कमला कृति

बुधवार, 11 जुलाई 2018

परिक्रमा: डॉ. ऋषभदेव शर्मा सहित दस लेखक-पत्रकार सम्मानित


डॉ. ऋषभदेव शर्मा सहित सम्मानित लेखक-पत्रकार


          लोकतंत्र और समकाल के सापेक्ष साहित्य और मीडिया पर समग्र मंथन


       पुराण-प्रसिद्ध तमसा नदी के तट पर बसे नगर आजमगढ़ में हर दूसरे वर्ष  मीडियाकर्मियों और साहित्यकारों  का जलसा होता जो आजमगढ़ की पहचान और परंपरा में बदलाव का प्रतीक बनता जा रहा “मीडिया समग्र मंथन – 2018” के रूप में  इस वर्ष यह जलसा पिछले दिनों जनपद मुख्यालय के नेहरु हाल में संपन्न हुआ। इस अवसर पर ‘शार्प रिपोर्टर’ द्वारा उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद के पूर्व आचार्य एवं अध्यक्ष डॉ. ऋषभदेव शर्मा को साहित्य, लोक साहित्य एवं विविध लेखन के लिए ‘विवेकी राय स्मृति साहित्य सम्मान-2018’ से विभूषित किया गया. साथ ही पत्रकारिता व साहित्य जगत  की  दस विभूतियों को आजमगढ़ अंचल की विश्वप्रसिद्ध महान विभूतियों की स्मृति में सम्मानित किया गया।  सम्मानित विद्वानों में डॉ.  योगेन्द्रनाथ शर्मा अरुण को ‘महापंडित राहुल सांकृत्यायन स्मृति साहित्य सम्मान-2018’, गिरीश पंकज को ‘मुखराम सिंह स्मृति पत्रकारिता सम्मान-2018’, जयशंकर गुप्त को ‘गुंजेश्वरी प्रसाद स्मृति पत्रकारिता सम्मान-2018’, पुण्यप्रसून वाजपेयी को ‘सुरेंद्र प्रताप सिंह स्मृति टीवी पत्रकारिता सम्मान-2018’, यशवंत सिंह को ‘विजयशंकर वाजपेयी स्मृति पत्रकारिता सम्मान-2018’, विजयनारायण को ‘शार्प रिपोर्टर लाइफटाइम एचीवमेंट अवार्ड-2018’, सतीश सिंह रघुवंशी को ‘शार्प रिपोर्टर युवा पत्रकारिता सम्मान-2018’ तथा  डॉ. मधुर नज्मी को ‘अल्लामा शिब्ली नोमानी स्मृति अदबी अवार्ड-2018’ दिया गया। सम्मान समारोह की अध्यक्षता वर्धा से पधारे प्रो. देवराज ने की। इस द्विदिवसीय राष्ट्रीय विमर्श के अवसर पर ‘शार्प रिपोर्टर’ मासिक पत्रिका के उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड विशेषांक का विमोचन भी किया गया। 

       उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता रुड़की से पधारे जैन साहित्य के विशेषज्ञ डॉ. योगेंद्रनाथ शर्मा अरुण ने की. उद्घाटन सत्र में दिल्ली से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के चर्चित पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी का  लाइव टेलीकास्ट के माध्यम से संवाद अत्यंत विचारोत्तेजक रहा। उन्होंने प्रतिभागियों के प्रश्नों के बेबाकी से जवाब भी दिए। उन्होंने  कहा कि भारत में राजनीतिक सत्ता ही सब कुछ नियंत्रित करना चाहती है। 
पहले दिन के मुख्य विचार सत्र‘मीडिया, लोकतंत्र और हमारा समय’ का विषय प्रवर्तन करते हुए महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता प्रो. देवराज ने लोकतंत्र के बारे में लोहिया, अंबेडकर और नरेंद्रदेव के योगदान का  स्मरण किया। उन्होंने तीनों विद्वानों के बारे में बताया कि वे ऐसा लोकतंत्र चाहते थे, जिसमें व्यक्ति महज मत न होकर मूल्य होना चाहिए, सौंदर्य की कसौटी गौर नहीं श्याम वर्ण को होना चाहिए तथा  विचार की आवश्यकता और उसकी स्वतंत्रता के अनुकूल वातावरण होना चाहिए। उन्होंने चिंता जताई कि  लोकतंत्र में लोक की भागीदारी कम हुई है तथा  पिछले सात दशक में सबसे अधिक उपेक्षा शिक्षा और संस्कृति की हुई उन्होंने कहा कि जब मीडिया ने अपनी रखवाली करने की कोशिश की तब उसे सकारात्मक बने रहने के नाम पर उद्देश्य से भटका दिया गया है। सकारात्मक मीडिया के नाम पर मीडिया भटकाव की राह पर है। सकारात्मक या नकारात्मक कुछ नहीं होता जो आप देते हैं वही जरूरत है। आज सकारात्मक वह है जो सत्ता को सुख पहुँचाए। मीडिया को इससे बचकर देश के ज़मीनी यथार्थ से जुड़ना होगा अन्यथा आने वाला समय उसे माफ़ नहीं करेगा। 

