चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
जीवन का विस्तार
युग-युग से हर बाग का, ये ही एक उसूल
जिसको हँसना आ गया वो ही मट्टी फूल
पंछी मानव, फूल, जल, अलग-अलग आकार
माटी का घर एक ही, सारे रिश्तेदार
चिड़ियों को चहकाकर दे, गीतों को दे बोल
सूरज बिन आकाश है, गोरी घूँघट खोल
चीखे घर के द्वार की लकड़ी हर बरसात
कटकर भी मरते नहीं, पेड़ों में दिन-रात
सीधा सादा डाकिया जादू करे महान
एक ही थैले में भरे आँसू और मुस्कान
सपना झरना नींद का जागी आँखें प्यास
पाना, खोना, खोजना, सांसों का इतिहास
सुना है अपने गाँव में, रहा न अब वह नीम
जिसके आगे मांद थे, सारे वैद्य-हकीम
छोटा कर के देखिए जीवन का विस्तार
आँखों भर आकाश है बाँहों भर संसार
मैं क्या जानूँ तू बता, तू है मेरा कौन
मेरे मन की बात को, बोले तेरा मौन
रास्ते को भी दोष दे, आँखें भी कर लाल
चप्पल में जो कील है, पहले उसे निकाल
ऊपर से गुड़िया हँसे, अंदर पोलमपोल
गुड़िया से है प्यार तो, टाँकों को मत खोल
मैं भी तू भी यात्री, आती-जाती रेल
अपने-अपने गाँव तक, सबका सब से मेल।
दर्पण में आँखें बनीं, दीवारों में कान
चूड़ी में बजने लगी, अधरों की मुस्कान
यों ही होता है सदा, हर चूनर के संग
पंछी बनकर धूप में, उड़ जाते हैं रंग
बूढ़ा पीपल घाट का, बतियाए दिन-रात
जो भी गुज़रे पास से, सिर पे रख दे हाथ
घर को खोजें रात दिन घर से निकले पाँव
वो रस्ता ही खो गया जिस रस्ते था गाँव
निदा फ़ाज़ली
- जन्म: 12 अक्तूबर 1938
- जन्म स्थान: दिल्ली (भारत)
- कुछ प्रमुख कृतियाँ : आँखों भर आकाश, मौसम आते जाते हैं, खोया हुआ सा कुछ, लफ़्ज़ों के फूल, मोर नाच, आँख और ख़्वाब के दरमियाँ, सफ़र में धूप तो होगी
- सम्मान : 1998 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित
बेहतरीन दोहे पटल पर प्रकाशित किये......आभार
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