कमला कृति

शुक्रवार, 11 जुलाई 2014

दिविक रमेश की कविताएं

चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार




गुलाम देश का मजदूर गीत

(खुली आँखों में आकाश से)


एक और दिन बीता
बीत क्या
जीता है पहाड़-सा

अब
सो जाएँगे
थककर।

टूटी देह की
यह फूटी बीन-सी
कोई और बजाए
तो बजा ले
हम क्या गाएँ ?

हम तो
सो जाएँगे
थककर।

कल फिर चढ़ना है
कल फिर जीना है
जाने कैसा हो पहाड़ ?

फिर उतरेंगे

बस यूँ ही
अपने तो
दिन बीतेंगे।

सच में तो
ज़िन्दगी भर हम
अपना या औरों का
पहाड़ ही ढोते हैं।

बस
ढोते
रहते हैं।

सुना है
हमारी मेहनत के गीत
कुछ निठल्ले तक गाते हैं।

सुना है
हमारे भविष्य की कल्पना में
कुछ जन
कराहते हैं।

कुछ तो
जाने किस उत्साह में
हमारे वर्तमान ही को
हमसे झुठलाते हैं।

हमारा भविष्य तो
खुद
हमारा बच्चा भी नहीं होता।

पेट में ही जो
ढोने लगता हो ईंटें।
पेट में ही जो
मथने लगता हो गारा।
पेट में ही जिसको
सिखा दिया हो
सलाम बजाना।
पहले ही दिन से
खुद जिसने
शुरू कर दिया हो
कमाना।

कोई स्वप्न गुनगुनाए
तो गुनगुना ले
वर्ना
हमारा बच्चा भी
हमारा भविष्य
नहीं होता।

होता होगा
होगा किसी का भविष्य
किसी के देश का
किसी के समाज का
लेकिन
हमारा नहीं होता।

होगा भी कैसे
हमारी परम्परा में
खुद हम कभी
अपना
भविष्य नहीं हुए।

हम तो बस
सीने पर रख
महान उपदेशों को
सो जाते हैं
थककर।

इतना ही क्या
काफी नहीं
कि एक दिन और
बीत गया

पहाड़-सा।

अब रात आयी है
सुख भरी रात
कौन गंवाए इसे।

सुबह तो ससुरी
रोज
भूख ही लगाती है
क्यों करें प्यार
फिर ऐसी सुबह से ?

कैसे थिरक उठे पाँव
कैसे गाएँ ये कंठ
कैसे मनाएँ खुशियाँ
सरकारी उत्सवों में
नाचते

नचभैयों-से।

कहाँ है आजाद
यह गुलाम देश
और कहाँ हैं आजाद

ये हम?

आजादी की परख
देश की सुबह से होती है
और सुबह तो हर रोज
काम पर

भूखा ही भगाती है।

पर चलो
एक दिन और बीता
बीता क्या
जीता है पहाड़-सा

अब
सो जाएँगे
थककर।



हर कहीं सब कहीं



देख लीजिए न नरेन्द्र जी को
हैं न ’कहीं‘।
और राजेश जी को भी
कैसे तो विराजमान हैं वे भी ’कहीं‘।
इन्हें ही देख लीजिए
और उन्हें भी
तभी तो छाए हैं न अखबार के कॉलम से।

देखिए तो इनके चेहरे
इन्हें क्या परवाह उनकी
और अब देख लीजिए उनके भी चेहरे
उन्हीं का कौन बाँध सकता है घर घाम में।

अपनी अपनी हवा है
अपना अपना बदन
अपना अपना आकार है
अपना अपना समाचार

खबरदार
खबरदार
खबरदार

जान लेना चाहिए
कि हर बड़ा है वही
जो दिखता है ’कहीं‘।
और एक आप हैं मियाँ दिविक
जो हैं ही नहीं कहीं

न कोई अपनी हवा है
न बदन ही
न कोई अपना आकार है
न समाचार ही।



हक की तहकीकात

(खुली आँखों में आकाश से)


यही है वह लड़का

आवारा

जाने कैसे हैं माँ-बाप
जना और छोड़ दिया।
यही है
खतरनाक निशान को
छूकर भी
ज़िन्दा है।

तहकीकात हुई,
लोगों ने पाया
कि यह लड़का
’अनपढ और गंवार है‘
या यूँ कह लें
’नथिया का बेटा चमार है।‘