       ‘मीडिया से उम्मीदें’  पर केंद्रित विचार सत्र में विविध प्रांतों से आए मीडियाकर्मियों ने  अपने अनुभव साझा किए। ‘आज तक’ के पत्रकार रामकिंकर ने कहा कि मीडिया की निष्पक्षता को लेकर कितनी भी आलोचना क्यों न करें लेकिन जब लोग संकट मे होते हैं तो वे अपनी आवाज उठाने के लिए मीडिया के पास ही आते है। ‘मीडिया मिरर’ के संपादक प्रशांत राजावत ने कहा कि मीडिया में जो सच्चाई परोसना चाहता है उनकी आवाज मीडिया के लोग ही निजी स्वार्थ की चाहत में दबा देते हैं। जुझारू पत्रकार अखिलेश अखिल ने बिहार में सत्ताधीशों द्वारा पत्रकारों की आवाज दबाने के लिए अपनाए जाने वाले हथकंडों की जानकारी दी और अपने उत्पीड़न की दास्तां सुनाई।वरिष्ठ पत्रकार जयशंकर गुप्त ने मीडिया को कमजोर करने के लिए सरकार द्वारा बनाए जा रहे मनमाने कानूनों पर सवाल उठाए। पत्रकार अतुल मोहन सिंह ने कहा कि पत्रकार को खबरों के साथ न्याय करना चाहिए। अनामी शरण बबल ने कहा कि हम अंतहीन महाभारतकाल में जी रहे हैं और  समाज नपुंसकता  की ओर जा रहा है। ‘भड़ास 4 मीडिया’ के संचालक एवं सोशल मीडिया विशेषज्ञ यशवंत सिंह ने कहा कि आधुनिक समाज में समस्त परिवर्तन टेक्नालाजी से आए हैं, विचार से नहीं। अतः टेक्नालाजी से ही क्रांति भी लाई जा सकती  है और लोकतंत्र को बचाया जा सकता है।

      दूसरे दिन ‘लोकतंत्र, साहित्य व हमारा समय’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के पूर्व आचार्य  डॉ.  ऋषभदेव शर्मा ने कहा कि भारत में लोकतंत्र अभी प्रयोग की दशा में है तथा उसे असफल घोषित करना जल्दबाजी माना जाएगा। हर चुनाव में भारतीय जनता निरंतर परिपक्वता के प्रमाण देती है और संसदीय लोकतंत्र के निजी प्रादर्श की उसकी तलाश अभी जारी है। उन्होंने आगे कहा कि हमारा समय निस्संदेह खतरनाक  समय है जिसमें सारी दुनिया आतंक, युद्ध और तानाशाही की ओर बही जा रही है लेकिन  सृष्टि का इतिहास गवाह है कि खतरों के बीच ही मनुष्यता ने सदा नई राहें खोजी हैं। वर्तमान में मीडिया और साहित्य को इस चुनौती का सामना करना है और लोकतंत्र के विकेंद्रीकरण द्वारा जनपक्ष को मजबूती प्रदान करने की जिम्मेदारी निभानी है। उन्होंने विरुद्धों के सामंजस्य के भारतीय दर्शन को व्यावहारिक रूप देने का आह्वान करते हुए समकालीन साहित्य के जुझारू तेवर की प्रशंसा की।

       इस सत्र के  मुख्य वक्ता  मदनमोहन मालवीय हिंदी पत्रकारिता संस्थान, काशी विद्यापीठ के निदेशक प्रो. ओमप्रकाश सिंह ने कहा कि समाज के कल्याण के लिए लिखा गया साहित्य ही श्रेष्ठ होता है। उन्होंने कहा कि आजादी से राजसत्ता तो मिली मगर विचारसत्ता को भुला दिया गया। उन्होंने यह भी कहा कि नागरिक आचरण गिर रहा है। उस पर संवाद आखिर कब होगा? नागरिक ही पत्रकार, साहित्यकार व मतदाता होता है। उसका आचरण खराब होगा तो लोकतंत्र कैसे आएगा? वरिष्ठ व्यंग्यकार गिरीश पंकज ने अध्यक्षासन से संबोधित करते हुए कहा कि साहसी साहित्यकार और पत्रकार कभी समझौता नहीं करता । उन्होंने कहा कि सही  कलम वही  होती है जो किसी भी परिस्थिति में न रुके, न झुके और न ही बिके। पहले दिन भोजपुरी गायिका चंदन तिवारी की लोक आधारित गीत संध्या विशेष रसपूर्ण  रही तो दूसरे दिन के अर्धरात्रि के बाद तक चले  कवि सम्मेलन व मुशायरे ने आयोजन को नई ऊँचाई दीजिसमें महेन्द्र अश्क, हैदर किरतपुरी, डॉ. मधुर नज्मी जैसे दिग्गज कवियों ने रचना पाठ किया. 

इस अवसर पर  तीन प्रस्ताव भी पारित किए गए जिनमें आजमगढ़ में महापंडित राहुल सांकृत्यायन के नाम पर केंद्रीय विश्वविद्यालय की मांग,  पत्रकारों की राष्ट्रव्यापी सुरक्षा के लिए केंद्र व राज्यों की सरकारों द्वारा  तुरंत प्रभावी कानून बनाए जाने की मांग और अपना दायित्व निभाते हुए पत्रकार की हत्या पर या मौत पर उसके परिवार को शहीद सैनिकों के परिवार जैसी सुविधा दी जाने की माँग की गई।कार्यक्रम का सफल संचालन अमन त्यागी ने किया तो शार्प रिपोर्टर पत्रिका के संपादक अरविंद सिंह व संस्थापक वीरेंद्र सिंह ने अतिथियों का भावपूर्ण स्वागत किया।


प्रस्तुति- डाॅ. चंदन कुमारी 


c/o संजीव कुमार IDAS, 
एकाउंट्स ऑफिस,स्माल आर्म्स फैक्टरी, 
अरमापुर, कानपुर-208009 
उत्तर प्रदेश

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (13-07-2018) को "लोग हो रहे मस्त" (चर्चा अंक-3031) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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