कमला कृति

बुधवार, 1 अगस्त 2018

माहिया : डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा


चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार



(एक)

पक्के ही वादों से
हार सदा हारी
मज़बूत इरादों से ।

 (दो)

मौसम है हरजाई
बरखा की चाहत
सूरज ले अँगड़ाई ।

(तीन)

क़िस्मत के क़िस्से हैं-
फूल उन्हें,काँटे -
सब अपने हिस्से हैं ।

(चार)

हर मुश्किल पार गए
पर अपने दिल के
आगे हम हार गए ।

(पाँच)

समझो हर चाल अभी
ग़ैरों के आगे
कहना मत हाल कभी ।

 (छह)

मीठी सी बोली में
डाल गई क़िस्मत
कुछ ख़ुशियाँ झोली में ।

(सात)

आँगन में धूप खिली
मिलनी थी रहमत
वो तेरे रूप मिली ।

 (आठ)

फिर आग लगे भारी
बोई जो दिल में
नफ़रत की चिंगारी |

(नौ)

जाएँगे दुख देकर
घूम रहे शातिर
चकमक पत्थर लेकर ।

 (दस)

मुट्ठी में चाह नहीं
इतनी सरल सखी
चाहत की राह नहीं ।

 (ग्यारह)

लाचार , उदासी क्यों
कन-कन सींच रही
ये नदिया प्यासी क्यों ?

 (बारह)

आँखों के काजल से
भेजा संदेशा
बरखा से ,बादल से ।

 (तेरह)

कितना गम सहती है
उमड़-उमड़ बहती
नदिया कुछ कहती है ।

 (चौदह)

किसकी नादानी है
पर्वत बेचारा
क्यों पानी-पानी है ।

(पंद्रह)

क्या आज हवाएँ हैं
क़ातिल हैं , कितनी
मासूम अदाएँ हैं ।

 (सोलह)

वो साथ हमारे हैं
अम्बर फूल खिले
धरती पर तारे हैं।

(सत्रह)

ख़ुशियाँ तो गाया कर
ज़ख़्मों की टीसें
दिल खूब छुपाया कर ।

(अट्ठारह)

सब राम हवाले है,
आँखों में पानी
दिल पर क्यों छाले हैं।

 (उन्नीस)

अब क्या रखते आशा
गैरों से समझी
अपनों की परिभाषा ।

(बीस)

मैंने तो मान दिया
क्यों बाबुल तुमने
फिर मेरा दान किया ।
     
(इक्कीस)

मन चैन कहाँ पाए?
इतना बतलाना-
क्यों हम थे बिसराए।

 (बाइस)

ये भी तो सच है ना
चाहा हरजाई
यूँ हार गई मैना ।

 (तेईस)

पीछे कब मुड़ना है
अब परचम अपना
ऊँचे ही उड़ना है ।

(चौबीस)

छोड़ो भी जाने दो
मन की खिड़की से
झोंका इक आने दो ।

 (पच्चीस)

हाँ ! घोर अँधेरा है
सपनों में मेरे
नज़दीक सवेरा है।

(छब्बीस)

सपना जो तोड़ दिया
ज़िद ने हर टुकड़ा
मंज़िल से जोड़ दिया ।

(सत्ताइस)

मानी है हार नहीं
तेरा साथ मिला
जीवन अब भार नहीं ।

 (अट्ठाइस)

ख़ुद को पहचान मिली
बंद - खुली पलकें
तेरी मुस्कान खिली ।


डाॅ. ज्योत्स्ना शर्मा


  • जन्म स्थान  : बिजनौर (उ0प्र0)
  • शिक्षा : संस्कृत में स्नातकोत्तर उपाधि, पी-एच.डी.
  • शोध विषय : श्री मूलशंकर माणिक्य लाल याज्ञनिक की संस्कृत नाट्यकृतियों का नाट्यशास्त्रीय अध्ययन |
  • प्रकाशन : ‘ओस नहाई भोर’ एकल हाइकु-संग्रह , ‘महकी कस्तूरी’ एकल दोहा संग्रह।
  • अन्य प्रकाशन- ‘यादों के पाखी’(हाइकु-संग्रह ), ‘अलसाई चाँदनी’ (सेदोका –संग्रह ) एवं ‘उजास साथ रखना’ (चोका-संग्रह) , हिन्दी हाइकु प्रकृति-काव्यकोश, ,डॉ सुधा गुप्ता के हाइकु में प्रकृति( अनुशीलनग्रन्थ), हाइकु-काव्यशिल्प एवं अनुभूति ,’आधी आबादी का आकाश’(हाइकु संग्रह) ‘कविता अनवरत -3’ तथा  ‘समकालीन दोहा कोश’ ,’गुलशने ग़ज़ल’ ,हाइकु व्योम, ‘अनुभूति के इन्द्रधनुष’ ,कुण्डलिया संचयन ,पगध्वनि , पीर भरा दरिया (माहिया संकलन) में अन्य रचनाकारों के साथ रचनाएँ प्रकाशित |
  • विविध राष्ट्रीय,अंतर्राष्ट्रीय (अंतर्जाल पर भी ) पत्र-पत्रिकाओं ,ब्लॉग पर  विविध विधाओं में अनवरत प्रकाशन |
  • सम्प्रति : कुछ वर्ष शिक्षण , अब स्वतन्त्र लेखन ,सह सम्पादक – हिन्दी चेतना (कैनेडा से प्रकाशित हिन्दी त्रैमासिक पत्रिका )
  • सम्पर्क  :एच-604 ,प्रमुख हिल्स ,छरवाडा रोड , वापी , जिला- वलसाड , गुजरात (भारत)- 396191
  • ईमेल-jyotsna.asharma@yahoo.co.in

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (03-08-2018) को "मत घोलो विषघोल" (चर्चा अंक-3052) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. हार्दिक धन्यवाद मयंक जी..

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  3. यहाँ स्थान देने के लिए बहुत आभार आपका !

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