कमला कृति

मंगलवार, 4 अगस्त 2015

पूर्णिमा वर्मन के पांच नवगीत


चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार


जीने की आपाधापी में


कितने कमल खिले जीवन में
जिनको हमने नहीं चुना

जीने की
आपाधापी में भूला हमने
ऊँचा ही ऊँचा
तो हरदम झूला हमने
तालों की
गहराई पर
जीवन की
सच्चाई पर
पत्ते जो भी लिखे गए थे, 
उनको हमने नहीं गुना

मौसम आए मौसम बीते
हम नहिं चेते
अपने छूटे देस बिराना
सपने रीते
सपनों की
आवाजों में
रेलों और
जहाज़ों में
जाने कैसी दौड़ थी जिसमें
अपना मन ही नहीं सुना


कोयलिया बोली


शहर की हवाओं में
कैसी आवाज़ें हैं
लगता है
गाँवों में कोयलिया बोली

नीलापन हँसता है
तारों में
फँसता है
संध्या घर लौट रहा
इक पाखी तकता है
गगन की घटाओं में
कैसी रचनाएँ हैं
लगता है
धरती पर फगुनाई होली

सड़कों पर नीम झरी
मौसम की
उड़ी परी
नई पवन लाई है
मलमल की ये कथरी
धरती के आँगन में
हरियल मनुहारें हैं
लगता है
यादों ने कोई गाँठ खोली


मंदिर दियना बार


मंदिर दियना बार सखी री
मंगल दियना बार!
बिनु प्रकाश घट-घट सूनापन
सूझे कहीं न द्वार!

कौन गहे गलबहियाँ सजनी
कौन बँटाए पीर
कब तक ढोऊँ अधजल घट यह
रह-रह छलके नीर
झंझा अमित अपार सखी री
आँचल ओट सम्हार

चक्र गहें कर्मो के बंधन
स्थिर रहे न धीर
तीन द्वीप और सात समंदर
दुनिया बाजीगीर
जर्जर मन पतवार सखी री
भव का आर न पार!

अगम अगोचर प्रिय की नगरी
स्वयं प्रकाशित कर यह गगरी
दिशा-दिशा उत्सव का मंगल
दीपावलि छाई है सगरी
छुटे चैतन्य अनार सखी री
फैले जग उजियार 



 कचनार के दिन


 फिर मुँडेरों पर
 सजे कचनार के दिन

 बैंगनी से श्वेत तक
 खिलती हुई मोहक अदाएँ
 शाम लेकर उड़ चली
 रंगीन ध्वज सी ये छटाएँ
 फूल गिन गिन
 मुदित भिन-भिन
 फिर हवाओं में
 बजे कचनार के दिन

 खिड़कियाँ, खपरैल, घर, छत
 डाल, पत्ते आँख मीचे
 आरती सी दीप्त पखुरी
 उतरती है शांत नीचे
 रूप झिलमिल
 चाल स्वप्निल
 फिर दिशाओं ने
 भजे कचनार के दिन


वह झोली ही बदल गई


 पगडंडी सड़कों में बदली, 
 सड़क पुलों में बदल गई
 पार पुलों के
 आते आते
 जिसे बुना था
 बड़े शौक से
 वह झोली ही बदल गई

 याद नहीं
 हम कहाँ चले थे

 और कहाँ तक जाना था
 एक कहानी शुरू हुई जो
 उसे कहाँ ले जाना था
 जिस भाषा
 में बात शुरू की
 वह बोली ही बदल गई

 कौन थका
 कब कौन विरामा
 किसने बोझा थामा था
 कौन चल दिया राह छोड़ कर
 सफर में जो सरमाया था
 जिन लोगों
 के साथ चले थे
 वह टोली ही बदल गई



पूर्णिमा वर्मन  


  • जन्म : 27 जून 1955 को पीलीभीत में।
  • शिक्षा : संस्कृत साहित्य में स्नातकोत्तर उपाधि, स्वातंत्र्योत्तर संस्कृत साहित्य पर शोध, पत्रकारिता और वेब डिज़ायनिंग में डिप्लोमा।
  • कार्यक्षेत्र : पूर्णिमा वर्मन का नाम वेब पर हिंदी की स्थापना करने वालों में अग्रगण्य है। 1996 से निरंतर वेब पर सक्रिय, उनकी जाल पत्रिकाएँ अभिव्यक्ति तथा अनुभूति वर्ष 2000 से अंतर्जाल पर नियमित प्रकाशित होने वाली पहली हिंदी पत्रिकाएँ हैं। इनके द्वारा उन्होंने प्रवासी तथा विदेशी हिंदी लेखकों को एक साझा मंच प्रदान करने का महत्त्वपूर्ण काम किया है। लेखन एवं वेब प्रकाशन के अतिरिक्त वे जलरंग, रंगमंच, संगीत तथा हिंदी के अंतर्राष्ट्रीय विकास के अनेक कार्यों से जुड़ी हैं।
  • पुरस्कार व सम्मान : दिल्ली में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, साहित्य अकादमी तथा अक्षरम के संयुक्त अलंकरण "प्रवासी मीडिया सम्मान", जयजयवंती द्वारा जयजयवंती सम्मान, रायपुर में सृजन गाथा के "हिंदी गौरव सम्मान", विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर द्वारा मानद विद्यावाचस्पति (पीएच.डी.) की उपाधि तथा केंद्रीय हिंदी संस्थान के पद्मभूषण डॉ. मोटूरि सत्यनारायण पुरस्कार से सम्मानित।
  • प्रकाशित कृतियाँ : कविता संग्रह : पूर्वा, वक्त के साथ एवं चोंच में आकाश
  • संपादित कहानी संग्रह- वतन से दूर 
  • चिट्ठा : चोंच में आकाश, एक आँगन धूप, नवगीत की पाठशाला, शुक्रवार चौपाल, अभिव्यक्ति अनुभूति।
  • अन्य भाषाओं में- फुलकारी (पंजाबी में), मेरा पता (डैनिश में), चायखाना (रूसी में)
  • संप्रति : संयुक्त अरब इमारात के शारजाह नगर में साहित्यिक जाल पत्रिकाओं 'अभिव्यक्ति' और 'अनुभूति' के संपादन और कला कर्म में व्यस्त।
  • संपर्क : purnima.varman@gmail.com 
  • फेसबुक पर- https://www.facebook.com/purnima.varman

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर भाव पूर्ण गीत ,बधाई पूर्णिमा जी

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  2. कलात्मक अभिव्यक्ति। कथन में अद् भुत सौन्दर्य। प्रांंजल। अकृत्रिम। — महेंद्रभटनागर

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  3. हर रचना एक संसार समेटे है अपने में ....बहुत सुंदर

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