चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
सुनहरी भोर बागों में..
सुनहरी भोर बागों में, बिछाती ओस की बूँदें,
नयन का नूर होती हैं, नवेली ओस की बूँदें।
चपल भँवरों की कलियों से, चुहल पर मुग्ध सी होतीं,
मिला सुर गुनगुनाती हैं, सलोनी ओस की बूँदें।
चितेरा कौन है? जो रात, में जाजम बिछा जाता,
न जाने रैन कब बुनती, अकेली ओस की बूँदें।
करिश्मा है खुदा का या, कि ऋतु रानी का ये जादू,
घुमाकर जो छड़ी कोई, गिराती ओस की बूँदें।
नवल सूरज की किरणों में, छिपी होती हैं ये शायद,
जो पुरवाई पवन लाती, सुधा सी ओस की बूँदें।
टहलने चल पड़ें मित्रों, निहारें रूप प्रातः का,
न जाने कब बिखर जाएँ, फरेबी ओस की बूँदें।
जिसको चाहा था..
जिसको चाहा था तुम वही हो क्या,
मेरी हमराह, ज़िंदगी हो क्या।
कल तो हिरनी बनी उछलती रही,
क्या हुआ आज, थक गई हो क्या।
ऐ बहारों की बोलती बुलबुल,
क्यों हुई मौन, बंदिनी हो क्या।
ढूँढती हूँ तुम्हें उजालों में,
तुम अँधेरों से जा मिली हो क्या।
महफिलें अब नहीं सुहातीं तुम्हें,
कोई गुज़री हुई सदी हो क्या।
क्यों मेरे हौसले घटाती हो,
मेरी सरकार, दिल-जली हो क्या।
प्यार से ही तो थी मिली तुमसे,
खुश नहीं फिर भी, सिरफिरी हो क्या।
थी नदी चंचला उफनती हुई,
सागरों से भला डरी हो क्या।
सुन रही हो, कि जो कहा मैंने
कोई फरियाद अनसुनी हो क्या।
'कल्पना' मैं कसूरवार नहीं,
रूठकर जा रही सखी हो क्या।
बदले हो तुम, तो है क्या..
बदले हो तुम, तो है क्या, मैं भी बदल जाऊँगी,
दायरा तोड़, कहीं और निकल जाऊँगी।
एक चट्टान हूँ मैं, मोम नहीं याद रहे,
जो छुअन भर से तुम्हारी, ही पिघल जाऊँगी।
जब बिना बात के नाराज़ हो दरका दर्पण,
मेरा चेहरा है वही, क्यों मैं दहल जाऊँगी?
मैं तो बेफिक्र थी, मासूम सा दिल देके तुम्हें,
क्या खबर थी कि मैं यूँ, खुद को ही छल जाऊँगी।
दर अगर बंद हुआ एक, तो हैं और अनेक,
चलते-चलते ही नए दौर में ढल जाऊँगी।
किसी गफलत में न रहना, कि अकेली हूँ सुनो
साथ मैं एक सखी लेके गज़ल जाऊँगी।
जो मुझे आज तलक, तुमने दिये हैं तोहफे,
वे तुम्हारे ही लिए छोड़ सकल जाऊँगी।
‘कल्पना’ सोच के रक्खा है जिगर पर पत्थर,
पी के इक बार जुदाई का गरल जाऊँगी।
कल्पना रामानी
- जन्म -6 जून 1951 (उज्जैन-मध्य प्रदेश)
- शिक्षा-हाईस्कूल तक
- रुचि- गीत, गजल, दोहे कुण्डलिया आदि छंद-रचनाओं में विशेष रुचि।
- वर्तमान में वेब की सर्वाधिक प्रतिष्ठित पत्रिका ‘अभिव्यक्ति-अनुभूति’ की सह संपादक।
- प्रकाशित कृतियाँ-नवगीत संग्रह-‘हौसलों के पंख’
- निवास-मुंबई महाराष्ट्र
- ईमेल- kalpanasramani@gmail.com
मेरी रचनाओं को स्नेह और सम्मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार सुबोध जी
जवाब देंहटाएंआपकी सुंदर रचनाओं का सदा अभिनन्दन..!
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