चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
अन्तर्मन में सुस्मृतियों के..
अन्तर्मन में सुस्मृतियों के बीज रोज बो लेती हूँ
याद तुम्हारी आती है तो थोड़ा सा रो लेती हूँ ।
प्रश्न कई जब उठकर दिल में ,
करने लगते खींचातानी !
गढ़ते नहीं भाव भी आकर
फिर से कोई नयी कहानी !
नयनों में ले नीर सुनो तब, पीर सभी धो लेती हूँ,
याद तुम्हारी आती है तो थोड़ा सा रो लेती हूँ ।
सौतन बनकर बैठ गयी है,
अपने द्वारे भले निराशा !
मगर छिपी इन संघर्षों में
जाने कैसी कोमल आशा !
पलकों में स्वप्निल इच्छाएँ, रखकर मैं सो लेती हूँ,
याद तुम्हारी आती है तो थोड़ा सा रो लेती हूँ ।
दिखे नहीं अपनी भी छाया
धुंध कभी जब आकर घेरे !
पथ में बन अवरोध खड़े हों
पहरों तक घनघोर अँधेरे !
दीप जला तब नाम तुम्हारे,संग सदा हो लेती हूँ !
याद तुम्हारी आती है तो थोड़ा सा रो लेती हूँ ।
जीवन की इस तेज धूप में..
जीवन की इस तेज धूप में
झुलस झुलस मुरझाये सपने !
घर पावन सा वो मिट्टी का
नेह मिले जो अपने हिस्से !
छूट गया अम्मा का आँचल
नहीं रहे नानी के किस्से !
गुड्डे गुड़ियों के सँग कितने
हमने खूब सजाये सपने !
जीवन की..
पीहर गयी खुशी ज्यों अपने
धड़कन धड़कन भटकें यादें !
अधरों पर है मौन सुशोभित
अंतस में चिहुँकें फरियादें !
देख देख ऋतुओं के मन को
नयनों ने छलकाये सपने !
जीवन की..
विस्मृत हो जाते दुख सारे,
और न आकर छलतीं रातें !
अपने पाँव धरे फूलों पर
साथ हमारे चलती रातें !
निष्ठुर जग के ही द्वारे पर
जा जाकर मुस्काये सपने !
जीवन की..
बैठ भाग्य को जी भर..
बैठ भाग्य को जी भर कोसा !
मेहनत पर अब नहीं भरोसा !!
दरवाजे दीवाली होली
खाली जेबें खाली झोली
देख देख मेरी लाचारी
हँसे गरीबी बस बेचारी
लाकर भोजन जब थाली में
फिर अम्मा ने आज परोसा !
जीवन भर करते मजदूरी
इच्छाएँ पर रहीं अधूरी
गिरवी रख कर सब कुछ अपना
देखा था कुछ माँ ने सपना
सोच सोच भर अाती आँखें
कैसे मुझको पाला पोसा !
खाँसे बापू बिना दवाई
भाई बैठा छोड़ पढ़ाई
करके कर्म बहुत है देखा
किन्तु न बदली अब तक रेखा
भ्रष्ट बाबुओं के घर चाँदी
दिन भर चलता चाय समोसा !
हो जाये मन पहले जैसा..
हो जाये मन पहले जैसा !
कह दो मीत आज कुछ ऐसा !
थम जाए नयनों का पानी
रुके हृदय की भले रवानी
नेह सुधा यों बरसाओ तुम
हो जाए फिर चूनर धानी
अगर साथ तुम फिर दुख कैसा !
कह दो मीत..
अंतर की पीड़ा मिट जाए
नजर तुम्हारी आस जगाए
जब जब याद करूँ मैं तुमको
मन का दीप स्वयं जल जाए
क्या करना है रुपया पैसा !
कह दो मीत..
आकर बैठो पास हमारे
आँचल में टाँको तुम तारे
फूलों की झुक जाए डाली
और हवा फिर बाल सँवारे
मिल जाए जैसे को तैसा !
कह दो मीत..
कभी नहीं कुछ कहते आँसू ..
बस चुपके से बहते आँसू !!
गिरतीं हों ज्यों जल की बूँदें,
मौन वेदना आँखें मूँदें,
बहती जाए अविरल धारा,
पूछ पूछकर दिल भी हारा,
नयनों तक से अपनी पीड़ा,
व्यक्त नहीं हैं करते आँसू !
बस चुपके..
इस जग के रिश्ते नातों से,
सब खट्टी मीठी बातों से,
भूल गए कुछ भी अब कहना,
सीख लिये जैसे चुप रहना,
सारी पीर अकेले छिपकर,
जाने कैसे सहते आँसू !
बस चुपके..
सुख दुख में भी खूब पले ये,
पुरवाई के संग ढले ये,
तोड़ चले शब्दों से नाता,
मुखरित होकर मौन बताता,
मोहक हर शृंगार पुष्प से,
बिना छुए ही झरते आँसू !
बस चुपके..
छाया त्रिपाठी ओझा
निकट - डाक घर
ब्लाक सी -10, फतेहपुर
जनपद -फतेहपुर (उ.प्र)
पिन -- 212601
ईमेल - tripathi.chhaya21@gmail.com
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जवाब देंहटाएंवाह एक से बढ़कर एक गीत
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
सम्भव हो तो छाया जी का मोबाइल नम्बर उपलब्ध करवाएँ
भावना जी, छाया जी का नंबर मेरे पास उपलब्ध नहीं है। आप उनसे ईमेल के जरिए संपर्क कर सकती हैं। अपने गीत भी हमें भेजें..!
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