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चाहत मे..
तेरा होने की चाहत मे
किसी के ना हो सके हम
ना खुल के हंस सके
ना खुल के रो सके हम
जिसको हमने चाहा था
वो किसी और का था पहले ही
ना उसको पा सके
ना उसको खो सके हम
कर्मों ने खेला
ज़िन्दगी का खेल ये निराला
जिसमे हारे ही हारे हैं
पर कभी ना जीत सके हम
अपना अपना कहते कहते जिनको
हमने ये जीवन गुजारा
उन अपनों के कभी
"अपने" ना हो सके हम
गालियां ही पाना था शायद
नसीब में हमारे
पर कभी किसी की
दुआ ना पा सके हम
आँख खुली तो हर तरफ
तन्हाई थी, उदासी थी
चाह कर भी कभी
मुस्कुरा ना सके हम
देखे थे कुछ ख्वाब
सजाये कुछ सपने थे हमने भी
सपने सपने ही रह गए
उन्हें हकीक़त ना कर सके हम
दिल के जख्म धीरे धीरे
नासूर हो गए
चाह कर भी कभी उन पे
मलहम ना लगा सके हम
सोचा था कुछ ऐसा
कहेंगे हम भी अपना हाल सबसे
सुना बहुत कुछ सबसे
पर कभी किसी से कुछ कह ना सके हम
ज़िन्दगी की कविता
अधूरी की अधूरी ही रह गयी
कोशिश तो बहुत की
पर उसे पूरा ना कर सके हम
ना खुल के हंस सके
ना खुल के रो सके हम
जरूरत है जागने की
खुश हुए ये जानकर एक दंपत्ति
अब मिलेगी उनको भी संतान रुपी संपत्ति
खिलेगा आँगन में एक प्यारा सा फूल
भर देगा जीवन में खुशियाँ भरपूर
एक प्यारा सा राजकुमार आएगा
हर कोई जिसे देखकर खिलखिलाएगा
घर आँगन गूंजेगी जिसकी किलकारी
लुभाएगी सबको मोहिनी सूरत प्यारी
वो हंसेगा तो दुनिया हंसती हुई लगेगी
गर वो रोएगा तो दिल की धड़कन रुकेगी
वो कुल का दीपक कहलायेगा
पूरा घर उसकी रौशनी से जगमगाएगा
वंश की बेल को आगे बढाकर
पुरखों का वह मान बढाएगा
सजाते सपने, बुनते ख्वाब,
बीत गए महीने नौ
जिसका सबको था इन्तजार,
फट गई एक दिन वो पौ
आई घर में लक्ष्मी थी,
जन्म हुआ था तनया का
स्वागत होना था बेटे का,
पर ना हुआ था कन्या का
माँ ने मुँह फेरा उससे फिर
पिता ने गोदी में ना लिया
उसने पैदा होकर जैसे,
सबके सपनों को चकनाचूर कर दिया
दादी ने मारे ताने थे फिर
बुआ ने नाक चिडाई थी
सबने मिलकर के फिर
करी ईश्वर से लड़ाई थी
मन्नत जब मांगी बेटे की,
कैसे हो गई ये लड़की
सपने तो बुने थे उन्नति के हमने,
आ गई है अब ये कडकी
सोच रही थी पड़े-पड़े वो,
भूल गए जो वो सब भी
माँ भी तो एक लड़की ही हैं,
दादी-बुआ भी हैं लड़की
गर लड़की ही ना होती तो,
क्या पुरुष जन्म ले पाता फिर
कौन सा वंश, कैसी विरासत,
क्या दुनिया पैदा होती फिर
जिस घर में लड़की का जन्म नहीं होता
वहाँ पर खुशियों का आगमन नहीं होता
दिवाली पर होते ना ही ख़ुशी,
ना ही उमंग
होली पर नहीं उड़ते,
हर्षोल्लास के रंग
ना मनाया जाता फिर रक्षा-बंधन
ना लगता माथे पर भैया-दूज का चन्दन
गर ना होती लक्ष्मी तो,
कैसे मिलती सुख-संपत्ति हमें
सरस्वती से ही तो होती है,
विद्याओं की प्राप्ति हमें
दुर्गा ना होती गर तो,
शक्तियां कहाँ से हम पाते
चंडी का महारूप ना होता
तो राक्षसों का नाश कभी ना कर पाते
लड़की में
ना जाने कितने ही रूप समाए हैं
उसकी शक्ति और मर्यादा के आगे तो
ईश्वर ने भी शीश झुकाए हैं
लड़का एक कुल की आन है,
लड़की दो कुलों का मान है
लड़की कोई बोझ नहीं है,
वो तो ईश्वर का वरदान है
लड़की बेटी है, बहिन है,
मौसी-बुआ, दादी-नानी,
और ना जाने क्या-क्या है
एवं इन सबसे बढकर, वो एक माँ है
जो जनती है आज को
और पालती है कल को
लड़की के बिना हर रिश्ता अधूरा है
लड़की से ही सबका जीवन पूरा-पूरा है
सोचो
दिल से सोचो
क्या लड़की के बिना
हो सकती है स्रष्टि की रचना ?
क्या उसके बिना पूरा हो सकता है
भविष्य का कोई सपना ?
क्यों पैदा होने से पहले ही
लड़की को मार रहे हो ?
क्यों जानते बूझते
अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हो ?
इसलिए
जरूरत है जागने की
मिलकर इन कुरीतियों को मिटाने की
वक़्त है अभी भी
ईश्वर की दी इस अमूल्य " निधि " का
करेंगे जब मिलकर हम सब सम्मान
तब ही कहलाएंगे हम सब एक सच्चे इंसान..!
निधि जैन
- जन्मतिथि : 09-02-1983
- जन्म स्थान : शाहदरा दिल्ली
- माता का नाम : श्रीमति सरिता जैन
- पिता का नाम : श्री हेम चंद जैन
- निवास स्थान : रोहतक हरियाणा
- शैक्षणिक योग्यता : स्थानक ( B.com )
- लेखन : कविताएं
- संपर्क : nidhijain6129@gmail.com
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