी से ये नीड 'कुँअर '
अब तो बिजली की बारिश हैं बेचारा दम तोड़ न दे
बहुत सुंदर सुबोध जी , आपके ब्लाग की सुंदरता प्रति दिन बढ़ रही है । पिछले दिनों मैंने जब कुँवर बेचैन जी से कहा की रचना का महत्व आप के आंकलन मे क्या है , उनके शब्द थे - "भाव"। एक बड़ी बात है उन आलोचकों के लिए जो शिल्प और कथ्य की तराजू पर रचना को वजनदार कहते हैं या खारिज कर देते हैं - अवधेश सिंह
जवाब देंहटाएंवाह ...
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