तहकीकात हुई
लोगों ने पाया
कि इसके खानदान में
जो भी
खतरों से खेला
नहीं बचा
यह पहला है।

तहकीकात हुई
लोगों ने पाया
यह वही लड़का है
चौधरी के खेत में
जो जबरन घुसा था।

यह वही लड़का है
जो गांव के कुएँ की
जगत पर चढ़ा थ।

यह वही लड़का है
जिसने
हरीराम पंडत की
लांगड़ खोल
मखौल उड़ाया था

घोषणा हुई
’यह लड़का खतरनाक है।‘

तहकीकात
एक और भी हुई

पता चला
कि बहुत से खतरनाक निशान
खेत में गड़े डरावों से
महज निशान होते हैं।



उसने कहा था


मेरे निकट आओ, मेरी महक से महको
और सूँघो
यह किसी फूल या खुशबू ने नहीं
उसने कहा था।

मेरे निकट आओ, मेरा ताप तापो
और सेंको
यह किसी अग्नि या सूर्य ने नहीं
उसने कहा था।

मेरे निकट आओ, मेरी ठंड से शीतल हो जाओ
और ठंडाओ
यह किसी जल या पर्वती हवा ने नहीं
उसने कहा था।

वह कोई रहस्य भी नहीं था
एक मिलना भर था
कुछ ईमानदार क्षणों में खुद से
जो था असल में
रहस्य ही।

वह जो बहुत उजागर है
गठरियों में बाँध उसे
कितना रहस्य बनाए रखते हैं हम।

शायद सोचना चाहिए मुझे
कि उसे
कहना क्यों पड़ा?



जाइये-आइये



हाँ हमीं ने बुलाया था न आपको
आपके मुद्दों पर विचार के लिए
पर अब हम नहीं करेंगे न
नहीं करेंगे माने नहीं करेंगे, जाइये।

ऐ न्यायप्रिय जी
सब हमारी मर्जी पर ही चलता है न
कारण-फारण जानकर क्या कीजिएगा
क्या उखाड़ लेंगे आप हमारा
कह दिया न हमारी मर्जी! जाइये।

अरे हे पी.ए. साहिब, तनिक सुनो तो
समझाओ इन्हें। आहाहाहाहाहाहा......
कल प्रैस में मर्जी
और अगले दिन छपवा दीजिएगा न मजबूरी।
आहाहाहाहाहाहा......

अरे! अरे! आप!
आप यहाँ
बुला लिया होता न दास को।

ऐ पी.ए. साहब!

’माफ कीजिए
यह ससुर लांगड़ भी
तैयार रहती है खुलने को
खोले रहूँ
या बाँध लूँ।
हमारी चरण वन्दना तो लीजिए न!
आप हैं तो हम हैं न! आइये।

देखिए न
कितना कुछ तो कह रही हैं आपकी आँखें
हमारे पक्ष में। आइये।

ऐ पी.ए. साहिब
भेजिए न। तनिक जल्दी कीजिए भाई।’

आइये!



 दिविक रमेश


  • दिविक रमेश (वास्तविक नाम - रमेश शर्मा)
  • जन्म : १९४६, गाँव किराड़ी, दिल्ली।
  • शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी), पी-एच.डी. (दिल्ली विश्वविद्यालय)
  • संप्रति : प्राचार्य, मोतीलाल नेहरू कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय, नई दिल्ली
  • पुरस्कार/सम्मान : गिरिजाकुमार माथुर स्मृति पुरस्कार, १९९७
  • सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, १९८४
  • दिल्ली हिन्दी अकादमी का साहित्यिक कृति पुरस्कार, १९८३
  • दिल्ली हिन्दी अकादमी का साहित्यकार सम्मान २००३-२००४
  • एन.सी.ई.आर.टी. का राष्ट्रीय बाल-साहित्य पुरस्कार, १९८९
  • दिल्ली हिन्दी अकादमी का बाल-साहित्य पुरस्कार, १९८७
  • भारतीय बाल-कल्याण संस्थान, कानपुर का सम्मान १९९१
  • बालकनजी बारी इंटरनेशनल का राष्ट्रीय नेहरू बाल साहित्य एवार्ड १९९२
  • इंडो-रशियन लिटरेरी कल्ब, नई दिल्ली का सम्मान १९९५
  • कोरियाई दूतावास से प्रशंसा-पत्र २००१बंग नागरी प्राचारिणी सभा का पत्रकार शिरोमणि सम्मान १९७६ में।
  • प्रकाशित कृतियाँ :कविताः 'रास्ते के बीच', 'खुली आंखों में आकाश', 'हल्दी-चावल और अन्य कविताएं', 'छोटा-सा हस्तक्षेप', 'फूल तब भी खिला होता' (कविता-संग्रह)। 'खण्ड-खण्ड अग्नि' (काव्य-नाटक)। 'फेदर' (अंग्रेजी में अनूदित कविताएं)। 'से दल अइ ग्योल होन' (कोरियाई भाषा में अनूदित कविताएं)। 'अष्टावक्र' (मराठी में अनूदित कविताएं)। 'गेहूँ घर आया है' (चुनी हुई कविताएँ, चयनः अशोक वाजपेयी)।
  • आलोचना एवं शोधः  नये कवियों के काव्य-शिल्प सिद्धान्त, ‘कविता के बीच से’, ‘साक्षात् त्रिलोचन’, ‘संवाद भी विवाद भी’। ‘निषेध के बाद’ (कविताएं), ‘हिन्दी कहानी का समकालीन परिवेश’ (कहानियां और लेख), ‘कथा-पडाव’ (कहानियां एवं उन पर समीक्षात्मक लेख), ‘आंसांबल’ (कविताएं, उनके अंग्रेजी अनुवाद और ग्राफिक्स), ‘दूसरा दिविक’ आदि का संपादन।
  •  ‘कोरियाई कविता-यात्रा’ (हिन्दी में अनूदित कविताएं)। ‘द डे ब्रक्स ओ इंडिया’ (कोरियाई कवयित्री किम यांग शिक की कविताओं के हिंदी अनूवाद) । ‘सुनो अफ्रीका’।
  • बाल-साहित्यः ‘जोकर मुझे बना दो जी’, ‘हंसे जानवर हो हो हो’, ‘कबूतरों की रेल’, ‘छतरी से गपशप’, ‘अगर खेलता हाथी होली’, ‘तस्वीर और मुन्ना’, ‘मधुर गीत भाग ३ और ४’, ‘अगर पेड भी चलते होते’, ‘खुशी लौटाते हैं त्यौहार’, ‘मेघ हंसेंगे जोर-जोर से’ (चुनी हुई बाल कविताएँ, चयनः प्रकाश मनु)। ‘धूर्त साधु और किसान’, ‘सबसे बडा दानी’, ‘शेर की पीठ पर’, ‘बादलों के दरवाजे’, ‘घमण्ड की हार’, ‘ओह पापा’, ‘बोलती डिबिया’, ‘ज्ञान परी’, ‘सच्चा दोस्त’, (कहानियां)। ‘और पेड गूंगे हो गए’, (विश्व की लोककथाएँ), ‘फूल भी और फल भी’ (लेखकों से संबद्ध साक्षात् आत्मीय संस्मरण)। ‘कोरियाई बाल कविताएं’। ‘कोरियाई लोक कथाएं’। ‘कोरियाई कथाएँ’।
  • ‘और पेड गूंगे हो गए’, ‘सच्चा दोस्त’ (लोक कथाएं)।
  • अन्यः ‘बल्लू हाथी का बाल घर’ (बाल-नाटक)। 
  • ‘खण्ड-खण्ड अग्नि’ के मराठी, गुजराती और अंग्रेजी अनुवाद।
  • अनेक भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में रचनाएं अनूदित हो चुकी हैं। रचनाएं पाठयक्रमों में निर्धारित।
  • विशेष : २०वीं शताब्दी के आठवें दशक में अपने पहले ही कविता-संग्रह ’रास्ते के बीच‘ से चर्चित हो जाने वाले आज के सुप्रतिष्ठित हिन्दी-कवि बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। ३८ वर्ष की आयु में ही ’रास्ते के बीच‘ और ’खुली आंखों में आकाश‘ जैसी अपनी मौलिक साहित्यिक कृतियों पर सोवियत लैंड नेहरू एवार्ड जैसा अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार पाने वाले ये पहले कवि हैं। १७-१८ वर्षों तक दूरदर्शन के विविध कार्यक्रमों का संचालन किया। १९९४ से १९९७ में भारत सरकार की ओर से दक्षिण कोरिया में अतिथि आचार्य के रूप में भेजे गए जहाँ इन्होंने साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में कितने ही कीर्तिमान स्थापित किए। वहाँ के जन-जीवन और वहाँ की संस्कृति और साहित्य का गहरा परिचय लेने का प्रयत्न किया। परिणामस्वरूप ऐतिहासिक रूप में, कोरियाई भाषा में अनूदित-प्रकाशत हिन्दी कविता के पहले संग्रह के रूप में इनकी अपनी कविताओं का संग्रह ’से दल अइ ग्योल हान‘ अर्थात् चिड़िया का ब्याह है। इसी प्रकार साहित्य अकादमी के द्वारा प्रकाशित इनके द्वारा चयनित और हिन्दी में अनूदित कोरियाई प्राचीन और आधुनिक कविताओं का संग्रह ’कोरियाई कविता-यात्रा‘ भी ऐतिहासिक दृष्टि से हिन्दी ही नहीं किसी भी भारतीय भाषा में अपने ढंग का पहला संग्रह है। साथ ही इन्हीं के द्वारा तैयार किए गए कोरियाई बाल कविताओं और कोरियाई लोक कथाओं के संग्रह भी ऐतिहासिक दृष्टि से पहले हैं।
  • दिविक रमेश की अनेक कविताओं पर कलाकारों ने चित्र, कोलाज और ग्राफिक्स आदि बनाए हैं। उनकी प्रदर्शनियाँ भी हुई हैं। इनकी बाल-कविताओं को संगीतबद्ध किया गया है। जहाँ इनका काव्य-नाटक ’खण्ड-खण्ड अग्नि‘ बंगलौर विश्वविद्यालय की एम.ए. कक्षा के पाठ्यक्रम में निर्धारित है वहाँ इनकी बाल-रचनाएँ पंजाब, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र बोर्ड तथा दिल्ली सहित विभिन्न स्कूलों की विभिन्न कक्षाओं में पढ़ायी जा रही हैं। इनकी कविताओं पर पी-एच.डी के उपाधि के लिए शोध भी हो चुके हैं।
  • इनकी कविताओं को देश-विदेश के अनेक प्रतिष्ठित संग्रहों में स्थान मिला है। इनमें से कुछ अत्यंत उल्लेखनीय इस प्रकार हैं १. इंडिया पोयट्री टुडे (आई.सी.सी.आर.), १९८५, २. न्यू लैटर (यू.एस.ए.) स्प्रिंग/समर, १९८२, ३. लोटस (एफ्रो-एशियन राइटिंग्ज, ट्युनिस श्ज्नदपेश् द्धए वॉल्यूमः५६, १९८५, ४. इंडियन लिटरेचर ;(Special number of Indian Poetry Today) साहित्य अकादमी, जनवरी/अप्रैल, १९८०, ५. Natural Modernism (peace through poetry world congress of poets) (१९९७) कोरिया, ६. हिन्दी के श्रेष्ठ बाल-गीत (संपादकः श्री जयप्रकाश भारती), १९८७, ७. आठवें दशक की प्रतिनिधि श्रेष्ठ कविताएं (संपादकः हरिवंशराय बच्चन)।
  • दिविक रमेश अनेक देशों जैसे जापान, कोरिया, बैंकाक, हांगकांग, सिंगापोर, इंग्लैंड, अमेरिका, रूस, जर्मनी, पोर्ट ऑफ स्पेन आदि की यात्राएं कर चुके हैं।
  • सम्पर्क : divik_ramesh@yahoo.com

4 टिप्‍पणियां:

  1. धन्यवाद. कहां-कहां से खोज लाए हॆं आप कविताएं.

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  2. अच्छी कविताएँ हैं। दिविक रमेश हिन्दी के बेहद अच्छे कवि हैं। लेकिन हिन्दी में सबको अपनी-अपनी जो पड़ी हुई है, उसमें उन पर कोई ध्यान नहीं देता।

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  3. अत्मीय विचार ऒर सद्भाव के लिए हार्दिक धन्यवाद अनिल जनविजय जी.

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  4. बेहद सुन्दर कविताएँ। इऩ कविताओं में लोक-जीवन की अपूर्व छवियाँ हैं। दिविक रमेश जी की कविताएँ पाठकों को अपने साथ जोड़ लेती हैं। आभार।

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